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Pushpa Tumhaare Lie

गौरव- गाथा 

सुबह-सुबह ही पहुँच गए थे, ये ! मैंने देखा था – आँखें प्रेम-रस में लवालव डूबी थीं. संयम का बाँध टूट कर सब बहा ले जाना चाहता था . लेकिन कुछ था ….चोर की कांख में छुपे खजाने-सा कुछ था – जिसे ये छुपाए खड़े थे.

कुनाल सो रहा था !

मैंने इन के हुलिए को पढ़ा था. दाढ़ी बढ़ी हुई थी. शरीर चोटों से भरा था . कपडे, अस्त-व्यस्त …बाल ….और हचमचाया हुलिया साफ़-साफ़ बयान कर गया कि ये सीधे युद्ध-भूमि से चले आ रहे थे.

वीर-स्तुति के अमर-गान मेरे कंठ में अटके थे. मैं बोल ही न पा रही थी. मेरा अजेय सैनिक – पति-पुरुष युद्ध जीत कर लौटा था. इन्हें वीर चक्र मिला था. ये तो आप ने भी अखबार में पढ़ा होगा …?

“पुष्पा, तुम्हारे लिए …..!!” इन की जुबान का ताला खुला था.

इन की हथेली पर एक छोटा, भव्य और भ्रामक …बॉक्स धरा था. मैंने उसे अतिरिक्त उत्साह के साथ निहारा था.

“क्या है ….?” मेरा प्रश्न था.

“खोल कर तो देखो ….?” इन का आग्रह था.

मैंने उस मोहक बाँक्स को खोला था. एक …वेशकीमती , रत्नजटित और खूबसूरत अंगूठी उस के पेट से बरामद हुई थी. उस अंगूठी को देख कर …..मैं हैरान-परेशान थी. न जाने कितनी कीमत होगी ….मैं सोचे जा रही थी….?

“गिफ्ट …फ्रॉम …द ….बैटल फील्ड ….!” इन्होंने मुस्करा कर कहा था.

“मैं ….समझी नहीं ……!” मैंने अचकचा कर पूछा था.

“यों समझो, पुष्पी ! कि ……कि ……दुश्मन की खोज-खबर लेने मैं अपने प्लाटून के साथ अँधेरी रात में अन्धेरा बन कर घुस गया था. बेखबर दुश्मन – अपनी जीत का जश्न मना रहा था. बंद बंकर में बैठे तीन लोग गपिया रहे थे –

“क्या लगता है , दिल्ली पहुँचने में ….? ये तो …बनाना स्टेट है ….और लोग हैं ….आम आदमी !! हा ..हा…हा …!!! पहले भी तो दिल्ली लुटती रही है …., यार !” उन में से – गंजा कह रहा था.

“मैं …तो …लखनऊ जा कर दम लूँगा , दोस्त! मेरे पर बाबा नबाब थे …..उन का इम्माम बाड़ा …….” चिकने ने कहा.

“ये देख , ब्बे …! निशानी है ….मेरे पास ….” चालाक लगने वाला – तीसरा बोला था. “मैसूर की महारानी की अंगूठी है – ये ! मेरे अब्बू ने उस की उंगली काट कर …..हासिल किया था. अब मैं इसे ….अपनी बेगम को ….भेंट करूंगा …..” वह कह रहा था. “ये लोग तो ….नपुंशक हैं ….! लड़ने के नाम से तो इन की रूह कांपती है !!”

“खबर है ,बेटा  कि …वो …..केप्टिन कर्म योगी ….भीतर घुस आया है ! लेकिन मरा है …या जिन्दा , पता नहीं चल रहा ….”

“जिन्दा पकड़ा गया तो ….इस की आँखें में निकालूँगा ….” गंजा बोला था. “देखना ! मैं इस की वो दुर्गति बनाऊंगा …..जो आने वाली नश्लें भी याद करें ….”

अब की बार मुझे रोष चढ़ा था, उस पर. लेकिन मैने अपने मौन को ली सौगंध की तरह नहीं तोडा था. वो तीनों अब मेरे निशाने पर थे. बंकर में टंगा सामरिक नक्शा मेरे मकसद में शामिल था. मैं सोच रहा था कि …..जब तक ये दिल्ली लूटें , मैं …….”

“इन की औरतें , यार ….!”  अब की बार चालाक ने मुंह खोला था. “मैं …मैं …..नहीं …मानूंगा ….जब तक कि …..”

अचानक इतिहास की आँख खुली थी ….और मैने  देखा था …….स्त्रियों के साथ होता बलात्कार ….मिलती मौतें ….चीखो -पुकार ….और खून-खराबा …! मेरे रोष का बाँध टूट ही गया, पुष्पि ! तुम तो जानती हो कि ….मैं ये बर्दास्त ही नहीं कर पाता  कि ….

“क्या किया , तुमने ….?”

“टांय …से गोली मारी …और टपका दिया , चालाक को ! फिर गोली मारी – गंजा गया !! और फिर ….वो चिकना मरा …!! ! मैं हवा की तरह उड़ा और सामरिक नक्शा गोल कर …….बाहर ….”

“फिर ….?”

अब हमें उस चक्रव्यूह से वापस आना था . चारों ओर उन की सैना लगी थी ….और …. हर रास्ते पर ….पहरा लगा था. बस निकलने ही वाले थे कि ….मैं …अचानक हवा में उड़ गया ! मैंने महसूसा  कि मैं किसी कांटेदार झाडी पर गिरा हूँ. जिन्दा था ….साबुत था ….पर था घायल ….! उधर प्लाटून पर मशीन गन की गोलियां क़यामत बन वरसने लगी थीं.

मैंने पाया , पुष्पि कि ….मशीन गन का बर्स्ट ….ठीक मेरे नीचे से निकल रहा था ! बस, ……एक ही हाथ में सब साफ़ ….!! हम आज़ाद ….!!! पहुँच गए तुम्हारे पास …..

“पर मैं न लूंगी …..ये लूट का माल …..!” मैंने न जाने क्यों क्रोध में आ कर ….उस वेशकीमती अंगूठी को फ़ेंक चलाया था.

“स्टुपिड …..!!” आदतन ये बस इतना ही कह पाए थे .

 

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