Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

मुस्कुराहट

smiley face

आज के ज़माने में हमारे सभी के साथ बहुत सारी निजी परेशानियां लगी हुई हैं,कि हम खुल के मुस्कुराना भूलते से जा रहे हैं। महंगाई बढ़ती ही जा रही है, और हमारी भारतवर्ष का अधिकाँश आबादी का हिस्सा मध्यम वर्ग का है।लोगों के रोज़ के खर्चो की टेंशन ने ही मुस्कुराहट पर काबू पा लिया है। उच्च वर्ग की श्रेणी में जनसंख्या का बहुत ज़्यादा हिस्सा न आता है। उच्च वर्ग से बात आती है, खुशी और मुस्कुराने की, तो यह कहना मेरे हिसाब से बिल्कुल उचित न होगा कि पैसे से मुस्कुराया जा सकता है, या फ़िर खुशी खरीदी जा सकती है।जिन लोगों के पास पैसा होता है, उनके साथ उनके पैसे की तरह ही परेशानियां और टेंशन भी बड़ी होती हैं। क्या हैं, यह टेंशन और रोज़ मरहा की परेशानियां.. हर बड़े  बिज़नेस या फिर कोई छोटा कारोबार ,नौकरी, स्कूल, गृहस्त हर जगह बीमारी की तरह फैलती जा रही हैं। एक जमाना वो भी हुआ करता था, जब सब एक दूसरे से मिलते थे, हँसी ठहाके हुआ करते थे, मोबाइलों में गरदने न झुकी हुआ करती थीं। पहले टाइम में हमारी ज़िंदगी के तार एक दूसरे के साथ सीधे के सीधे जुड़े होते थे, लेकिन अब मीडिया का इतना ज्यादा चलन हो गया है, कि आपसी रिश्तों के तार भी मीडिया में से ही होकर जाते हैं। पता ही नहीं चल पा रहा है,कि कहाँ उलझती जा रही है, यह ज़िन्दगी। बहुत ज़्यादा तेज़ भागने का कोई फ़ायदा न होता है..होता वही है जो होना होता है। बीता हुआ पल और कल कभी लौट कर नहीं आते, आने वाले पल और कल में क्या होगा इसका हम अंदाज़ा लगा ही नहीं सकते…तो क्यों न दोस्तों बीते हुए पल और आने वाले कल के बीच के समय को थोड़ा सा मुस्कुरा कर निकाला जाए। मुस्कुराने के लिए आप समय निकाल कर कोई भी हँसी मज़ाक की किताब पढ़ सकते हैं, या फ़िर कोई कॉमेडी फ़िल्म देखकर अपना मूड चेंज कर सकते हैं। सबका अपना -अपना तरीका या फ़िर यूँ कह लीजिए अंदाज़ होता है, अपनी निजी जिंदगी से हट कुछ मुस्कुराते हुए पलों को शामिल करने का। पर मेरा अंदाज़ रोज़ मरहा की टेंशन से निकलने का थोड़ा सा अलग है। जब कभी मेरा मन पारिवारिक उलझनों में खो जाता है, या फ़िर आने वाले कल को लेकर मुझे चिंता सताने लगती है, तो मैं अपने जीवन के खोए हुए उन पलों में थोड़ी देर के लिये खो जाती हूँ, जिनके बारे में सोच और जिनकी तस्वीर अपनी आँखों में ला मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।वही मुस्कुराते हुए कुछ पल जो न सिर्फ़ मेरे बल्कि आप सभी मित्रों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाएँ बाटना चाहती हूँ।


मुझे अपने स्कूल का टाइम याद आ जाता है, जब हम क्लास में खूब मस्ती किया करते थे। एक बार की बात है,हमारी कक्षा में बच्चे बहुत ज़्यादा ही शोर मचा रहे थे बच्चों का हल्ला काबू ही नहीं हो रहा था..तभी मैने उस शोर के बीच चिल्ला कर कहा था,”मेम!!” और क्लास में एकदम शान्ति हो गई थी,तभी मैंने फ़िर से कहा था,”ओ!ओ!ओ!”यानी कि मेम तो आ ही नहीं रहीं थीं, मैने तो केवल बेफकूफ बनाने के लिए ऐसा बोला था।इस मज़ाक पर मेरे सभी मित्र ताली बजाकर हँस पड़े थे, और बोले थे,”आगे से करना तू ऐसा मज़ाक बताएँगे तुझे”। एक बार क्या हुआ कि हमें क्लास रूम में बेहद मस्ती करने का मन हुआ तो हमनें अपने आगे बैठे हुए साथी के स्वेटर पर चाक से 420 छाप दिया और साथ मे एक फटा हुआ पॉलिथीन भी बाँध दिया था, बस अब चुपचाप हमनें बाकी क्लास के बच्चों से सलाह कर ही ली थी, “की बताना मत,स्वेटर के पीछे 420″लिख दिया है, हमनें”।  अब तो हम अपने उस मित्र को पूरे स्कूल में उस 420 लिखे हुए स्वेटर के साथ घुमाते रहे, और बाकी सब भी हमारे साथ 420 और उस फटे हुए पीछे बंधे पॉलिथीन को देखकर ज़ोर-ज़ोर से हँसते रहे।सच!उस दिन तो हमारा हँस-हँस कर पेट ही फैट गया था।

