लघु कहानियाँ, छोटे-छोटे क़िस्से और उपन्यास हमारे जीवन में घटित बातों और घटनाओं से ही तो बनते हैं..  कुछ घटनाएँ याद रह जातीं हैं.. और कागज़ पर कलम से हमेशा के लिए प्यारी यादें बन दर्ज हो जातीं हैं।

बचपन से बड़े होने तक हमारे आसपास कुछ न कुछ यादों में समेटने वाला कोई न कोई क़िस्सा घटित होता ही रहता है।

इसी तरह की कुछ यादें और छोटी-मोटी प्यारी सी बातें मैने भी अपने यादों के पन्ने में रखी हुई हैं.. आज उन्हीं यादों और प्यार भरी बातों का एक पन्ना आप सभी मित्रों के साथ बॉटने का मन हो रहा है.. जिसे याद कर वाकई चेहरा कुछ पलों के लिए.. गुलाब की तरह से खिल जाता है।

क़िस्सा यह है.. की बचपन में जिस मौहल्ले में हम रहा करते थे.. वहाँ हमारी ख़ूब सारी सहेलियाँ थीं.. अब जब भी किसी सहेली को कुछ दुकानों पर से खरीदना होता.. तो सब संग ही चला करते थे.. घर के पास ही शॉपिंग सेंटर था।

अब उस शॉपिंग सेन्टर में एक दुकान ऐसी थी.. कि चाहे हमें कोई काम उस दुकान से हो न हो.. पर हम सहेलियाँ उस दुकान पर मज़े लेने ज़रूर खड़े हो जाया करते थे। बात ही दुकानदार भइया की हमें हँसी वाली और प्यारी लगा करती थी।

” भइया..! भइया..! “

अन्दर की तरफ़ दुकान में झुके हुए.. दुकानदार भइया को हमनें आवाज़ लगाई थी..

” हाँ.! आया..!””

” बोलो क्या चाहिये!”।

” भइया! आपके पास white पोस्टर कलर है!”।

हालाँकि चाहिये थोड़े ही था.. बस! मज़े लेने वाली बात थी..

” हाँ! है. !”।

कह भइया दुकान में भीतर white पोस्टर कलर ढूढ़ने लगे.. पहले तो नीचे का हिस्सा छान मारा .. फ़िर सीढ़ी से ऊपर छान बीन कर हमारे पास आ खड़े हुए.. थे।

” नहीं वो तो नहीं है!”।

” क्यों भइया!’।

” अरे! White पोस्टर कलर नहीं होता.. पेपर ही जो वाइट होता है”

भइया का जवाब सुन हम सब सहेलियों के चेहरे पर लम्बी सी मुस्कुराहट आ गयी थी.. ” अच्छा! भइया!” कह वहाँ से निकल तो लिए थे.. पर भइया के इस जवाब ने हमारा सारा दिन ख़ूब अच्छा entertainment किया था।

कुछ स्पेशल ही यह दुकानदार भइया हुआ करते थे.. अक्सर हर सामान के लिए.. ” हाँ!” बोल भीतर छानबीन करने घुस जाते .. और अक्सर बाहर आकर यही जवाब किसी न किसी रूप में हुआ करता..” नहीं वो तो नहीं है! वो तो होता ही नहीं है!”

और अपने मन से क्योंकि जोड़ दिया करते.. 

उनका “क्योंकि” वाला उत्तर मुस्कुराने का हर बार कारण बन जाता.. बस! उस दुकानदार भइया की न जाने क्यों यही प्यारी सी बात.. हमें बिना कारण ही हर बार उन्हीं की दुकान पर ले जाकर खड़ा कर देती थी।

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