घर में खबर आ गई थी, कि रमेश का एक्सीडेंट हो गया है.. और उसे वहीं से हड्डियों के अस्पताल ले जाया गया है। सुनीता भी रमेश अस्पताल में है.. यह सुनकर नीचे हॉल में आ गई थी.. और रमा की लड़कियों से पता करने में लगी हुई थी.. कि आख़िर रमेश को हुआ क्या है। रामलालजी और विनीत अभी अस्पताल में ही थे.. अभी तो सुनीता की बातचीत ख़त्म भी नहीं हुई थी.. कि दर्शनाजी अन्दर कमरे से नाटक करतीं हुईं बाहर निकलीं थीं.. सासू-माँ की आँखों में तो देखने के लिये भी एक भी आँसू नहीं दिखाई दे रहा था..  पर ड्रामे में उन्होनें कोई भी कसर नहीं छोड़ रखी थी।” मेरे उल्टी लाग री सें..!!.. हाय!.. तन्ने के हो गया.. रमेश!”।

उल्टी, और पता नहीं क्या-क्या हो गया था.. सासु-माँ को.. कोशिश और डायलॉग सभी बहुत अच्छे थे.. पर चेहरे की खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी.. चेहरा तो एक्सीडेंट के बारे में सुनकर गुलाब की तरह खिल गया था। क्या कारण था.. दर्शनाजी के यूँ अंदर से खुश और बाहर से दुख का नाटक करने का.. अरे! भई!.. बात एकदम साधारण सी ही तो थी.. कौड़ी प्रेमी औरत थी.. दर्शनाजी!.. बेटा जाय भाड़ में!..  संपत्ति में तो एक हिस्सेदार कम करना था.. फैक्ट्री की मालकिन बनने का जो सपना देख रही थी.. बेचारी!.. रात और दिन.. भली-भाँति जानती थी.. बेचारे पति की तो कोई औकात है.. नहीं!.. मैडम के आगे।

खैर! अस्पताल से रामलालजी और विनीत घर आ गए थे। रामलालजी ने सुनीता को अस्पताल चलने को और वहीँ पर रमेश के संग रूकने के लिये कहा था। सुनीता ससुरजी का कहा मान चलने के लिये तैयार हो गई थी। रामलालजी और विनीत ने सबको बता दिया था.. “ पैर की हड्डी टूट गई है.. हल्का सा फ्रैक्चर है.. डोक्टरों ने कहा है.. पैर में रॉड डालेंगे ठीक हो जाएगा”।

इतनी बात सबको बताकर सुनीता और रामलालजी आधी रात के बाद अस्पताल के लिये निकल गए थे। रामलालजी सुनीता को अस्पताल छोड़ घर वापिस आ गए थे.. ‘ कल विनीत के साथ घर वापस आ जाना”। रामलालजी ने सुनीता से कहा था।

सुनीता रमेश से मिलकर हैरान हो गई थी..  पैर में इतनी भयंकर और ज़ोर से चोट लगने पर भी रमेश के चेहरे पर कोई भी दर्द नज़र नहीं आ रहा था.. चेहरे से दर्द का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता था। कमाल का तेज और कॉन्फिडेंस झलक रहा था.. चेहरे पर।” कमाल की हिम्मत है!.. इस आदमी की. . मानना पड़ेगा ”। सुनीता ने रमेश से मिलकर मन ही मन सोचा था।

रमेश ने सुनीता को हुई घटना का पूरा ब्यौरा दिया था। डॉक्टरों ने सुनीता को आपरेशन वाला दिन बता दिया था.. जिस दिन रमेश के पैर में रॉड डलनी थी। अगले दिन जब रामलालजी अस्पताल में आए थे.. तो डॉक्टरों की बताई हुई बात सुनीता ने अपने ससुरजी से बता दी थी।

