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मौन

कहानी –

‘मैं किसी विधाता से कम नहीं हूॅ , शुभु।’ उन की आवाज में दर्प था …दंभ था । ये उन की प्राप्त सफलताओं का गुंणगान था । ‘आंख उठा कर देख लो । डबली को मैंने प्रमोट किया। आज कहॉ है? और ये पीरा, नीरा और गुंजन फिल्म लाईन को मेरी ही देन हैं। ठाठ देखो – इन के ? मूंह मांगा पाती हैं। कल भूखी मरतीं थीं।’

‘सर । मैं भी एक कंगाल लड़की हूॅ। अनाथ हॅू।’ शुभु ने कातर आवाज में कहा था।

‘हा हा हा ….।’ वो अटटहास की हॅसी हॅसे थे। ‘और मैं कौन करोड़पति था?’ उन्हों ने दोनों हाथ शुभु के इर्द-गिर्द डाल दिये थे। वह जान गये थे कि शुभु उन्हें स्वीकार कर लेगी।

‘आप …..तो …..?’

‘अरे, लो। सुनो मेरी कहानी। मैं सूरत की सड़कों पर बूट पालिश करता था। बच्चा था …पर अनाथ नहीं था। मेरा बाप था। मॉंं थी । जो पैसे कमाता था बाप उस की दारू पी लेता था और मॉंं भीख मांग कर काम चलाती थी।’ उन्हों ने शुभु की ऑखों को पढ़ा था । एक सामंजस्य -सा बैठा लगा था ।

‘फिर …आप यहॉ …? आप इतने ……उंचे ……..’

‘ये भी सुनो। एक सेठ ने एक दिन पूछा – बम्बई चलोगे? मैंने फौरन ही जूता-पालिश बंद की और कहा -हॉंं चलूंगा।’

‘बैठाेे गाड़ी में।’ उस ने आग्रह किया।

‘और, शुभी। मैं …. उसी वक्त …वहीं सड़क पर ..मॉ-बाप के उस घटिया घर को छोड़ उस सेठ के साथ बम्बई चला आया था।’ उन्हों ने फिर से शुभु के चेहरे के बदलते रंग को देखा था। ‘मैंने फिर मुड़ कर नहीं देेखा।’

“सेठ ने आप को ..?” शुभू ने प्रसन्न होकर पूछा है। उसे लगा है जैसे इस अमीर सेठ ने दया की होगी और इन्हें यहॉं पहुँचा दिया होगा। आम कहानी में यही तो होता है!

“नहीं शुभू!” अबकी बार उन्होने उसे दुलार दिया था। “बहुत भोली हो, तुम!” उनका स्वर कृपालू था। “कोई किसी को कुछ नहीं देता, माई डियर!” उनकी आवाज बदली थी। “नो बॉडी हैल्प्स् यू!” उन्होंने ऑंखें नचाते हुए शुभू को चेतावनी दी है। “सेठ की पत्नी बीमार थी। एक बेटी थी। उन दोनों की सेवा के लिये मुझे लाया था। साथ में उसका भी काम था और फिर मैं काम में नाक तक डूब गया था।” वह तनिक हँसे थे।

“आपकी पगार ..?” फिर से शुभू ने एक नादान पृश्न पूछा था।

“हाहाहा” वह हँस पड़े थे। “पगार ..?” उनका चेहरा न जाने कैसा कैसा हो गया था। “मैने कहा न – यहॉं कोई किसी को कुछ नहीं देता!” उन्होंने फिर से शुभू को स्पर्श किया था। “हॉं! एक अहसान सेठ ने जरूर किया था – मेरे ऊपर!” वो रुके थे। उन्होंने शुभू को पास ले लिया था। “मुझे एक अनाथों के स्कूल में डाल दिया था। काम और आराम के बीच मैं स्कूल जाने लगा था। पढने लगा था।” वह चुप हो गये थे।

शुभू ने अपने आप को टटोलना आरम्भ कर दिया था!

ले दे कर शुभू की एक विधवा मौसी थी जिसने उसे पाल पोस दिया था। शिक्षा के नाम पर तो वह भी सुभानअल्लाह ही थी। लेकिन वह सुन्दर थी .. बला की खूबसूरत थी .. और .. अगर ..

“केवल एक ही बात थी जिसकी वजह से मैं सेठ की चाकरी करता रहा था!” वो कुछ सोच कर बोले थे। उनका चेहरा भी दप से जल उठा था।

“क्यों ..?” शुभू ने तनिक हँसते हुए पूछा था।

“सेठ की लड़की बीनू!” उन्होने बताया था। फिर कुछ सोचने लगे थे। “क्या चीज थी बीनू .. मैं तुम्हें बता नहीं सकता, शुभू!” उन्हांने हैरानी से कहा था। “बाय गॉड आज भी बीनू याद हो आती है .. तो मैं जाग सा जाता हूँ!” वह विहँसे थे।

“बहुत सुन्दर थी ..?” शुभू ने पूछा था। वह अपने आप को अचानक ही बीनू से नाप लेना चाहती थी।

“सुन्दर से भी अलग थी .. हटकर थी!” वो बताने लगे थे। “सेठानी बीमार रहती थी और सेठ घर से गायब! अकेली बीनू का ही राज था। मैं था – सो उसने मुझे अपना बना लिया था और थे – उसके दोस्त! अनेकों दोस्त! दिन के अलग रात के अलग!” उन्होंने शुभू को घूरा था। वह तनिक सिमिटी थी तो उन्होंने अपनी बाहों में ले लिया था।

लगा था – जैसे बीनू उन दोनों के बीच आ खड़ी हुई थी!

