भोपाल में दीवाली का त्यौहार बहुत ज़ोर-शोर से मनाया जाता है। पूरे मकान को लाइट और दियों से पूरी तरह से रोशन कर दिया जाता है।पूरा परिवार इकठ्ठा होकर ज़ोर-शोर से दीवाली का त्यौहार मनाता है।मुझे भी भोपाल वाले मकान में,वो लम्हे याद आते है,जब हम बहुत छोटी सी गुड़िया क़ानू को घर लाये थे। क़ानू के साथ मनाई गई हर दीवाली यादगार बन कर रह गयी है।
जब क़ानू कि पहली दीवाली हमारे साथ थी, तो काना-माना बहुत ही छोटा सा ऊन का सफ़ेद सा गोला हुआ करता था ,हमने क़ानू को प्लास्टिक की टोकरी में रखा हुआ था। दीवाली की शाम को हमनें सबसे कह दिया था,की क़ानू का ध्यान रखना और उसे प्लास्टिक की टोकरी में से मत निकलना,बहुत छोटा बच्चा है, डर जाएगा। शाम को जब घर में लाइट वगरैह ऑन हो गयी थीं, और हम सब पूजा के बाद छत्त पर पटाखे चलाने के लिए इकठ्ठा हुए थे, तो बच्चों ने बताया था कि,”देखो! माँ पूरी टोकरी के अन्दर क़ानू कितना कूँ-कूँ,करके शोर मचा रही है,लगता है, बाहर आना चाहती है।”हमने बच्चों से कहा था,”नहीं, नहीं बाहर मत निकालना अभी तो केवल महीने भर का छोटा सा बेबी है, पटाखों से डर जाएगा”। खैर! इतना कहकर हम बाहर आ गए थे, पर टोकरी से खट्टर-पट्टर और कूँ-कूँ की आवाज़ें आनी बन्द न हुईं थीं, बच्चों ने बाहर आकर ज़ोर से हमसे कहा था,”मम्मी प्लीज एक बार आकर देख तो लो”। हम फटाक से अन्दर आये थे, और यह कहते हुए कि,”चलो, ले ही चलते हैं, बाहर”। हमने टोकरी खोलकर अन्दर झाँक कर देखा था, उछल-कूद करने लगा हुआ था, मेरा स्वीट गोल सा लड्डू क़ानू ,मैंने अपनी गोद में प्यार से क़ानू को उठाया था,प्यार से अपनी गर्दन के नीचे चिपकाकर क़ानू की नरमाई का एहसास करते हुए ,क़ानू को मीठी-मीठी पप्पी देते हुए ,अपने साथ छत्त पर लेकर कर आ गई थी। छत्त पर हमनें सारे गमलों को और पोधों को लाइट से डेकोरेट कर रखा था,हमनें सोचा था,कि अरे! छोटा सा बच्चा है, लाइट और पटाख़े देखकर डर जाएगा। पर देखा तो हुआ कुछ और ही….जैसे ही हमनें क़ानू को अपनी गोद से नीचे उतारा था, वाइट रैबिट की तरह पूरी छत्त पर तेज़ी से क़ानू रानी ने दौड़ लगा दी थी। एक पल के लिए भी पटाखों से न डरी थी,क़ानू। लाइट की लड़ी के बीचों-बीच गमलों में से होते हुए, फुल स्पीड में वाइट रैबिट की तरह दौड़ लगा रही थी,एकदम जिगजैग पैटर्न में। बिटिया ने क़ानू को पकड़ने की भी कोशिश की थी, पर बिल्कुल हाथ न आई थी नन्ही गुड़िया किसी के। बच्चों के मुहँ से निकल ही गया था, “मिल्खा सिंह है, ये तो “। खैर!जैसे तैसे पकड़ा था, कि कहीं कर्रेंट-वर्टेन्ट न लग जाये, और नन्हें स्टफ टॉय को हमनें अपनी गोदी में दबोच लिया था। गाल से लगाकर अपनी क़ानू को प्यार कर हैप्पी दीवाली भी कह दिया था। अब काना-माना को ऐसे ही थोड़ी हैप्पी दीवाली कहते, आख़िर पहली दीवाली जो थी, हमारी नन्ही प्यारी सी परी क़ानू की हमारे घर पर। सो हमने अपने हाथ में छोटा सा रसगुल्ले का पीस लिया था,और छोटा-छोटा करके क़ानू के मुहँ में रख-रख प्यार से खिला दिया था। अब आप सोचेंगे कि रसगुल्ला ही क्यों किसी और मिठाई का पीस खिला देते।इसका जवाब हम आपको बताते हैं, रसगुल्ला इसलिए क्योंकि क़ानू भी तो प्यारी-प्यारी मीठी और रस भरी छोटा सा पीस रसगुल्ले का ही थी। मिठाई खिलाकर और प्यार कर हमनें वापिस क़ानू को उसकी टोकरी में रख, टोकरी को बंद कर दिया था, और हम सब दीवाली का त्यौहार मनाने में मशगूल हो गए थे। तो यह था, क़ानू का पहला शगुन दीवाली पर हमारे संग।
