रमेश का पैर तेज़ी से लाल होता जा रहा था, और सूजता जा रहा था.. ऐसा लग रहा था.. मानो पैर ही फट जाएगा। सुनीता रमेश के नज़दीक बैठकर लगातार ही सूजते हुए पैर को देखे जा रही थी.. पैर को तेज़ी से सूजता देख, सुनीता ने रमेश को मलहम घिसने से मना किया, और कहा था,” मुझे तो कोई और ही माजरा लग रहा है! आप यह मलहम घिसना बन्द कर दो!”।

“ मुझे चलना सिखाने की ज़रूरत नहीं है!”।

रमेश ने सुनीता को चुप करते हुए कहा था।

रमेश के सुनीता को डाँटने के बाद भी सुनीता की नज़र पैर पर से नहीं हटी थी.. पैर तेज़ी से लाल हो रहा था.. और बुरी तरह से सूजकर चमकने लगा था। अब सुनीता ने रमेश की एक न सुनी थी.. और तेज़ी से रामलालजी और दर्शनाजी के पास नीचे भागी थी।

“ देखिये! बाबूजी उनका पैर तेज़ी से सूज रहा है.. लाल होता जा रहा है! ऐसा लग रहा है.. मानो फट जाएगा!’।

“ यो भी तो मरण लाग रिया से!”।

दर्शनाजी ने रामलालजी से बात करते वक्त सुनीता की बात काटते हुए.. कहा था.. कि ये भी मरने को ही हो रहे हैं.. इनकी भी तबियत बहुत ख़राब है।

“ हम क्या करें! ले जाओ! एम्बुलेंस बुलाकर अस्पताल!”।

रामलालजी ने सुनीता से चिल्लाकर कहा था।

“ इसनें 108 नंबर में धर के ने ले जा!”।

दर्शनाजी और रामलालजी दोनों ने ही रमेश को 108 यानी के एम्बुलेंस बुलाकर रमेश को लेकर जाने के लिये कहा था। बात करने के लहज़े से ऐसा लग रहा था.. कि माता-पिता को रमेश से कोई लेना-देना ही नहीं था.. मरे या जिये उनकी बला से।

खैर! सास-ससुर के मधुर स्वर सुनकर सुनीता ऊपर ही रमेश के पास आ गई थी.. और दोनों ने रात गुज़ार कर सवेरे ही डॉक्टर के पास जाने का निर्णय ले लिया था। रमेश ने पास के ही हड्डी रोग विशेषज्ञ का पता कर, उनसे समय लेकर अगले दिन ही सुनीता के साथ पहुँच गया था। दर्शनाजी रमेश और सुनीता को बाहर तक छोड़ने आयीं थीं.. चेहरे पर बेटे के पैर की चिंता न होकर एक अजीब सी खुशी झलक रही थी.. मानो मन ही मन सोच रहीं थीं,” चलो! इसका भी पत्ता आसानी से साफ़ हो जायेगा.. बस! मामला फिफ्टी-फिफ्टी का ही रह जाएगा।

रमेश और सुनीता डॉक्टर के पास पहुँच गये थे। डॉक्टर रमेश के पैर को देखकर एकदम हैरान रह गया था। “ काफ़ी तगड़ा इन्फेक्शन लगता है!”।

डॉक्टर ने कहा था।

“ डॉक्टर साहब! दवाइयों से ही ठीक हो जाएगा न! अस्पताल में दाख़िल होने की ज़रूरत तो न पड़ेगी!।

सुनीता ने घबराहट के साथ डॉक्टर से पूछा था।

“ देखिये मैडम! मैं कुछ टेस्ट लिखे देते हूँ..  आप ये सारे टेस्ट कराकर और इनकी रिपोर्ट के साथ मेरे पास दोबारा आइयेगा!”।

रमेश और सुनीता ने डॉक्टर को बता दिया था.. कि इसी पैर का पहले भी एक्सीडेंट हो चुका है.. और इसी इन्फेक्शन वाले पैर में रॉड डली हुई है।

डॉक्टर ने बस! पैर के सबसे नीचले हिस्से में कट मारकर इन्फेक्शन वाले एरिया से पस बाहर निकाल दिया था.. और टेस्ट कराने की हिदायत देते हुए.. घर भेज दिया था।

अगले दिन ही सारे टेस्ट करा, और उनकी रिपोर्ट लेकर सुनीता और रमेश एकबार फ़िर से डॉक्टर के पास पहुँच गए थे। अबकी बार रमेश की रिपोर्ट्स देखकर डॉक्टर एकदम भौचक्का रह गया था, और अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए बोला था,” मैडम! ब्लड में इन्फेक्शन हो गया है.. अगर जल्द ही इन्हें पास के अस्पताल में भर्ती नहीं करवाया गया.. तो पैर काटना पड़ सकता है। आप कल ही अस्पताल ले जाएँ.. इनके पास समय नहीं है।  

यह बात सुनते ही रमेश और सुनीता घर आ गए थे, और घर आते ही दोनों ने रामलालजी को ब्लड इन्फेक्शन वाली बात बता दी थी.. पर कमाल की बात यह थी, कि रामलालजी डॉक्टर की कही हुई बात मानने को ही तैयार नहीं थे।

“ आप यहाँ अपने हस्ताक्षर कर दें.. अगर मरीज कल को नहीं रहते.. तो हमारी कोई ग़लती नहीं होगी!’।

कैसा दिमाग़ था.. रामलालजी का.. रमेश का पैर क्या उन्हें दिखाई नहीं दे रहा था.. पैर की इतनी बुरी हालत, और पिताजी ब्लड इन्फेक्शन को लेकर न जाने कौन से सबूत माँग रहे थे। कमाल के माँ-बापू निकले रमेश के! अभी तो आगे-आगे और कमाल दिखाने वाली थी.. यह रामलालजी की नाटकबाज फैमिली। रामलालजी के परिवार के नाटकों की रंगीनियाँ देखने के लिये जुड़े रहिये खानदान के साथ।