रमेश को दस दिन अस्पताल में पैर के ट्रीटमेंट में लगने थे। इसलिये दस दिन तक सुनीता का अस्पताल रोज़ आना-जाना लगा रहा था। घर से भी सभी बारी-बारी मिलकर चले गए थे.. रमेश से। इन दस दिनों के आने-जाने के सिलसिले में एक दिन जब सुनीता रामलालजी के साथ अस्पताल जा रही थी.. तो बातों-बातों में रामलालजी ने कंपनी की आमदनी का ज़िक्र।किया था.. और बताया था,” कंपनी का जो भी मुनाफा होता है.. वो हम तीनों बाप बेटों का ही होता है”।

“ पर पिताजी!.. तीनों का हिस्सा कहाँ है!”।

सुनीता ने रामलालजी से पूछा था। हिस्से वाली बात पर रामलालजी कुछ न बोले थे.. और चुप्पी साध ली थी।

रमेश के पैर का ऑपेरशन ठीक-ठाक हो गया था.. और पैर में रॉड डालने के बाद रमेश अब घर आ गए थे.. सबनें अपनी-अपनी तरह के सहानुभूति के नाटक रमेश के आगे कर दिये थे। मामला सोचने वाला यह था.. कि परिवार के बेटे के पैर में चोट लगी थी.. और सब बजाय दुखी होने के उत्सव सा मना रहे थे। मामला साफ़ था.. रिश्तों की नहीं.. सम्पत्ति की क़दर थी.. परिवार में। मुकेशजी और अनिताजी भी दिल्ली से रमेश से मिलने आना चाह रहे थे.. पर रमेश ने आने के लिये मना करते हुए.. कहा था,” मैं ठीक हूँ, बाद में आप लोगों से मिल लूँगा!.. अभी आप निश्चित रहिये”।

रमेश की देखभाल घर पर ही हो रही थी।

इधर मुकेशजी को मुकेशजी के बिसनेस पार्टनर ने कोर्ट का नोटिस भिजवा दिया था.. और जल्दी में ही पचास लाख की बैंक सिक्योरिटी भरने का आर्डर आ गया था। अचानक से इतनी बड़ी रक़म एकसाथ जुटा पाना मुश्किल काम था..  मुकेशजी के पास समय कम था.. इसलिये उन्होनें रिश्तेदारों से मदद लेना ही ठीक समझा था। मुकेशजी की रिश्तेदारी अच्छे पैसे वाले लोगों से थी.. पर फ़िर भी रक़म पूरी न हो पाने के कारण उन्हें रमेश भी याद आ गया था.. आख़िर ज़मीन बेची थी.. रमेश ने हाल ही में। वो रिश्तेदार ही क्या जो मुसीबत में काम न आए। खैर! मुकेशजी ने रमेश को फ़ोन लगाते हुए कहा था,” बेटा! मुझे दो लाख रुपयों की सख़्त ज़रूरत है!..मदद मिल सकती है!.. क्या आपसे!”।

मुकेशजी ने अपनी सारी मजबूरी रमेश के आगे बता डाली थी।

“ नहीं पिताजी!.. मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता.. मेरे पास पैसे नहीं हैं!”।

रमेश ने मुकेशजी की मदद से साफ़ इनकार करते हुए कहा था। कितना अच्छा उदहारण पेश किया था.. रमेश ने करोड़पति दामाद होने का..

यह बात सुनीता को अगले दिन रमेश ने बताई थी। सुनीता को रमेश का यूँ इनकार करना अपने पिता के लिये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था.. पर मजबूर होकर रह गई थी.. बेचारी!.. उधर मायके का वक्त पलट गया था..  इधर ग़रीब को लाजवाब करोड़पति ससुराल मिली थी.. ऊपर से पतिदेव की अक्ल का तो कोई तोड़ ही नहीं था। इन सब के ऊपर होकर एक वादा था.. कुछ भी हो घर बसा कर दिखाओ…!

“ क्या नाम है.. आपका..!”।

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