करवाचौथ जैसे पवित्र त्यौहार को रमेश ने त्यौहार न रखकर नाटक में परिवर्तित कर दिया था। सुनीता का करवाचौथ को लेकर सारा जायका ही ख़राब हो गया था.. नतीजा यह हुआ था.. कि सुनीता ने करवाचौथ का व्रत रखना ही बन्द कर दिया था। हालाँकि सुनीता परिवार में थी.. और दर्शनाजी जैसी सासू-माँ का साथ था.. इसलिये घर में एक और नाटक न हो, और इस बात पर कोई रमेश के कान नहीं भरे.. सुनीता करवाचौथ पर केवल व्रत का नाटक करने लगी थी। रंजना के आने से परेशान एक बार सुनीता ने अपनी परेशानी के बारे में वरुण से बात करनी ठीक समझी.. और अपना नाम न बताते हुए.. उसनें किसी सहेली को परेशान बताते हुए.. वरुण से सलाह माँगी थी। “ ऐसे मामलों में केवल समझाया ही जा सकता है, आप अपनी सहेली के पति से बात करके देखो! और उन्हें समझाओ.. शायद वे मान जाएँ”।

वरुण ने मॉर्निंग वॉक पर सुनीता के पूछे जाने पर उसको सलाह देते हुए कहा था। सुनीता सलाह सुन चुप-चाप ही घर आ गई थी.. अब क्या करती.. घर में तो वही माहौल था.. रमेश बाबू की पिकनिक तो रंजना के संग बढ़िया चल रही थी। जो भी पैसे-धेले रमेश दर्शनाजी की आख़िरी ज़मीन बेच कर लाया था.. तेज़ी से अपनी आशिकी पर उड़ाये चल रहा था। इधर घर में रामलालजी की तबीयत दिन-रोज़ ख़राब होती जा रही थी। रमेश का व्यव्हार भी अब पहले से भी ज़्यादा भद्दा और वाहियात हो चला था। रमेश बच्चों के खर्चे के पैसों से अब रंजना की तृप्ति पहले करने लगा था.. अपनी पिकनिक मना कर ही घर में घुसने लगा था.. और घर में घुसते ही बदतमीज़ी से चिल्ला कर बात करता था। प्रहलाद का रमेश पर लड़की को लेकर ग़ुस्सा बढ़ता चला जा रहा था.. और अब रंजना को सुनीता भी उल्टा-सीधा सरेआम बोलने लगी थी। क्योंकि, रमेश अपनी माँ का ख़ास पालतू था.. और सारे नाटक की रचियता दर्शनाजी ही थीं.. रमेश के माँ को दी हुई रिपोर्ट पर दर्शनाजी ने बेझिझक होकर रमेश को अगले धमाकेदार परफ़ॉर्मेन्स की अनुमति दे दी थी। रमेश ने आँव देखा था, न तांव.. और ऊपर बौखलाए हुए कुत्ते की तरह घुस कर सुनीता से अपनी माँ के सिखाए हुए.. अंदाज़ में बदतमीज़ी से ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर बात करने लगा था, रमेश का अंदाज़ देख.. सुनीता का ग़ुस्सा काबू न हुआ.. और वो भी रमेश को बदले में कुछ कह कर सीधी कमरे से बाहर निकल गई थी। सुनीता का कमरे से बाहर निकलना ही हुआ था.. कि रमेश तुरंत कमरे से निकला.. और सुनीता के गाल पर पूरा ज़ोर देते हुए.. तेज़ी से थप्पड़ रख दिया था। रमेश ने सुनीता को थप्पड़ इतनी ज़ोर से मारा था.. कि थप्पड़ लगते ही सुनीता की आँखों के आगे जैसे बिजली सी चमक गई थी.. थप्पड़ सुनीता के गाल पर न लगकर सीधा आँख पर जा लगा था.. वो तो ईश्वर का लाख-लाख शुक्र था.. की सुनीता की आँख फूटने से बच गई थी.. पर आँख का रंग गहरा लाल पड़ गया था। आँख पर थप्पड़ पड़ते ही सुनीता दर्द से चिल्ला उठी थी..

