जीवन की रेल
चली है
छुक-छुक
बालपन के
पहले स्टेशन से
चली थी
धीरे-धीरे
रुक-रुक
जोबन से गति
पकड़ती चली
थी
छुक-छुक
जोबन के स्टेशन
को पार
कर मन
घबराया
धुक-धुक
अब बहुत
आगे आ
चुकी
थी
रेल चलते
हुए
छुक-छुक
गुज़रे हुए
स्टेशन अब
बीती कहानी
सुना रहे
थे
वृद्ध अवस्था
का स्टेशन
देख मन
घबरा रहा
था
धुक-धुक
जीवन की
रेल पकड़
गई गति
छुक-छुक
पता भी
न चला
इतनी जल्दी
स्टेशन
टाटा करते
गुज़र गये
आने वाले
आख़िरी
स्टेशन पर
ईश्वर खड़े
हाथ में
हरएक का
कर्मो का झंडा
लिए
यात्रियों की
राह निहारते
टुक-टुक
आख़िरी
सत्य का
स्टेशन देख
मन फ़िर
घबराया
धुक-धुक
जीवन की
यह रेल
कुछ इसी
तरह गुज़रती
है मित्रों
छुक-छुक
इसमें सवार
हो
हर सुख-दुःख
रूपी स्टेशन
का आनंद
लेते चलो
नहीं ये
अनमोल जीवन
रूपी नज़ारे
गुज़र जाएंगे
लुक-छुप लुक-छुप
यूँहीं आख़िरी
स्टेशन
पर रेल
थम जाएएगी
धुचुप-धुचुप