इलेक्शन आने वाले हैं.. चारों तरफ़ राजनैतिक पार्टियाँ रैलियाँ निकालती रहती है। सुबह के आठ बजे से ही प्रचार शुरू हो जाता है। इलेक्शन संबंधी गाने-बजाने सुबह से ही बजने लगते हैं। वैसे देखा जाय तो अच्छा-ख़ासा रौनक मेला दिन निकलते ही शुरू हो जाता है। घर-गली के चारों तरफ़ टेम्पो व प्रचार की गाडियां घूमनें लगतीं हैं। हर राजनैतिक पार्टी क्या कहना चाहती है.. और कौन सा नेता क्या करेगा यह सब बातें कानों में पड़ती रहती हैं। घर-घर भी चुनाव में खड़े हो रहे उम्मीदवार आते रहते हैं.. और अपनी पार्टी की विशेषतायें बताते रहते हैं.. वोट अपील करते हैं.. और चले जाते हैं।

एक दिन कुछ ऐसा ही हुआ कि गली में ज़ोर-ज़ोर से ढ़ोल-नगाड़े बजने लगे थे.. मैंने सोचा.. होगी किसी के घर शादी-वादी.. चलो!.. गाना-बजाना बाहर निकलकर देखा जाए। जैसे ही मैं बाहर दौड़कर छत्त पर नज़ारा देखने पहुँची.. देखा!.. तो लाल रंग की बढ़िया साड़ी पहने गले में फूलों का हार पहनकर एक महिला ओपन जीप में चुनाव प्रचार कर रही थी। उसकी जीप धीरे- धीरे हर घर के सामने रुक रही थी.. और महिला अपनी पार्टी की विशेषता बताते हुए. अपने लिये वोट अपील कर रही थी। मेरे घर के सामने भी उसकी जीप आकर खड़ी हो गयी थी.. तो उस महिला को दूर से देखकर मैं सोच रही थी.. वही चीज़ सामने देखकर मैं तो हैरान ही रह गई थी.. दूर से देखने में ये महिला बिल्कुल मेरी माँ जैसी दिख रही थी.. वही छोटा कद, बॉब कट बाल.. चेहरे के हाव-भाव भी वही थे। “ अरे!.. यह तो सच निकला!.. ये तो एकदम ही माँ जैसी है..!”

मैंने अपने आप से कहा था। और कमाल तो यह था.. कि महिला थी.. भी लगभग माँ की ही उम्र की। मुझसे रहा न गया था.. जैसे ही जीप मेरे दरवाज़े पर चुनाव प्रचार के लिये रुकी थी.. मैं तुरंत भाग कर नीचे पहुँच गई थी।

“ माँ!”

मैंने पास जाकर कहा था।

“ हाँ!..  कैसी हो!.. हमें वोट देना बेटी!”।

महिला ने मुझसे कहा था।

“ आप तो बिल्कुल मेरी माँ की हमशक्ल लग रहीं हैं..!”

मैंने महिला से उनकी बातें सुनने के पश्चात कहा था।

“ हमशक्ल क्या.. बेटी माँ ही मानो मुझे.. माँ ही तो हूँ मैं तुम्हारी!… पर कुछ भी हो वोट हमें ही देना..!”

इतना कहकर और मेरे सिर पर हाथ फेरा था.. उन्होनें। चुनाव प्रचार की उनकी जीप अब मेरे घर से अगले घर पर जाकर रुक गई थी। मैं खड़ी-खड़ी देख ही रही थी। वैसे मैंने कभी एक बात पर विश्वास नहीं किया था… कि एक ही शक्ल के दुनिया में तीन लोग होते हैं.. पर आज इसका जीता-जागता उदहारण देखने को मिल गया। या फ़िर यूँ भी कहा जा सकता है.. कि आज मुझे मेरी माँ बहुत याद आ रही थी.. मैं यह सोच कर परेशान थी.. कि तुम मुझे छोड़ कर कहाँ चलीं गईं.. माँ!.. क्या कभी न लौटोगी!!..

और अचानक ही तुमनें मेरी पुकार सुन ली.. और अपनी हमशक्ल महिला के रूप में मेरे दरवाज़े पर आकर दर्शन दे गईं। जब-जब मुझे तुम्हारी याद आये.. तुम किसी न किसी रूप में यूँहीं मिलने आतीं रहना.. मुझे तुमसे ऐसे भी मिलकर अच्छा लगता है.. माँ!!

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