गाड़ी का क़िस्सा अभी यहीँ ख़त्म नहीं हुआ था.. अब इस गाड़ी के किस्से को घर में मुद्दा बना लिया गया था।
“ मन्ने तो लागे से झूठ बोले से यो! बक़वास करे है! किते न दिये होंगें इसने साढ़े-चार लाख!”।
दर्शनाजी और रमेश में अब थाने में दिये हुए, पैसों को लेकर मीटिंग शुरू हो गई थी। दोनों माँ-बेटों में विनीत की चर्चा शुरू हो गई थी… इन दोनों के हिसाब से विनीत झूठ बोल रहा था।
“अरे! चोर से यो!”।
रमेश ने सीधा ही ज़ोर की आवाज़ में विनीत को चोर बताया था। रमेश के शब्द रमा के कानों में जा पड़े थे।
“ मैने तुमसे क्या बोला था! तुम कितना भी क्यों न कर लो! बोल दिया न चोर!!”।
रमा ने तुरंत इस बात पर विनीत को सिखाते हुए कहा था। यहाँ साढ़े-चार लाख वाली कोई बात नहीं थी, मामला करोड़ों की प्रॉपर्टी का चल रहा था। अब आगे-आगे ये पैसे सिर्फ़ मोहरे की तरह से इस्तेमाल किये जाने थे। सफ़ारी गाड़ी के समय तक विनीत ने पेट्रोल पंप का खाता खुलवा रखा था, जिससे रमेश के मज़े और आसानी दोनों ही थे। अपनी गाड़ी में डीज़ल फुल करवाता था.. और रंजना को लेकर पूरे शहर के चक्कर आराम से काटता था। जेब से पैसे निकलने के बाद विनीत का दिमाग़ पूरी तरह से ख़राब हो गया था.. और उसनें तुरंत ही पेट्रोल पंप का खाता बन्द करवा दिया था।
रमेश और रंजना का इश्क तो बरकरार था, पर अब विनीत पैसों के मामले में हाथ पीछे खींचने लगा था.. जिसमें सुनीता का भी हाथ था।
“ आप इनको इतने-इतने पैसे मत दो! कोई फ़ायदा नहीं है! इन पैसों से तो केवल वो लडक़ी ही पल रही है!”।
सुनीता ने रमेश को रोज़ मिलने वाले पैसों को लेकर कहा था। बेशक बात सुनीता रमा से सही कर रही थी, पर सुनीता वक्त की नज़ाकत नहीं समझ रही थी.. यहाँ लोगों को किसी रंजना और रमेश से मतलब था ही नहीं! हेर-फेर कर बात कंपनी के हिस्से पर ही थी, जो परिवार रमेश को देना ही नहीं चाह रहा था.. और इसमें दर्शनाजी का पहला नम्वर था.. लड़की पलवाना तो केवल एक चाल थी.. ऐसा कहकर सुनीता अपने लिये मदद माँग रही थी.. इस सुनीता की मदद को भी परिवार ने अपने हित में ही मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया.. चलो,! अच्छा है! हमारे ही पैसे बचेंगे.. यह हुई न बात! कम से कम पैसे इस परिवार को देने पड़ेंगे… लडक़ी का बहाना खूब भा गया था… परिवार को।
अब तो रामलाल विला में धमाकेदार नाटक रंग पे था,” वो लड़की! वो लड़की!”।
सारे घर मे चर्चा का विषय रंजना बनी हुई थी। रमेश सुनीता को घर आते ही रंजना और उसके परिवार की हर छोटी और बड़ी बात बताता था.. जो वो फटाक से नीचे आकर सासू-माँ और अपनी जेठानी के आगे कह दिया करती थी.. सच! कितनी नादानी और बेवकूफ़ी कर रही थी.. सुनीता! अरे! रंजना तो केवल रमेश को बर्बाद करने की एक चाल थी.. कुछ मिलना थोड़े ही था… उस रमेश को। पर सुनीता को तो जैसे चैन ही नहीं था.. पूरा दम लगा रही थी.. रंजना को भगाने के लिये।
“ फैक्ट्री से लोहा भर-भर कर जाता है.. और वो लडक़ी आराम से पलती है!”।
सुनीता अपने घर बसाने को लेकर चिंतित थी.. बेचारी सोच रही थी.. चलो! फ़ालतू का पैसा बन्द हो जाएगा.. तो उस लड़की के भागने का भी रस्ता मिल जाएगा.. और रमेश घर लौट आएगा! काश! सुनीता की मेहनत रंग लाए, और उसका घोंसला बिखरने से बच जाए। क्या सुनीता परिवार की फ़ितरत से अनजान और बेवकूफ़ थी.. या फ़िर ख़ुद भी कोई गोटी फेंक कर उसी खेल का हिस्सा बन चुकी थी.. जानने के लिये पढ़ते रहिये खानदान।