आदरणीय से पत्र
शुरू हो रहा
सादर चरण स्पर्श
पर ख़त्म होता था
मीठे बोलो से
भरे इस पत्र
में अपनेपन का
रस होता था
समय का पहिया
घूमा ऐसे
पत्र तो हो
गए बंद ही
जैसे
चैटिंग का ज़माना
है आया
पत्रों को जैसे
रोक लगाया
व्हाट्सप्प में
सिमटी सब बातें
स्टीकर और
दो शब्दों
में हो रहीं
मन की बातें
पत्र हो गए
अब भूली
बिसरी यादें
लाल पोस्ट-ऑफिस
जैसे हो गए
एक वक्त की
बातें
बातें तो वही
थीं अच्छी
प्यारी और
मन की सच्ची
लिफ़ाफ़े और
पत्र में
प्यार और सौगात
थीं जातीं
सच! अपनापन
और रिश्तों
को वापिस लिए
वो आतीं
तरक्की बहुत
अच्छी हुई
है
पर फ़िर भी
कहीं कुछ
कमी हुई
है!