सबसे प्यारी और सबसे अनमोल चीज़ हर इंसान के लिए.. उसके माता-पिता ही होते हैं.. बचपन बड़ा प्यारा और सुखद बीतता है.. उन संग.. ऐसा लगता है.. माँ-बाप के साए में खड़े रहकर मानो कोई भी दुनिया का दुःख हमें छू भी नहीं सकता।

प्यारे बचपन के प्यार से बीतने के बाद जब जवानी माँ-बाप के संग गुज़रती है.. तो इस उम्र के पड़ाव में प्यार के साथ-साथ कहा-सुनी जगह ले लेती है.. बच्चा अपने माँ-बाप से ऊपर होकर ज्ञानी बनने लग जाता है.. और छोटी-छोटी बातों पर अपने माँ-बापू से बहस कर.. जीवन का पाठ पढ़ाने लगता है.. बच्चा भूल जाता है! या फ़िर अभी इतनी समझ आयी नहीं होती है.. उसमें.. कि ये मुझसे बड़े हैं.. मुझसे पहले से दुनिया देखी है.. इन्होंने!

और यहीं पर इस प्यारे और अनमोल रिश्ते में कभी-कभार मन-मुटाव आ जाते हैं.. और बहस में अच्छे-ख़ासे परिवार तक बिखर जाते हैं।

न माता-पिता कम पड़ते हैं.. और न ही बालक जो न ही अभी पूर्ण रूप से बड़ा हुआ होता है.. और न ही बच्चा रह रहा होता है..

माँ- बाप को भी कभी-कभार बच्चे की परिस्थिति समझते हुए.. कि अब यह मासूम परिंदा छोटा सा चूज़ा नहीं रह गया है.. अपने मन मुताबिक उड़ान भरना चाहता है.. और अपने हिसाब से पंख फैलाने की कोशिश कर रहा है.. बच्चे की मन की स्थिति समझते हुए.. माँ-बाप को थोड़ा ज़्यादा झुकते हुए.. प्यार भरे और अनमोल रिश्तों को संभाल लेना चाहिये।

क्योंकि यही जीवन चक्र है.. हेर-फेर कर सभी को एक न एक दिन माँ-बाप के सिंहासन पर बैठना है.. और माँ-बाप कैसा महसूस करते हैं.. अपने बच्चों की छोटी-छोटी प्रतिक्रियाओं पर.. यह कुदरती समझ आ ही जाता है।

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