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Kastoori Lal Ki Kitaab !

भेड़ की खाल में छुपे भेड़िए !!

‘दोस्तों ! ‘कस्तूरी लाल की किताब’ आप को ही नहीं , देश-विदेश में सभी को पसंद आया है …प्यारा लगा है ! कारण – मैंने इस किताब में ….अपनी उम्र की कमाई उड़ेल दी है . मैंने अपने वो उद्गार लिखे हैं जो …अनमोल हैं …अछूते हैं ….वो घटनाएं बयान कीं हैं ….जो पाठक की आँखें ही नहीं …कान भी खोलेगी ! उन लोगों को नंगा किया है ….जो भेड़ की खाल में छुपे भेड़िए हैं …और उन पार्टियों की पोल खोली है ….जो देश की जनता को …..”

“आप की कौन सी पार्टी है , सर …?” प्रश्न आता है . उन के माथे पर जूता पड़ता है . चूंकि उन की कोई एक पार्टी नहीं , उन्होंने तो हमेशा सत्ता पक्ष का ही साथ दिया है ! जो भी पार्टी सत्ता में आई ….उन्होंने पकड़ ली ! अब इस प्रश्न का उत्तर क्या दें …..? ज़रूर ये प्रश्न कर्ता बाम पंथी होगा – वह सोचते हैं. ये कभी सत्ता में आये ही नहीं !!

“बाम-पंथी हो क्या ….?” वह प्रति-प्रश्न कर वार बचा जाते हैं .

लो, जी ! जमा लोग ‘हो-हो’ कर जोरों से हंस पड़े हैं . कस्तूरी लाल कोई मामूली हस्ती नहीं हैं . जमा लोग – राजधानी की क्रीम हैं . महत्व पूर्ण लोग हैं . उच्च-पदों पर आसीन हैं . उन का और कस्तूरी लाल का सम्बन्ध अकाटय है . कोई इक्का-दुक्का …छींट -सा भीड़ में देसी आदमी दिखने भर को हैं …बाकी सब तो …..

इतवार का दिन है . कन्नात प्लेस में पुस्तक विमोचन के लिए उपयुक्त समय है . मौसम भी माकूल है . महीना भी कस्तूरी लाल ने सोच कर चुना है . औए वक्त भी ….उन के हित में है . सरकार तो …सभी उन की रही हैं ….और रहेंगी भी !

“हाँ, तो मैं ….आप को ….पुस्तक के बारे में बता रहा था .” कस्तूरी लाल ने सन्दर्भ-सूत्र को फिर से संभाला है . “मित्रो ! राजनीति ही नहीं – मैंने अपनी इस पुस्तक में …ग्राम्य-जीवन पर एक अध्याय लिखा है . ‘अहा..! ग्राम्य जीवन भी क्या है ….?’ वो पुरजोर देशी लहजे में बोले हैं .”भदेशी गाँव …..मेरा गाँव ….गंगा की सहेली – नदी ….’नीरजा’ के तट पर बसा है !” उन की आवाज़ में गंवई सोच समां जाता है . “मेरा बचपन यहीं बीता है .” उन्होंने जमा लोगों को देखा है . “सच मानिए …कि …मैं आज तक यहाँ बिताए एक-एक पल से अकेले में बतियाता रहता हूँ ….! यहाँ के पेड़ …पंछी ….नदी का ‘कल-कल’ करता प्रवाह ….और यहाँ तक कि …यहाँ की प्राकृतिक छटा …….”

“इस गाँव में कोई आदमी नहीं रहता , क्या ….?” फिर एक प्रश्न आया है . ‘बत्तमीज़ है -ये आदमी’ उन्होंने सोचा है .

“क्यों नहीं , भाई जी ….?” अब की बार उन्होंने हंस कर इस प्रश्न का मुकाबला किया है . “मैं बताना ही चाहता था कि ….आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली !” उन्होंने प्रश्न कर्ता को घूरा है . “एक ब्राह्मणों का घर – और बाकी सब भदेशी …..माने कि …पिछड़े लोग ….या कहें कि ….अछूत लोग ….नहीं,नहीं ! माई मिसटेक …!! उन्हें ‘महा दलित ‘ कहना ही उचित होगा !” उन्होंने लंबी साँस ली है . “मैं …..माने कि मैं – कस्तूरी लाल …एक ब्राह्मण …उन महा दलितों के बीच पला-बढ़ा …रहा -सहा ….खेला -कूदा ….लड़ा-झगडा …..और उन का सहोदर तक बना …!” तालियाँ बजी हैं . उन की बात को बड़ा किया गया है . “जब कि मेरी माँ मुझे इस हेल-मेल पर रोकती थी …टोकती थी …मारती थी ….कमरे में बंद कराती थी ….नहाने को कहती थी ….! लेकिन मैं …..मित्रो ….मैं …”

अब की बार तालियों की गडगडाहट से हॉल गूंजने लगा था . कस्तूरी लाल ने अपने लिए एक स्थान बना लिया था . ये उन का सोचा-समझा खेल था – रचना थी …!

“लेकिन अब तो आप लंदन में रहते हैं ….?” गोली की तरह फिर से प्रश्न आया है . “नीरजा के तट को त्याग ….थेम्स के तट पर जा बैठे हैं ….?” “हाँ, भाई !” वो गंभीर हैं . उन का स्वर कांपा है . “मेरे माँ-बाप की गरीबी ….लाचारी ….दुःख और दर्द , मैं भूल न पाया …!” वह रोने-रोने को हैं .  “मैं ही जानता हूँ कि मैंने अपनी ….शिक्षा-दीक्षा ….कैसे पूरी की . खाने तक के लिए मुहताज थे , हम …! हम ….हम ….” उन के होंठ कांपने लगे थे . आँखों में आँसू भर आये थे . “इतनी लाचारी थी …..कि ….”

‘ ओह, गॉड ….!’ जमा भीड़ के बीच से आवाज़ उठी है . ‘व्हाट ए …कर्स …? शेम …आन …अस …! गरीबी की दुनियां भी अजीब है !’ किसी ने कहा है . ‘होनहार लोगों को यही सब झेलना पड़ता है !’ एक सहमति जैसी भीड़ में बनी है .

“ले- दे कर…मैं यू -डी -सी बना !” उनका स्वर उभरा है . “बस …यही मेरे जीवन की …स्वर्णिम शुरुआत है ! मेरा पहला परिचय —-आदमियों से नहीं …..फाइलों से हुआ ! और ये फाइलें ही मुझे ….हर स्वर्ग की सीढ़ी दिखाती चली गईं . मैंने कस्तूरी लाल की किताब में इस पर अलग से एक अध्याय लिखा है . सच मानिए , मित्रो ! ये फाइलें …हर सरकारी ऑफिस में सजी ये फाइलें …जादू की पिटारी हैं ! हर कोई इन्हें स्तेमाल नहीं कर सकता ! और जो ….मेरा जैसा कर सकता है – वह कुछ भी कर सकता है ! कोई भी मांगी मुराद पा सकता है . और ….मैंने अपनी हर मुराद पा ली . मैंने जो चाहा – वही हुआ ! मैंने …..”

“खूब माल कमाया …..?” अब की बार फिर किसी ने उन्हें टोका है ….रोका है ….और उन पर लांछन भी लगाया है .

“हाँ, खूब-खूब माल कमाया ….!” उन्होंने उच्च स्वर में स्वीकारा है . “प्रश्न …ये भी है , दोस्तों ! कि माल किस ने नहीं कमाया ….?” अब की बार फिर वो प्रश्न को कबूतर की तरह हवा में उड़ा देते हैं .

भीड़ हंस पड़ती है ! बात -बात रह जाती है …तौमत नहीं बन पाती ! माहौल हल्का हो जाता है !!

“सर ! आप ने किताब का टाइटल तो हिंदी का रखा है …पर लिखा तो इंग्लिश मैं है ….?” एक देशी आदमी पूछ रहा है .

“भाई, सच बोलूँ तो …मुझे हिंदी नहीं आती !” उन का दो टूक उत्तर है.

जमा लोग ‘हिंदी’ की मांग पर हँसे हैं . सब ने समवेत स्वर में अंग्रेजी को ही सराहा है …और कस्तूरी लाल को एक महान लेखक कहा है ! पत्रकार भी उन्हें प्रश्न पूछ रहे हैं ….कि उन्होंने कब-कब किस किस मिनिस्ट्री में काम संभाला और भारत सरकार को कब-कब मुशिबतों से उबारा ….और उन समस्याओं के समाधान निकाले जो गले की हड्डियाँ बने हुए थे !

“क्रिस्टी से जब आप मिले थे …तब कौनसी मिनिस्ट्री थी ….?” रावत ने प्रश्न पूछा है . “उसे तो माला-माल कर दिया , आपने ! फिर उस से शादी भी करली…?” वह सीधा उन की आँखों में देख रहा है . “आप की  …’गंगा’ मेरा मतलब कि  आप की पूर्व पत्नी …अब कहाँ रहती हैं …?”

“देखिए ! ये हमारी निजी जिन्दगी है ! हमने इस पर किताब में कोई अध्याय नहीं लिखा है ! अतः …आप ….”

“चलिए ! आप ने अपनी बेटी सरोज की शादी करोडपति -ओशानी के बेटे के साथ की . क्या …उस की कोई फाइल थी जो आप के हाथ लग गई थी ….?” चौहान पूछ लेता है .

“चौहान भाई ! मियां-बीबी राज़ी …तो क्या करेगा क़ाज़ी …?” जोरों से हँसे हैं, कस्तूरी लाल. “बच्चों की मर्जी थी ….सो ….””

“और जब बेटे को स्कालरशिप दिला कर आप ने अमेरिका भेजा …तब आप वेलफेयर मिनिट्री में थे , शायद …?”

“हाँ ! मैंने पूरे देश का वेलफेयर देखा था , राजा साहब !” हँसे हैं , कस्तूरी लाल . “अगर अपने बेटे का भी ….भला कर दिया तो कौन गुनाह हुआ …? और आज ऐसा कौन है …जो अपने बेटों के लिए नहीं कर रहा …?”

जमा लोग और पत्रकार अब की बार साथ-साथ हँसे हैं .

“एक आखिरी सवाल, लाल सहाव !” रमा उन के सामने खड़ी  है . “क्या इस देश में …क्रान्ति आएगी …?”

“नहीं …!” कस्तूरी लाल ने सीधा उत्तर दिया है . “मैंने इस पर किताब मैं एक अध्याय लिखा है . यहाँ का गरीब -अमीर बन कर वहां जा रहा है ….और वहां का अमीर -गरीब बन कर यहाँ आ रहा है !” उन्होंने जमा लोगों को अब एक साथ देखा है . “मैंने एक बार चुनाव लड़ा था …सिर्फ एक बार ! बुरी तरह से हारा था , मैं ! और जो आदमी जीता था ….” वह चुप हैं. कुछ सोच कर फिर बोले हैं. “मैंने किताब में लिखा है कि …यहाँ के लोग यहीं रहेंगे ….और इसी हाल में रहेंगे ….”

“लोग नहीं बदलेंगे …..!!” रावत ने तोड़ कर दिया है .

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए -मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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