इतनी बीमारी में और जिसमें की ख़ुद को होश नहीं था.. रामलालजी विनीत के साथ बैंक के चक्कर काट रहे थे। हालात यह हो गई थी.. कि रामलालजी विनीत के साथ गाड़ी में बैठकर बोलते चले जाते थे.. और पता रामलालजी को लग ही नहीं रहा था.. कि वे क्या बोले जा रहें हैं। कमाल ही था.. सब कुछ यहीं रह जाना था.. फ़िर भी बाबूजी का हिसाब-किताब ही पूरा नहीं होकर दे रहा था। सब कुछ एक समय पर मिट्टी हो जाता है, कुछ भी साथ नहीं चलता.. बहुत अच्छी तरह से इस सच से वाकिफ़ होने पर भी इंसान की मोह माया नहीं छूटती। हालात बहेद नाज़ुक होने पर भी और यह अंदेशा होने पर भी रामलालजी विनीत के साथ गाड़ी में बैठकर अपना बैंक एकाउंट चेक करने निकल गए थे। घर लौटकर एक बार फ़िर बुरे हाल हो चुके थे.. और डॉक्टर को इंजेक्शन देने घर बुलाया गया था। पिता इतनी सीरियस हालात में थे, माँ नए-नए कपड़ों में घूम रहीं थीं, और रमेश जी को तो रंजना के साथ दूल्हा बनने से ही फुरसत नहीं थी। करोड़पति बाप होते हुए..भी रामलालजी की परिवार में एक आने की इज़्ज़त नहीं थी.. जिसमे की पैसे के आगे दुनिया नाचती है.. और वसीयत भी अभी तक कोई नहीं बनी थी।

जो भी था.. सुनीता हर दिन की तरह ही सवेरे सबसे पहले जब रसोई में पहुँची थी.. तो रोज़ की तरह बाबूजी ने सुनीता को आवाज़ नहीं लगाई थी.. एकदम शाँत माहौल था..  सास-ससुर दोनों ही अपने-अपने कमरों में सो रहे थे। सुनीता ने अपना काम ख़त्म किया था, और ऊपर आ गई थी।

कमरों की शांति से लग रहा था.. मानो रामलालजी की तबियत ठीक-ठाक हो।

सुनीता ने अपना रोज़ का काम निपटा लिया था. . और रमेश हमेशा की तरह से टिप-टॉप होकर रंजना से मिलने जाने की तैयारी में था। सुनीता नीचे आकर सब्जी-भाजी बनाने की तैयारी करने में लगी थी.. पर उसे रामलालजी हॉल के तख्त पर लेटे हुए.. जब दिखाई नहीं दिये, तो सुनीता ने दौड़ते हुए.. सासू-माँ का दरवाज़ा खटखटाया था,” अम्माजी! बाबूजी नहीं दिख रहे!”।

दर्शनाजी ने सुनीता को देखकर और उसके रामलालजी को लेकर प्रश्न को सुनकर ऐसा मुहँ बनाया था, कि एक बार को सुनीता अपनी सास का चेहरा देखकर डर ही गई थी।” अस्पताल जा रया है! विनीत संग.. इंजेक्शन लगवान ख़ातिर!”।

रामलालजी विनीत के साथ एकबार फ़िर से इंजेक्शन लगवाने सफ़ारी में बैठकर निकल गए थे।” बापू घना सीरियस है! दूसरे अस्पताल में लिये खड़ा हूँ”!

थोड़ी देर बाद ही विनीत का फ़ोन आ गया था.. कि रामलालजी एकदम सीरियस हो गये हैं.. और वो उन्हें दूसरे अस्पताल में लेकर खड़ा है.. अभी विनीत की बात को पूरे हुए.. कुछ ही मिनट हुए थे.. कि दोबारा फ़ोन आ गया था.. रमा अपने कमरे से बताने के लिये दौड़ती हुई आई थी,” बाबूजी नहीं रहे!!”

सुनीता और दर्शनाजी वही खड़ी थीं.. और माहौल क्रंदन में बदल गया था। रामलालजी को विनीत घर ले आया था, और उन्हें हॉल में लिटा दिया था.. आने-जाने वालों का तांता लग गया था.. पर फ़िर भी जिस हिसाब से रामलालजी फैक्ट्री के मालिक थे.. उस हिसाब से उन्हें अलविदा कहने के लिये उनके दरवाज़े पर भीड़ नहीं जमा हुई थी। रमेश भी रंजना के पास से ख़बर पहुँचते ही घर आ गया था। रामलालजी को अंतिम विदाई देने के लिये.. विनीत, रमेश जानकार और प्रहलाद भी संग गए थे।

घर में दुःख के साथ-साथ एक बात गौर करने योग्य थी, और वो यह कि घर के सदस्य दुःखी होने के साथ-साथ थोड़ा सा सुकून और आराम महसूस कर रहे थे, चलो! मालिक तो रस्ते से हट गया.. अब आराम से हिस्सेदारी करेंगें!

घर में शोक था.. और रमेश रंजना के साथ आराम से बढ़िया जायकेदार भोजन करके घर देर रात को हमेशा की तरह लौटा था। अगले दिन रंजना को उन लज़ीज़ सब्जियों के डिब्बे सवेरे देखने को मिल गए थे।

“ मैथी का पराँठा खाकर निकला था। निकाल मेरा हिस्सा!!”।

रामलालजी ने अपनी अंतिम विदाई ले ली थी.. परिवार में शोक के बजाय एक सुकून और हिस्से को लेकर एक उत्सुकता बन गई थी.. हर आदमी अपनी तरह से दुःखी होने की बजाय खुश था। परिवार में कौन किस तरह से अंदर ही अंदर खुश हो रहा था.. किस व्यक्ति विशेष की सोच कहाँ घूम रही थी.. जानने के लिये यूँहीं जुड़े रहिये हमारे खानदान के साथ।

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