पाँच सदस्यों का एक प्यारा सा सबसे सुन्दर परिवार हुआ करता था हमारा। हम तीन बहन-भाई व हमारे प्यारे से माता-पिता। धीरे-धीरे हमारे माता-पिता और हम तीन-बहन भाईओं रूपी यह वृक्ष बड़ा हुआ.. और हम तीनों विवाह के बंधन में बंध गए। सबसे पहले तो बड़े भाई साहब का ही विवाह हुआ था.. माँ-बापू और हमारे इस वृक्ष पर एक छोटी सी टहनी हमारी भाभी की हमारे संग और जुड़ गई.. लोगों से और अन्य रिश्तों में सुना करते थे.. मूल से ब्याज प्यारा होता है.. सुनने में अच्छा लगता था.. और सुनकर मुस्कुरा भी दिया करते थे.. पर इस बात का अहसास हमें जब हुआ.. जब भईया- भाभी वाली टहनी पर हमारे भतीजे के रूप में एक प्यारी सी और नन्ही सी कोपल फूटी..

उस नन्ही सी कोपल को देख.. हमें हमारी ही टहनी का कोई प्यारा सा हिस्सा हो.. ऐसा अहसास हुआ था.. नन्हें भतीजे से बचपन से ही गहरा लगाव होता चला गया था.. दुनिया की कही हुई.. कहावत अब हम भी मानने लगे थे.. मूल से ब्याज प्यारा होता है।

वृक्ष घना होता गया.. और शाखाएं यूँहीं बढ़तीं चलीं गईं.. माँ-बापू और हम बहन-भाईओं वाला यह वृक्ष घना हो गया।

विवाह के बाद मायका छोड़ ससुराल मिल गया..  फ़िर किसी से सुन लिया.. अपना परिवार होने के बाद बाकी के रिश्ते थोड़े फीके से पड़ जाते हैं। खैर! ज़िन्दगी आगे चली.. भतीजे- भतीजी अब बड़े हो चले.. अलग-अलग शहरों में काम भी करने लगे.. अब दूरियों के कारण मुलाकात कम ही होती है..

पर कल अचानक हमारी नज़र हमारे भतीजे की इंस्टाग्राम पर डाली हुई.. स्टोरी पर पड़ी.. देखते ही पता चल गया.. छुट्टी मनाने घर आ रहा है..

भतीजे को स्टोरी में घर आता देख.. एकाएक हमारा वही बचपन वाला प्यार जाग गया था.. बड़ा न दिख कर हमें आज भी वही प्यारा सा छोटा सा मासूम भतीजा नज़र आया था.. जिससे ईश्वर ने बरसों पहले एक अटूट रिश्ता कायम किया था.. बस! घर आता देख, रहा न गया था.. और फोन लगा बैठे थे.. हालचाल जान कर बहुत खुशी हुई थी.. बेशक बड़ा हो गया था.. पर आज भी हमें फोन पर “बुआ..!” सुन वही बचपन वाली आवाज़ की मीठी सी मिश्री कानों में घुल गयी थी..

सच! कुछ रिश्ते जीवन भर की मिठास और अपनापन लिए हुए होते हैं.. जिनके प्रेम के मीठेपन का रस कभी फीका नहीं पड़ता।

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