घर में पुलिस आ जाए.. या फ़िर पुलिस का बाप!.. माँ-बेटों के ड्रामे बुलंदी पर थे। वैस देखा जाए.. तो कमाल ही था.. एक अनपढ़ गँवार औरत ने सारे घर को अपने पालतू कुत्ते के साथ मिलकर छोटी अँगुली पर नचा रखा था। प्रॉपर्टी न हो गई.. जैसे तमाशा ही हो गया हो.. फैक्ट्री क्या खड़ी कर लीं थीं.. अम्बानियों को भी मात दे रहे थे। सब क़िस्मत का खेल होता है.. बेशक आदमी में मुहँ धोने अक्ल न हो.. पर सिर पर परमात्मा का हाथ होना चाहये।
दर्शनाजी का परचम घर में लहरा रहा था.. उधर विनीत रामलालजी की बीमारी का फ़ायदा उठा.. फैक्ट्री को टेकओवर करने की प्लानिंग कर रहा था.. यह बात अंदर ही अंदर रामलालजी जानते थे। पर रामलालजी ने यह बात कभी अपने मुहँ से बाहर न आने दी थी। रामलालजी और दर्शनाजी को अच्छी तरह से पता था.. कि विनीत फैक्ट्री में किस तरह से पैसे खींचता है.. पर रमा, दर्शनाजी विनीत और रामलालजी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे थे.. रमेश का अलग ढँग से नमूना खींच रखा था। रामलालजी के पेट की बीमारी के लिये.. उन्हें कई डॉक्टरों को दिखाया गया था। एक बार तो उनका पेट इतना फूल गया था.. कि कई दिन तक उन्हें अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। “ पापे सिरियस है!”।
दर्शनाजी ने तो रामलालजी का गाना ही बना दिया था। जगह-जगह खड़े होकर बताने लगीं थीं.. पापा बहुत सीरियस है.. कभी-भी कुछ भी हो सकता है। इसमें कोई भी शक नहीं था, कि रामलालजी की तबियत बहुत ख़राब थी.. पर पत्नीजी इस क़दर लोगों में खुश होकर बतातीं थीं.. मानो कोई ख़ुश खबरी सुना रहीं हों। भई!.. ख़ुशी तो होती ही है.. अगर फैक्ट्री के मालिक को कुछ होता है.. तो ख़ाली पोस्ट के लिये मैडम तैयार जो खड़ीं थीं। वैसे तो रामलालजी के बीमार होने पर सभी घर के सदस्य ख़ुश दिखाई देते थे.. सबके चेहरे देखकर ऐसा लगता था.. मानो रामलालजी के लिये कह रहें हो.. चलो!.. रास्ते का कांटा हट जाएगा। रामलालजी ने भी अपनी बीमार हालात में कई बार कहा था,” वकील को बुला लाओ!”।
पर ऐसा वो सिर्फ कहा करते थे.. करा उन्होंने कुछ भी नहीं। अब परिवार के मुखिये की तबियत के उतार-चढ़ाव तो चल ही रहे थे.. पर थोड़ा सा ठीक महसूस होने पर रामलालजी फैक्ट्री का हिसाब-किताब करने ज़रुर जाया करते थे।सुनिता थोड़े दिन के लिये दिल्ली जाकर वापिस आ गई थी.. “ अरे! घर में नई सफ़ारी खड़ी है!”।
सुनीता ने घर में दस-लाख की सफ़ारी खड़ी देखकर हैरानी जताई थी। यह सफ़ारी विनीत को रामलालजी ने कंपनी के नाम ख़रीदवाई थी।” इन्होंने एक लेबर के साथ मिलकर दस-लाख का काम किया था.. इसलिये इन्हें दादु ने यह सफारी दिलवा दी”। रमा ने कहा था।
बच्चों का पिकनिक जाने का मन था.. सुनीता ने रमेश से बच्चों के पिकनिक जाने की इच्छा ज़ाहिर की थी। रमेश भी बात मान गया था। पर हैरानी की बात यह थी.. कि घर में मुकेशजी वाली मारुति कार खड़ी थी.. फ़िर भी रमेश ने रामलालजी वाली गाड़ी की ज़िद्द करी थी.. जिसकी चाबी रामलालजी ने रमेश को देने से मना कर दिया था।” मुझे अभी सब्ज़ी लेने जाना है”। रामलालजी ने कहा था।
“ तू देखिए!.. गिने दीना भीतर सबते बड़ी गाड़ी लाऊंगा!”।
रमेश ने अपने पिता से कहा था।
अब दर्शनाजी की एक और ज़मीन बेचने का नम्बर था.. और रमेश एक बार फ़िर हरियाणे निकल गया था।
“ पापा ने नई सफ़ारी ख़रीद ली!!”।
बच्चों ने सुनीता को रमेश के फ़ोन पर कही हुई बात बताई थी।
“ तेरह-लाख की सफ़ारी साढ़े-तीन लाख में!!”।