अरे!क्या बताएँ हुआ यूँ कि हमनें अपने स्कूल के ज़माने में बहुत ही अच्छा दो खानों का लंच बॉक्स खरीदा था।हमारे बड़े भाई साहब बड़े ही शौक से हमारे लिए हल्के से क्रीम व ब्राउन कलर का प्लास्टिक का ऊपर नीचे खाने वाला टिफ़िन लेकर आये थे, हमारे दोस्तों को भी हमारा टिफ़िन बेहद पसन्द आया था। अब हुआ यूँ कि एक दिन लंच टाइम में हमारे मित्रों ने हमसे कहा,प्यार से हमें हमारी कक्षा में हमारे मित्रगण हमें मोटी बुलाया करते थे, खाते-पीते घर के जो लगते थे हम, हाँ!तो हमसे कहने लगे”बता मोटी आज तू लंच बॉक्स के ऊपर वाले खाने में क्या लेकर आई है”। हमनें कहा था,”कुछ नहीं खाली है, सिर्फ़ नीचे वाले खाने में ही लाये हैं”। मित्रों का कहना हुआ था”खोल-खोल ,खोलकर दिखा”। और जैसे ही हमनें अपने लंच बॉक्स का ऊपर का खाना खोला था, उसमें पहले से ही हमारे मित्रों ने काले रंग का नकली प्लास्टिक का स्कार्पियो रखा हुआ था,जिसको देख हमनें चिल्लाकर पूरी की पूरी क्लास सर पर ही उठा ली थी। हमारे ज़ोर से चिल्लाते ही सबके हँसी के ठहाके छूट गए थे..और कहने लगे थे,”अब आया मज़ा, बहुत मज़े लेती फिरती है, दूसरों के”। युहीं मस्ती भरे और मज़ाक भरी जिंदगी हुआ करती थी हमारी जब हम शिक्षा गृहण कर रहे थे।

एक बार की बात बतायें कि हमारी स्कूल बस में इतनी भीड़ थी, कि हम सब एक दूसरे से बुरी तरह से टकरा रहे थे,अब क्या हुआ कि कोई स्पीड ब्रेकर आया होगा तो ड्राइवर ने ज़ोरों से ब्रेक लगा दिया, जैसे ही ब्रेक लगाए कि हम सब ऐसे टकराये जैसे कि गले मिल रहे हों।एक दूसरे से गले मिल टकराते ही हमारे मुहँ से निकला था,”ईद मुबारक”और बस में फिर से एक बार हम सबकी हँसी न रुकी थी।
एक बार तो हमारे पड़ोस में ही ऐसा हुआ कि हमारी हँसी न रुकी थी। हुआ यूँ कि दो चार घर छोड़ सनी भइया रहा करते थे,जिनका कि अभी-अभी नया ब्याह हुआ था। भाभी को घुमाने के लिए मोटरसाइकिल निकाली और स्टार्ट कर खड़े हो गए थे,अब जैसे ही भाभी ने मोटरसाइकिल पर बैठने की पोजीशन बनाई भइया बिना ही पीछे देखे मोटरसाइकिल लेकर काफ़ी आगे निकल गए थे, भाभी वहीं की वहीं खड़ी देखती रह गयी थी।फ़िर बहुत देर बाद वापस लौट कर आये थे।हम हमारे घर की छत्त पर खड़े हो यह सब देख रहे थे, और हमारी हँसी न रुकी थी।

