शादी-ब्याह का भी अपना एक अलग ही मज़ा है! और सर्दियों में हो रही शादी की तो बात ही कुछ और होती है.. असली खाने-पीने और जायके का मज़ा तो सर्दियों में ही आता है। शरद ऋतु में शुरू होकर शादियां अब तक यानी के जून के महीने तक तो चलती ही हैं। शादी-ब्याह में आना-जाना हो ही जाता है.. हमारा!
अब हुआ क्या.. कि अभी हाल मैं ही तो हम अपने मायके से लौटे थे.. क्या बताएँ अब रिश्तेदारी में आना-जाना तो करना ही पड़ता है.. पर हमारे जाने पर हमारी गैर-हाज़िरी में प्यारी कानू बेहद उदास और अकेली हो जाती है.. याद जो करती है! हमें बहुत। अब हमारे आने के बाद ही यहीं लोकल का हमें शादी का कार्ड मिल गया था.. करीबी मित्र हैं.. हमारे! ज़िद्द कर बैठे थे.. कि हो न हो ब्याह में कम से कम हफ़्ता भर के लिये तो आ ही जाना.. रौनक हो जाएगी। अब मना भी कैसे करते.. समस्या तो वही थी.. हमारे सामने हमारी छोटी गुड़िया कानू की.. कहाँ छोड़ कर जाते, और भई! कानू की परेशानी हमसे देखी भी नहीं जाती.. इसी उधेड़बुन में हमारा दिमाग़ व्यस्त था.. कि तभी मित्रगण का फोन आ गया था.. अब दिमाग़ में तो कानू ही चल रही थी. सो फ़ोन उठाते ही.. मुहँ से निकल गया था.. कैसे आएं! हफ़्ता भर के लिये प्यारी कानू को छोड़कर!
” अरे! इसमें कौन सी चिंता वाली बात है! आप कानू को भी ब्याह में लेकर आइये! पालतू ही तो है! सब रह लेगी!”।
मित्रगण ने प्यार से समझाते हुए.. कहा था।
करीबी होने के कारण हम उनकी बात को काट तो न पाए थे.. बस! कानू को पालतू कहना हमें बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था.. घर के बच्चे को कोई पालतू कहता है! क्या..!!
खैर! कानू ब्याह में अंकल के यहाँ जाएगी! यह बात सभी के कानों में पड़ गई थी.. और अपने संग कानू को ब्याह में ले जाने के लिए सारा घर तैयार हो गया था।
” पता है! काना! आप हमारे संग अंकल के यहाँ मैरेज फंक्शन में चल रही हो! देखना नहला-धुलाकर एकदम सफ़ेद गुड़िया बनाकर ले चलेंगे.. तुम्हें अपने संग!’।
बच्चों ने क़ानू के प्यारे से पेपर कटिंग जैसे मुलायम कान को प्यार करते हुए.. कहा था। और हमारी कानू ने भी बच्चों के गाल को अपनी पिंक कलर की जीभ से चाटते हुए.. हाँ! में जवाब देते हुए बोली थी,” हाँ! हम भी चलेंगे! मज़े करने!”।
शादी में जाने का समय आ गया था.. और याद के तौर पर मित्रगण का फ़ोन भी आ ही गया था।
हफ़्ता भर की पूरी तैयारी के साथ और क़ानू-मानू को संग ले हमारा पूरा परिवार मैरेज फंक्शन अटेंड करने पहुँच गया था।
” अरे! आंटी! आपका कुत्ता तो बहुत ही प्यारा है! कितना क्यूट भी दिख रहा है! काटेगा तो नहीं!”।
” अरे! नहीं यह हमारी प्यारी कानू है! जिसको की तुम कुत्ता कह रही हो! बिल्कुल भी नहीं काटेगी! आओ! कर लो! दोस्ती कानू से.. आख़िर तुम्हारी शादी के लिए ही तो हम इसे अपने साथ लाए हैं!”।
कानू हमारे मित्र के घर सबको बहुत प्यारी लगी थी.. और सबके ही मन को भा गई थी। कानू भी सब के साथ हिल-मिल गई थी.. जैसे कि बरसों का रिश्ता हो! पूरी शादी में क़ानू को सभी प्यार से बिना चैन और पट्टे के उठाए फ़िर रहे थे.. मानो किसी स्टफ टॉय को अपने संग लेकर घूम रहे हों।
ख़ूब मज़ा रहा था.. कानू संग शादी में। शादी की एल्बम में हमारी क़ानू ही नज़र आ रही थी.. किसी ने भी बिना क़ानू के अपनी तस्वीर खिंचवाई ही नहीं थी।
बहुत प्यारे और यादगार पल लेकर लौटे थे.. हम शादी से क़ानू के संग।
हमारी कानू है! ही इतनी प्यारी।
इन्हीं यादगार पलों को समेटते हुए.. एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे.. प्यारी कानू के संग।
कैसा लगा आपको हमारी कानू का शादी में शामिल होना.. अपना कानू के लिये प्यार और विचार हमें लिखकर भेजें और जुड़े रहें कानू के प्यारे किस्सों के साथ।