धीरे-धीरे क़ानू बड़ी होती गई ,और हर साल दीवाली का त्यौहार आता गया। एक बार का दीवाली का त्यौहार हमे याद आ रहा है,भई!,क्या बतायें क़ानू ने त्यौहार वाले दिन बहुत उधम मचाया था। हमनें रंगोली बनाने के लिए सारे रंग एक जगह इटट्ठे कर नीचे ज़मीन पर रखे हुए थे, पता नहीं महारानीजी के दिमाग़ में रंगोली वाली बात कहाँ से घुस गई थी, रंगोली बनाने से पहले हम किसी और काम में बिजी हो गए थे, अरे!भई आकर क्या देखते हैं कि क़ानू तो पूरा ही कलरफुल हुआ बैठा है, पूरे के पूरे कलर्स फैला रखें है, और खुद सारे रंगों में नहाई हुई खड़ी है। क़ानू की पूँछ नीले रंग में रंग गयी थी, छोटी सी गुलाब जामुन जैसी नाक पर पिंक कलर लगा हुआ था, एक कान क़ानू का हरे रंग का था, तो दूसरा कान क़ानू रानी का लाल रंग में पूरा ही लाल हो गया था। अब हमें समझ आयी थी सारी बात कि इसमें क़ानू की कोई भी गलती नहीं है, हर बार हम ही रंगोली क्यों बनाये, क़ानू भी तो कभी न कभी रंगोली बनाएगी ही न। मेरा पूरा काना-माना रंगों में लिप्त हुआ था, क़ानू के छोटे-छोटे प्यारे से पैर yellow और ब्राउन कलर से भरे हुए थे। सच!बतायें एक बार को तो हमें बहुत तेज़ गुस्सा आया था, क़ानू पर…सारे रंगों का सत्यानाश जो कर डाला था, अब क्या ख़ाक रंगोली बनाते हम। पर क़ानू का रंगों से भरा हुआ प्यार सा चेहरा देखकर हमारा सारा गुस्सा छू हो गया था, क़ानू के चेहरे पर लगे हुए सारे रंग और क़ानू का भोला-पन हमसे कह रहा था,”माँ! इस बार हमारी बनाई हुई रंगोली ही रहने दो, फ़िर कब सीखेंगें हम रंगोली बनाना”। हमनें क़ानू की भोली सी आँखों की यह रिक्वेस्ट मान ली थी,और क़ानू ने जो सारे रंगों को ज़मीन पर फैलाकर जो रंगोली में अपने प्यार और मासूमियत के रंग भरे थे, उसे बिल्कुल न हटाया था। थोड़ी सी देर बाद ही पतिदेव और बच्चों का आना हुआ था, रंगोली और क़ानू को देखकर सबकी हँसी छूट गयी थी, सबके मुहँ से एकसाथ निकला था,”भई ,वाह! रंगोली हो तो क़ानू जैसी वार्ना न हो। फुल मार्क्स क़ानू-मानू को रंगोली बनाने के लिए।”बच्चों और अपने पापा की बातें सुनकर मेरी क़ानू-मानू बहुत खुश हो गई थी। अपनी खुशी का इज़हार क़ानू ने अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाकर किया था। अपनी तारीफ़ सुनकर क़ानू की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई थी,मानो अपनी तारीफ़ के लिए सबको thank you कह रही हो। हमें अपनी क़ानू उन रंगोली के रंगों में ही लिपटी हुई प्यारी लग रही थी, इसलिए हमनें क़ानू के रंगों को साफ़ न किया था, उन्हीं रंगो में क़ानू को खेलता-कूदता छोड़ दिया था। पटाखों से तो क़ानू बिल्कुल भी न डरती थी, रात को बच्चों के साथ सभी तरह के पटाखे एन्जॉय किए थे क़ानू ने।
कुछ इसी तरह हमारे साथ दीवाली मनाती आयी है, क़ानू। इस बार का दीवाली का त्यौहार भी क़ानू के लिए ढ़ेर सारे रंगोली के रंग और खुशियाँ लेकर आ रहा है। और हाँ!हमनें तो पहले से ही तय कर रखा है, दीवाली के त्यौहार पर घर में दो रंगोली बनायेंगे…एक रंगोली हमारी होगी और दूसरी क़ानू की। इसी तरह हर साल क़ानू के साथ खुशियों और रंगों भरी दीवाली मानते हुए,आप सभी मित्रों को हमारी और प्यारी क़ानू-मानू की तरफ से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरा प्यारा क़ानू अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाकर और अपनी पिंक कलर की जीभ साइड में लटकाकर खुशी का इज़हार करते हुए सबको हैप्पी दीवाली बोलता है।
Wishing you all a Very Happy Diwali!! From kaanu…!