बहुत ही चाव से मेरे यह हाथ, साउथ इंडियन खाना यानी के इडली सांभर की तैयारी कर रहे थे.. भतीजा जो आने वाला था। वादा किया था,” बुआ अबकि बार भोपाल आऊँगा! तो आपसे मिले बगैर नहीं वापिस जाऊँगा!”।

बस! वादे के अनुसार सवेरे ही आ पहुँचा था।

इडली-सांभर खाने का बचपन से ही बेहद शौकीन है, रुका न गया..

” बुआ मैं वहीं होटल में फ़्रेश होकर आया हूँ! बस! आप तो नाश्ता परोसो!’।

और गर्म-गर्म इडली-सांभर का स्वाद चखने के बाद..

” बढ़िया बनाया है! आपने!”।

नाश्ते के बाद, सर्दी की धूप में भीतेजे संग, मैं वहीं छत्त पर टहलने लगी थी। सांभर – इडली के नाश्ता का भी आनंद वहीं मस्त धूप में ही लिया था। अब बच्चे के हाल-चाल और खैर- ख़बर पूछ, मेरी नज़र.. जाड़े के मौसम में खिले.. मेरे terrace पर फूलों पर जा पड़ी थी, और पेड़ -पौधों की चर्चा अब हम बुआ भतीजों के बीच शुरू हो गयी थी।

” बुआ मैने भी बहुत से पौधे लगाए हैं! पर उनकी और अच्छी देखभाल के लिए, मैं सोच रहा हूँ! माली रखूं”।

” हाँ! माली रखना ही ठीक रहेगा! अच्छा… एक बात बताओ! तुम्हें मेरे इन फूलों में से सबसे सुंदर फूल कौन सा लगा!”।

” अरे! सभी तो सुन्दर हैं.. बुआ!”।

” नहीं! नहीं! एक बताओ!”।

” अरे! कहा न आपसे मुझे सभी सुन्दर लगे! मैं भेद-भाव नहीं करता!”।

इतना प्यारा से जवाब सुन, कि मैं भेद-भाव नहीं करता। मेरे चेहरे पर प्यार भरी मुस्कुराहट आ गयी थी। 

है! तो बचपन से ही हाज़िर जवाब.. पर यह प्यारी सी बात फ़िर एक याद का प्यारा सा हिस्सा बन गयी थी।

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