“करें गेम शुरू ..?” बीनू की आवाजें सुनने लगे थे वो।

उन्होंने अचानक अपना हाथ शुभू की गुदगुदी जॉंघ पर रख दिया था!

“मैं बन्द कमरे के दरवाजे की पतली दरार से भीतर का दृश्य देख रहा होता था – चुप चाप, सॉंस साधे! वो दोनों बहुत लम्बे पलों तक आलिंगन बद्ध रहते – फिर एक दूसरे को निर्वसन करते – और फिर ..” उनका हाथ चल पड़ा था। शुभू का शरीर एक कंपन को बरदाश्त कर चुका था। “मेरे साथ भी बीनू की दोस्ती थी।” वो हँसे थे। “नहाती थी तो कपड़े मुझी से मॉंगती थी। और जब मैं कपड़े देने जाता तो दरवाजा खोल कर खड़ी हो जाती। मैं उसे देखता .. देखता ही रहता! और अचानक मुझसे कपड़े छीन वह दरवाजा बन्द कर लेती!” अब उन्होंने शुभू को गले लगाना चाहा था।

“सर ..! फिर ..?” शुभू तनिक घबरा गई थी।

“स्कूल में जाकर मैं .. बस इन घटनाओं को लिखता! एक एक बात को जड़ता और हर हाव भाव का जिक्र करता! और फिर ..”

“फिर ..?” शुभू चाहती थी कि ये कहानी खत्म हाे।

“फिर .. एक रात एक के बजाय दो दोस्त पहुँच गये थे और झगड़े में बीनू की हत्या हो गई थी। उन दोनों के भागने से पहले मैं भाग निकला था। बीनू की कहानी बगल में दबाए दबाए मैं बम्बई में घूमते घूमते पागल हो गया था। खुर्शीद ने मुझे आवारा समझ कर ही तो पकड़ा था!” वो रुके थे। कहानी खत्म न हुई थी। शुभू को वह चूमने लगे थे।

“सर .. वो .. बात ..” शुभू शर्माई सिमिटी किसी तरह उनके आगोश से आजाद हो जाना चाहती थी।

“बात ही तो बता रहा हूँ!” वो मुस्कुराए थे। “इंटरेस्टिंग स्टोरी! खुर्शीद को तलाशी में बीनू की कहानी मेरी कमीज के भीतरी पर्त से प्राप्त हुई। उसे पढते ही वो कूदने लगा! उछल उछल कर मुझे देखने लगा! ‘वाह रे मेरे लाल’ उसने मुझे दुलार दिया था। और फिर खूब खाना नहाना .. लत्ते कपड़े और न जाने क्या क्या होने लगा था। वह फिल्म प्रोड्यूसर था। उसकी तलाश उसे मिल गई थी। और बीनू की कहानी पर उसने पहली फिल्म बनाई जिसने सारे इनाम जीते!” उन्होंने अब फिर से शुभू को आगोश में जकड़ा था। “वैसी ही फिल्म .. मैं भी तुम्हें लेकर बनाना चाहता हूँ शुभू!” उन्होंने उसे दुलारा था .. प्यार किया था। “निरंजन को मैंने साइन किया है .. जानती हो क्यों?”

“क्यों ..?”

“क्योंकि वह आज का बैस्ट रोमांटिक हीरो है!” वह हँसे थे। “मिलोगी तो पता चलेगा!” उनका वायदा था। “एक नजर में तुम्हें जीत लेगा ..”

मात्र निरंजन का नाम सुनते ही शुभू बावली होने लगी थी। उसे लगा था कि वो अचानक ही आसमान पर जा चढी है और निरंजन को आवाज दे रही है – यहॉं .. यहॉं आओ! मैं यहॉं .. इंतजार में खड़ी सूख रही हूँ! और फिर संवाद सज गये थे उसकी जुबान पर .. रस टपकने लगा था होटों से .. ऑंखें जैसे मद के भरे प्याले हों .. चहक उठी थीं। उसके अंग प्रत्यंग एक आनन्दमयी लहर से व्याप्त हो गये थे!

“ओह निरंजन! माई लव ..” शुभू संवाद बोल रही थी।

इस आनन्दातिरेक का अंदाजा तो उसे कभी था ही नहीं!

न जाने कितनी देर के बाद संन्नाटा लौटा था। और उस खामोशी में वह उनके खर्राटे सुन चौंकी थी। सो गये थे – वह और शुभू जाग रही थी! अपने आप को खोज रही थी – टटोल रही थी! खंडहर हो चुकी थी वह .. टूट टूट कर बिखर चुकी थी और .. निरंजन ..?

इतना अच्छा इंसान .. कलाकार .. प्रेमी और दृढ प्रतिज्ञ निरंजन जिसने उसे उठाया .. सहारा दिया .. सम्भाला – अचानक गुम कैसे हो गया? उसे पाने से पहले ही वह ..

“मर गया निरंजन ..?” वह उन से पूछ रही थी। ” कैसे .. कैसे .. मरा वह?” उसका पृश्न था। “वह तो .. वह तो .. कल मुझे ..” वह रोने लगी थी।

लेकिन उनका मौन नहीं टूटा था!

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