” छोटी सी बच्ची है.. मेरी सहे ली की भतीजी! उसका जन्मदिन है.. जन्मदिन की पार्टी में मुझे भी बुलाया है!”।

” अच्छा! तो कितने साल की है.. भतीजी!”।

मैने पूछा था।

” दो साल की!”।

” फ़िर तो किचन सेट या कोई गुड़िया वगरैह दे दो!”।

अब कोई खिलौनों से लेना-देना नहीं है। पर हाँ! मैं जब छोटी हुआ करती थी.. तो किचन सेट का तो मुझे भी बेहद शौक था। 

पिताजी से हमेशा ही एक किचन सेट की माँग रखा करती थी। 

और मेरे लिए, मेरी इच्छा को पूरा करते हुए.. पिताजी मुझे वो प्लास्टिक वाला किचन सेट ला दिया करते थे। रंग-बिरंगे प्लास्टिक के वो बर्तन और प्लास्टिक का गैस बड़ा ही प्यारा लगता था।

छोटे-छोटे उन बर्तनों में घर से लाकर नमकीन-बिस्कुट रख.. घर-घर खेलने में बहुत मज़ा आता था।

अब तो सच का किचन घर और गृहस्थी है। सभी तरह के बर्तन हैं। पर फ़िर भी वो प्लास्टिक के खिलौने वाले बर्तन और उस खेल-खेल में बसाई हुई गृहस्थी की बात आज भी आज से प्यारी और न्यारी है।

वो प्लास्टिक के छोटे-छोटे रंग-बिरेंगे सुन्दर बर्तन बचपन को फ़िर ताज़ा कर देते हैं। हर छोटा बर्तन सहेलियों संग खेले हुए.. घर-घर की कहानी को फ़िर दोहराता है।

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