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राम चरन भाग सतासी

Ram charan

“शिव चरन और श्याम चरन – दो बेटे – सुंदरी के बेटे – उसकी ट्रु कॉपी!” राम चरन के दिमाग पर आज एक नया सोच तारी था। “अमन और चमन – दो बेटे – सलमा के बेटे और .. और नारंग की ट्रू कॉपी। हाहाहा! वॉट ए ब्लडी जोक!” वह फिर से हंसा था। “और सुंदरी ..? और सलमा ..?” विचित्र व्यामोह था। राम चरन ने घट गई उन घटनाओं पर उंगली धरी थी – जो आज भी जीवित थीं और उससे आत्म दाह करने को कह रही थीं।

सलमा स्वयं में एक साम्राज्य थी – आज वह कह सकता था।

कराची के केंटोंनमेंट का नेवल कॉम्प्लैक्स और वो फ्लेग स्टाफ हाउस जिस पर पाकिस्तान का झंडा फहराता रहता था – उसका ऑफीशियल रेजीडेंस था। लेकिन उसका मालिक न पाकिस्तान था न वो था बल्कि सलमा शेख थी। सलमा ने ही उसका नाम ‘जेह नसीब’ रक्खा था। और सलमा ने ही उसे एक बार फिर से तोड़ फोड़ कर अपने टेस्ट के लिहाज से बनवाया था। सलमा को फॉरन का भूत सवार था। फ्लेग स्टाफ हाउस को भी उसने एक स्विस डिजाइन – कहीं से ला कर, उसके अनुरूप ही बनवाया था। घर में सब कुछ विदेशी था। सलमा को क्रेज थी बाहर के माल की। पाकिस्तान तो वैसे भी कुछ नहीं बनाता था, फिर भी किचिन या मुर्गी की बात भी कहें तो सलमा को के एफ सी का स्टफ ही पसंद था – लोकल नहीं!

“सड़े लोग हैं – यार!” सलमा आम तौर पर अपने आप को कोसती रहती थी। “शऊर और सलीका तो हम लोगों में है ही नहीं!” ये उसका तकिया कलाम था।

सलमा शोशल लाइफ की बहुत बड़ी फैन थी।

हर दिन कुछ न कुछ होना ही चाहिए था। वह ग्यारह बजे सो कर उठती थी। उसके बाद तो बिस्तर पर जाने का कोई समय ही न था। रात गारत हो जाए .. दिन चढ़ने लगे तो भी सलमा का उत्साह ठंडा न होता था। लंबी-लंबी पार्टियों की शौकीन थी सलमा!

और हां! नारंग के बिना सलमा की कोई महफिल न सजती थी।

“डार्लिंग ..?” राम चरन को याद है जब कभी वो सलमा से सहवास का आग्रह करता था तो आहिस्ता से उसे छू देता था। “कम-कम ..!” वह धीमे से आग्रह करता था। “लैट्स हैव सम फन?” उसकी आवाज विनम्र होती थी।

“मुनीर डियर!” सलमा सिसकियां ले कर कहती थी। “यू नो! आई एम डेड टायर्ड!” वह करवट बदलती थी। “प्लीज! मेरा थोड़ा सर सहला दो! नींद तो भी आ जाएगी।” वह आग्रह करती थी।

और सच में ही वह मुनीर खान जलाल – द वन स्टार जरनल हारी थकी अपनी पत्नी सलमा का सर सहलाते-सहलाते खुद भी सो जाता था।

सलमा के साम्राज्य में अगर किसी को छूट थी तो वो था – सोलंकी – उसका गाढ़ा यार सोलंकी।

“तू तो साले पागल है – पागल!” अचानक राम चरन तमतमा आए बलोच की आवाजें सुनने लगता था। “तू .. तू क्या सोचता है कि सोलुकी ..?”

“हम दोनों का यार है बे! सोलंकी तो यारों का यार है। ए बैचलर बॉय .. एंड ..”

“एंड ए ब्लाड़ी चीट!” गर्जा था बलोच। “ही इज ए ..” दांती भिच आई थी बलोच की। “यू विल नेवर अंडरस्टेंड मुनीर कि ये साला कितना घटिया है?”

याद है मुनीर को कि उसे बलोच और नारंग के बीच वैमनस्य दिखता तो था लेकिन उसका कारण एक ही था। बलोच किसी तरह नारंग की लाइन काटना चाहता था। वह भी तो महत्वाकांक्षी था और उसके रास्ते का एक ही रोड़ा था – सोलंकी! और वह चाहता था कि मुनीर उस रोड़े को ..

“घटिया तो ये बलोच भी है!” मुनीर खान जलाल स्वयं से कहता था। “ये साला कांटे से कांटा निकालना चाहता है। सलमा को बीच में ले आता है .. ताकि ..”

सलमा पर शक करना मुनीर को अच्छा न लगता था।

सलमा सर्व श्रेष्ठ थी। सलमा हर पार्टी, हर फंक्शन, हर इवेंट की जान थी, पहचान थी। और बिना सलमा के उसके साम्राज्य में पत्ता तक न हिलता था। और वो उसके मन की मलिका थी – मुनीर जानता था।

“बहुत-बहुत प्यार करता था मैं सलमा से!” राम चरन बुदबुदाया था। “ओह मेरे मालिक! क्या गुनाह था मेरा जो सलमा ने मुझे दगा दी?” राम चरन की आंखें आज भर आई थीं।

न जाने क्यों बेवफाई के दिए घाव कभी भरते ही नहीं?

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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