हुआ यूँ कि जब हम प्राइमरी स्कूल में पढ़ा करते थे, तो हम सिविल बस में स्कूल न जाकर आर्मी बस में जाया करते थे,क्योंकि हमारे पिताजी फ़ौज में अफ़सर थे..हमारी बस के ड्राइवर और कंडक्टर दोनों फौजी ही हुआ करते थे। खैर!होने भी थे, एक बार क्या हुआ कि हमारी बस के कंडक्टर भइया बदल गए थे, और एक आलसी से भइया आ गए थे, हमारा मतलब है,थोड़ा अजीब से ही थे,अब जैसे ही बस स्टॉप आता था तो विस्सल बजानी हुआ करती थी,पर इन वाले भइया ने क्या तमाशा शुरू किया कि चाहे बस स्टॉप आये या न आये स्पीड ब्रेकर आते ही जैसे ही गाड़ी स्लो ही जाती थी, ज़ोर-ज़ोर से विस्सल बजाना शुरू कर देता था। और कंडक्टर भइया की इसी अदा पर हम सभी बच्चे अपना-अपना मुहँ भींच खूब हँसा करते थे। अब हुआ यूँ कि कंडक्टर भइया ने स्पीड ब्रेकर आते ही जैसे ही एक दिन विसिल बजायी,तुरन्त ही ड्राइवर भैया ने गाड़ी सड़क के किनारे लगाकर कहा था,”क्या, मेजर स्टॉप आये या न आये विस्सल ही बजाने लग जाते हो”। इस पर कंडक्टर भैया ने पलट कर बोला था,”ठीक है, अब में विस्सल ही नहीं बजाऊँगा”। अब जैसे ही स्टॉप आया ड्राइवर भइया ने अपने ही दिमाग़ से बस रोकी पर कंडक्टर भइया ने बिल्कुल भी विस्सल न बजायी थी। कंडक्टर ड्राइवर की ये रोज़ की हरकतें हमें सुबह और छुट्टी के टाइम मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया करतीं थीं। और यूहीं हँसते मुस्कुराते हमारे दिन बीत रहे थे।

इन्हीं दिनों का एक क़िस्सा और भी है, मैं और मेरा छोटा भाई बराबर के हैं,ज़्यादा फर्क न है, हम दोनों में। हम दोनों बहन-भाई एक साथ ही रिक्शे में  जब कभी हमारी बस न आती थी,आया जाया करते थे। एक बार ऐसा ही हुआ कि हमारी बस खराब हो गयी और हमें रिक्शे से घर जाना पड़ा था। वैसे हमें उन दिनों बस से ज़्यादा रिक्शे की सवारी पसन्द आया करती थी। पर जब मैं और मेरा छोटा भाई रिक्शे में एकसाथ होते थे, तो हमारे बीच झगड़ा हुए बग़ैर नहीं रहता था। बस, तो ऐसे ही एक दिन हम अपने स्कूल से लौटते वक्त रिक्शे में ही थे,कि हमारे बीच किसी विषय को लेकर झगड़ा छिड़ गया था।हम दोनों रिक्शे में खूब झगड़ते चल रहे थे..कि अचानक हमारे रास्ते में एक गवर्नमेंट स्कूल आया जहाँ पर बाहर छुट्टी के टाइम ऑरेंज आइस-क्रीम बिक रही थी….जो उन दिनों गर्मियों में स्कूलों के आगे बहुत बिकती थी। हमनें भी खूब खरीद-खरीद कर खायीं हैं..मात्र पच्चीस पैसे से लेकर एक दो रुपये तक की कीमत की हुआ करतीं थीं। हाँ!तो झगड़ा तो हम दोनों में चल ही रहा था। हमारा झगड़ा देख रिक्शे वाले ने कहा था,”मुन्ना आइस-क्रीम खायेगा”?इस पर हमनें जवाब दिया और कहा,”नहीं, नहीं मुन्ना कुछ नहीं खायेगा”। फ़िर रिक्शे वाले भइया ने हमसे पूछा था,”मुन्नी आइस-क्रीम खायेगी?”इस पर मेरे भाई ने तपाक से उत्तर दिया था..” नहीं मुन्नी कुछ नहीं खायेगी”।इसी बात पर न जाने क्या हुआ कि हम दोनों और रिक्शे वाले भईया की हँसी छूट गयी थी। झगड़ा छोड़ हँसते हुए घर लौटे थे हम दोनों।


मित्रों इसी तरह के कुछ हल्की फुल्की हँसी और मज़ाक से जुड़े हुए पल हर किसी की ज़िंदगी में होते हैं, क्या हमें मिलना है,और क्या मिलेगा इस बात को लेकर जजमेंटल न होते हुए हमें अपने जीवन को मुस्कुरा कर बिताना चाहिए। हमारी ज़िंदगी परमात्मा के अनुसार ही चलती है, और परमात्मा हमारे कर्मों के अनुसार ही हमारी झोली में भिक्षा डालते हैं। हमारे आज कल और बीते हुए कल पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। जो चीज़ हमारे नियंत्रण में है,ही नहीं उसे छोड़ हमें अपने वर्तमान को और अपने आने वाले कल को हँसी की फुहार से सजाते हुए अपनी ज़िंदगी के सफ़र को तय करना चाहिए।


उन हँसी और मज़ाक के पलों को याद कर हँसे, हंसाए और मुस्कुराएँ बस यही जीवन है।


Exit mobile version