क़ानू का नाम आते ही हम पता ही नहीं कहाँ खो जाते हैं,और अब तो सर्दियाँ भी आ गई हैं। लाल रंग का स्वेटर पहने और गले में काले रंग का गोल्डन घुंगरू डाले सारे घर में घूमती रहती है। बच्चों के जो पुराने स्वेटर होते हैं, हम बस वही नाप के कर देते हैं। बहुत ही प्यारी गुड़िया नज़र आती है, हमारी क़ानू सर्दियों के मौसम में।

भई रोज़ सुबह होते ही एक मीठी सी पप्पी तो बनती ही है हमारी क़ानू-मानू के गाल पर। एक दो दिन से तो क़ानू ने तमाशा ही बना रखा है, पता नहीं अपने स्वेटर के साथ कौन सा गुल खिलाया है, कि स्वेटर की दोनों बाजू या तो अपने आगे वाले पैरों में फँसा कर खड़ी हो जाती है, या फ़िर बाजू ही निकाल कर खड़ी हो जाती है। बार-बार हमें उठकर जाना पड़ता है,क़ानू का स्वेटर ठीक करने के लिए।

आज तो शाम के वक्त जब हम क़ानू को घुमाने गए तो रोड पर तमाशा ही हो गया था। अपने स्वेटर की आगे वाले बाजू आगे के दोनों हाथों में फँसा महारानीजी रोड पर ही खड़ी हो गयीं थीं। सामने से कोई अपने अल्सेशियन डॉग को लेकर आ रहा था, उनका अल्सेशियन डॉग जो है,वो अक्सर बिना चैन के ही घूमता है।बस!अब हमारे तो होश ही गुल हो गए थे,मुश्किल से हमनें क़ानू-मानू का फँसा हुआ स्वेटर ठीक किया और पीछे की तरफ मुड़कर भागे थे…तभी हमनें यह तय किया कि भई आज तो बाकी के काम बाद में पहले क़ानू बेबी का स्वेटर ठीक करेंगें।

घर आते ही सुई धागा लेकर दोनों हाथों की बाजू नाप की कर दीं हैं हमनें, अब हमारे सिर से बोझ भी उतर गया है। अब ठीक है काना के हाथ स्वेटर में बिल्कुल नहीं फँस रहे हैं…वार्ना तो हमारी नाक में ही दम हो गया था। अब स्वेटर को उतार कर रख तो न सकते थे,नहीं तो गुड़िया रानी बीमार पड़ जाएगी। हाँ!तो क़िस्सा जो है,वो तितली के जन्म का है।


दो मंजिला मकान है, हमारा और छत्त थोड़ी सी बड़ी सी है । काफी हरियाली कर रखी है,हमनें अपनी छत पर क़ानू वहीं पर अक्सर खेलती कूदती रहती है..


खासकर सर्दियों में तो अन्दर आने की ज़रूरत ही महसूस नहीं करती, कभी थोड़ा सा धूप में गुड़िया की तरह लेट जाती है, एक आँख खोलती है, और एक आँख बन्द कर लेती है।बड़ी प्यारी सी छोटी सी गुड़िया नज़र आती है.

हाँ!,तो हुआ यूँ कि हम कई दिन से क़ानू को एक दो पोधों के आसपास घूमता देख रहे थे, बिल्कुल पास अपनी गुलाबजामुन जैसी नाक लगाकर खड़े होना अब तो क़ानू-मानू का रोज़ का काम हो गया था। हमनें सोचा था,कि क़ानू अक्सर दो तीन तरहों के गमले के नज़दीक जाकर नाक लगाकर क्यों खड़ी हो जाती है..पास जाकर देखते हैं तो कैटरपिलर.. मोटा सा। हमनें कैटरपिलर को देखकर सोचा था,कि कहीं क़ानू फ़ालतू में नीचे गिराकर और इसको अल्टी पलटी कर मार न डाले ..तितली का जन्म होने से पहले ही कत्ल हो जाएगा।

हम रोज़ क़ानू पर ध्यान देने लगे थे, क़ानू बस अपनी गोल-गोल नाक ही पास ले जाकर खड़ी होती थी, लेकिन अभी छुआ तक न था। काफ़ी देर उस कैटरपिलर के पास खड़े होने के बाद दूसरी जगह खेलने कूदने लग जाती थी। हर दिन उस कैटरपिलर का ध्यान रखना और उसकी आटेंडेंस मार्क करना क़ानू का काम हो गया था। एक दिन हमनें एक अजीब सा चिपचिपा जाला सा बुना हुआ देखा पूरा प्रोसीजर तो न देख पाए थे, तितली के जन्म का,हाँ!पर हमनें बच्चों को कहते सुना ज़रूर था,”कि देखो तितली कैसे उड़ गयी”। हमारे हिसाब से जो तितली के जन्म की लाइफ साईकल होती है ,वो पूरी होने के बाद ही तितली ने जन्म लिया होगा..जिसको देख पाना थोड़ा सा हमें तो भई असंभव ही लगता है। खेर!ऐसी छोटी-बड़ी कई सारी तितलियाँ हमारी छत पर उड़ती फिरती हैं, और क़ानू -मानू के मस्त दिन गुज़र रहे हैं.. तितलियों के संग।


 अब साल के सबसे मीठे मौसम की शुरुआत हो गई है, यानि के सर्दियाँ, हम अपने काम से लगे रहते हैं, और क़ानू रानी कूद-कूद कर खेलती कूदती रहती है। थोड़ा सा छत पर खेला और फ़िर अपने बिस्तर में आकर सो जाती है। लाल रंग का स्वेटर में हमारी क़ानू लगती बहुत प्यारी है। सर्दी के मस्त दिन बहुत ही प्यारभरे हो जाते हैं, हमारे क़ानू के संग।हरी-भरी सब्ज़ियों में ज़िन्दगी चलती जा रही है,मन पसन्द क़ानू के संग।

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading