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राम चरन भाग उनतालीस

Ram Charan

ग्राहकों की भीड़ लगी है। राम चरन पर आंख उठाने तक की फुरसत नहीं है। भोंदू दनादन थालियां साफ करता जा रहा है और राम चरन को पकड़ा रहा है। खूब धन बरस रहा है। कालू नोटों से भरी दोनों जेबों को देख कर भी खुश नहीं हुआ है।

रीती-रीती निगाहों से कालू ने खाली-खाली आसमान को देखा है। लगा है – कहीं दूर उसका सब कुछ उजड़ गया है। आशाओं के पखेरू उड़ गए हैं। वह तो अब अकेला है – नितांत अकेला।

मन है कि न घर में लगता है न बाहर! न काम में लगता है न ध्यान में। बार-बार एक मर गए ख्वाब की चिता के पास बैठ वह रो लेना चाहता है।

“अंग्रेजी पढ़ कर दोनों बेटे कलक्टर बन जाएंगे!” बार-बार कालू इसी विचार को याद कर रोने-रोने को हो आता है।

कलक्टर बनना तो कुछ बनना होता है – कालू सोच रहा है। एक आन बान और शान का प्रतीक होता है – एक कलक्टर! पैसे धेले तो कोई भी कमा लेता है। धंधा चल जाए तो – पकड़ते रहो पैसे। लेकिन .. लेकिन कालू के बेटे नहीं-नहीं कली राम के बेटे हैं – अरुण वरुण कलक्टर हैं, दो गज छाती ऊपर आ जाती है। आदमी का जन्म सफल हो जाता है।

“हैडली नहीं माना!” मंगी की आवाज है – जो आती ही चली जाती है।

क्यों नहीं माना हैडली? इसलिए कि वो अनपढ़ है। इसलिए कि श्यामल भी अंगूठा टेक है? इसलिए कि ये लोग इंग्लिश नहीं जानते? अरुण वरुण का क्या दोष? उनको सजा क्यों? उन्हें क्यों रोका जाए ..

“क्या हुआ है पापा को अम्मा?” वरुण पूछ रहा है।

“उखड़े-उखड़े लग रहे हैं।” अरुण ने भी बात की पुष्टि की है।

“एडमीशन!” श्यामल ने मुंह बना कर कहा है। “तुम लोगन का एडमीशन नहीं हुआ न – मेरी एंड जॉन्स में! वो हैडली नहीं माना!”

“पर हमारा एडमीशन तो हो गया!” वरुण कूदा है। “सर ने करा दिया!”

“कल से हम लोग शाखा में जाया करेंगे अम्मा!” अरुण ने सूचना दी है।

कालू ने सब कुछ सुना था लेकिन कहा कुछ नहीं था।

लेकिन अब, आज अचानक कालू की निगाहों के सामने वही दृश्य लौट आया है जब ढोलू सराय में लगे आर एस एस के कैंप से स्वयं सेवक उसका घर का खाना खाने पहुंचे थे और राम चरन उन्हें देख कर डर गया था। उस दिन मन तो हुआ था कि वह भी राम चरन को साथ लेकर ढोलू सराय में लगे कैंप को देख आए! कहते हैं कि कुंवर खम्मन सिंह ढोलू कैंप का सारा खर्चा उठाते हैं!

“राम चरन क्यों डरा था?” अचानक कालू ने स्वयं से प्रश्न पूछा था। “क्यों कि वो लोग हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात कर रहे थे।” उसे याद हो आया था।

अचानक एक आशा किरन घोर अंधेरे के पेट से जन्म ले कालू के दिमाग पर छा गई थी। उसे लगा था कि अब अरुण वरुण भी हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे और अब अंततः हैडली को भी भारत छोड़ कर जाना होगा!

खुशियों के काफिले उड़-उड़ कर कालू की निगाहों के पार जा रहे थे। अंग्रेज और अंग्रेजी भारत छोड़ कर भाग रहे थे और अरुण वरुण ..

“कालू .. नहीं-नहीं कली राम के बेटे हैं!” लोग चर्चा कर रहे थे।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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