“ आह!!  आह!! मेरी आँख!”।

सुनीता की आवाज़ सुन बच्चे दूसरे कमरे से बाहर निकल आए थे। प्रहलाद माँ की आँख को लाल और सूजा देख.. ग़ुस्से में लाल-पिला हो गया था। बच्चे ने फ़टाफ़ट अंदर कमरे में जाकर वेब कैमरा ऑन करते हुए कहा था,” मम्मी! आप अंदर आ जाओ! अभी दिल्ली नानाजी से ऑनलाइन आपकी बात करवाता हूँ.. जब वो लोग आपकी आँख देखेंगें.. तब इसको मज़ा आएगा”।

प्रहलाद के ग़ुस्से ने प्रहलाद को पिता के ख़िलाफ़ अपशब्द बोलने पर मजबूर कर दिया था। सुनीता ने प्रहलाद की बात न मानते हुए.. कहा था,” रहने दे.. बेटा! नानाजी लोगों को तकलीफ़ होगी.. इसका इलाज हम ही कर देंगें!”।

पूरे घर ने तमाशे का एक बार फ़िर से मज़ा लिया था।

“ रुक जा! मैं तेरी अभी पुलिस में कंप्लेंट कर के आती हूँ!”।

सुनीता ने रमेश से अँगुली दिखाकर कहा था।

रमेश पुलिस का नाम सुनते ही भाग खड़ा हुआ था। और रंजना के पास जाकर सुनीता को फ़ोन करके बोला था,” अरे! ये लड़की कुछ भी नहीं है!! बस! मेरे लिये एक प्यार की मूरत है!! ये मुझे अच्छी-अच्छी बातें सिखाती है!!”।

सुनीता ने रमेश की एक भी बात नहीं सुनी थी, सबसे पहले सुनीता भागती हुई नीचे गई थी, कोई भी सुनीता की मदद को तैयार न था..” इस आँख पे मलहम लगा ले!!”।

दर्शनाजी ने सुनीता की सूजी हुई और लाल हो रखी आँख पर ख़ुश होते हुए.. लेकिन नाटकीय अंदाज़ में सहानभूति दिखाते हुए.. दवाई लगाने के लिये कहा था।

इस वक्त सुनीता और बच्चों का ग़ुस्सा काबू से बाहर था.. रमेश तो रखैल के पल्लू में जाकर छुप ही गया था.. केवल रामलालजी ने सुनीता से कहा था,” रुक जाओ! Time is honey.. समय सब ठीक कर देगा”।

पर सुनीता के कदम थाने की ओर बढ़ गए थे.. वो रुकी ही नहीं थी।

“ या तो आप का हस्बैंड सीधा आ जाएगा.. नहीं तो उसे उठा लाएँगे.. उसकी गर्ल फ़्रेंड को भी नहीं छोड़ेंगे!!”।

बहुत ही बुरा हुआ सुनीता के साथ! पर बार-बार एक ही ग़लती आँख बन्द करके क्यों दोहराए जा रही थी.. सुनीता.. घर भी रमेश के साथ ही बसाना था.. और मामले की बारीकी को भी नहीं समझ रही थी.. दर्शनाजी जैसी खतरनाक और क्रिमिनल माइंड औरत रमेश को चला रही थी.. ये औरत पैसे के लिये.. और हिस्सेदार को ख़त्म करने के लिये, किसी भी हद तक जा सकती थी.. उसी घर में रहते हुए.. रमा और विनीत का भी घर बस गया था.. वो कैसे संभव हो गया था.. सुनीता के कानों में परमात्मा की आवाज़ क्यों नहीं जा पा रही थी.. जो बार-बार सुनीता को आगाह करते हुए कह रहे थे,” हथियार डाल दो सुनीता!!  मत ले पंगा!! अपने आप तुझे सब ठीक करके दूँगा!!’

भगवान करे सुनीता यह परमात्मा की आकाशवाणी सुन ले.. और ईश्वर उसे बुद्धि दें।

खैर! जो भी घटिया नाटक चल रहा हो.. पर रामलाल विला में केवल एक ही चीज़ अच्छी थी.. और वो थे.. उनके अनोखे त्यौहार मनाने के ढँग। अगर आप जानना चाहते हैं.. कि आने वाला होली का त्यौहार रामलाल विला में कैसे मनाया गया.. तो फ़िर जानने के लिये पढ़ते रहिये खानदान।

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