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खुशबू

chulha

” ये vicks की बोतल किसने खाली कर दी!”।

” अरे! नानी आप को पता नहीं है! बछड़े के सिर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा था.. और ज़ुकाम से इसकी नाक भी गीली थी! तो मैंने यह vicks रखी देखी! और लगा दी!”।

यह सालों पुराना बचपन का नानी-घर का क़िस्सा याद कर.. मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी.. और सवेरे दूर से आती .. चूल्हे की खुशबू ने मुझे अपने गाँव में एकबार फ़िर ले जाकर खड़ा कर दिया था।

सच! जीवन तो बरसों पहले वहीं नज़र आया करता था.. हरे-भरे खेत और सवेरे चूल्हे पर ताज़ी सब्ज़ी छुकने की वो खुशबू.. वाह! मज़ा ही कुछ और था।

दुनिया ही अलग सी थी.. हमारी शहरी दुनिया से। गाँव के उस छोटे से समाज में अपनापन और रिश्ते बहुत ही प्यारे हुआ करते थे..  घर का वो आँगन जहाँ गाय और भैंस बँधी होतीं थीं.. और हमारी नानी.. समय से दूध निकाला करतीं थीं.. हम भी कम न पड़ते थे.. वहीँ नानी के पास जम कर खड़े रहते.. पूरा दूध कढ़ने तक।

” ला ! खोल मुहँ!”।

कह हमारे मुहँ में धार काढ़ कर डाल दिया करतीं थीं.. हमारी नानी!

भई! दूध का स्वाद तो वही था.. एकदम शुद्ध! शहरों में पैकेटों के दूध में कहाँ!!

कंडों में धुँए से धीरे-धीरे हड़िया में दूध के उबलने की वो खुशबू और चूल्हे पर लकड़ी लगा.. भोजन का वो स्वाद आज गैस के बने फ़टाफ़ट वाले खाने में कहाँ!

गाँव में जब शादी-ब्याह हुआ करते थे.. तो कढ़ी और घी वाले चावलों की खुशबू दूर तक उड़ जाया करती थी.. 

और पत्तल पर परोसी हुई.. दावत के जायके तो आजतक न भूलें हैं.. आजकल के बुफे सिस्टम में वो बात कहाँ!

आज भी दूर से आते हुए धुँए की वो खुशबू कुछ यादों को एकबार फ़िर ताज़ा कर जाती हैं.. और मन अतीत की यादों में बहुत देर के लिए.. खो कर रह जाता है।

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