ये राजमा- चावल सुनने में कुछ अजीब सा लगता है.. अब राजमा- चावल पढ़कर हँसी आ जाए.. या फ़िर कुछ अजीब सा महसूस हो.. तो इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है.. इसे पढ़ते वक्त यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है.. कि राजमा किस प्रकार बनाया जाता है.. इसकी विधि बताई गई होगी।

पर ऐसा कुछ नहीं है.. मित्रों! दरअसल इस राजमा-चावल में बीते हुए.. कल के कुछ हसीन और सुनहेरे पल कैद हैं.. सोचा आपसे बाँट लूँ।

आज घर पर यही भोजन पकाया है.. एक ज़माना हुआ करता था.. जब स्कूल से भूखे और थके हुए.. घर लौटा करते थे..” क्या खाना बनाया है! माँ..!”।

” राजमा-चावल बने हैं! कपडे बदल कर आ जाओ!”।

रसोई में खड़ी माँ कहा करतीं थीं..

माँ के मुहँ से राजमा-चावल सुन तबियत खिल जाया करती थी.. और दिल गार्डन-गार्डन हो जाया करता था..

अब उन दिनों छुटपन में फिगर वगरैह की तो हमें बिल्कुल भी चिंता न थी.. अच्छे-ख़ासे मस्त मल्ला हुआ करते थे..  बस! माँ के हाथों का बना हुआ.. स्वादिष्ट राजमा-चावल शाम तक कूद-कूद कर खाया करते थे.. जब तक की हमें कढ़ाई ख़ाली नज़र नहीं आ जाती थी।

अब आजकल की महिलाओं की तरह जिसमें हम ख़ुद भी शामिल हैं.. माँ मिक्सी नहीं घुमाया करतीं थीं.. बस! टमाटर प्याज़ काटे.. प्यार भरा लहसुन व अदरक डाला.. लो जी बना डाले कुकर में सीटी लगा.. मज़ेदार और जाएकेदार राजमा-चावल।

ख़ूब मस्त बचपन था.. जिसके कुछ इसी तरह के हसीन और यादगार लम्हे हमनें संजो कर रख लिए हैं.. 

हाँ! राजमे की बात चली.. तो माँ के संग-संग पिताजी का भी लाड़ याद आ गया.. भूटान जाना होता था.. तो घर में बोरे के बोरे राजमा आ जाया करता था।

मित्रों राजमा कहीं का भी हो.. जम्मू या फ़िर भूटान! बात उस राजमे में घुले माँ के लाड़ और प्यार की है.. जो फ़िर किसी राजमे में वापिस नहीं आती।

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