“अरे!यह क्या?लाल मुहँ और पूँछ भी लाल, कहाँ रंग फैला कर आई हो?आप कितनी गन्दी लग रही हो…दांती हो..तलो दूर हटो कपडे भी खराब कर दोगी”। बच्चों ने कहा था…”मम्मी देख तो बाहर निकलकर लाल कलर तो हमने कहीं रखा ही नही है, जो ये फैलाएगी।”बाहर निकलकर देखा तो पता कुछ नहीं लग पा रहा था,खैर!अभी तक मैं मुहँ पर लगे लालपन को कलर समझ रही थी, हाँ!याद आया टंकी भरने के सिलसिले में छत्त पर जाना हो गया,..क्या देखा मैने दरवाज़े के कोने में एक बहुत छोटा सा चूहा मरा हुआ है,..खून से लथपथ”हम्म!यह है लाल कलर”। फटाफट नीचे दौड़कर आई और क़ानूजी को पकड़कर नहलाया और एक छोटा सा थप्पड़ भी लगाया था। चूहे मारना पूरी तरह सीख गई थी,एक खास दुश्मनी हो गई थी क़ानू की चूहों से,आसपास चूहा है तो थोड़ा सा भी कन्ट्रोल न होता था। क़ानू बहुत तेज़ी से दरवाज़े पीटकर बाहर चूहे के पीछे भाग खड़ी होती थी।हमारे घर के पीछे बाजू में मराठी परिवार रह रहा था, जो कि गाय रखने के शौकीन थे,वहाँ से दुनिया भर के चूहे हमारी छत्त पर आ जाया करते थे। और क़ानू जी की चूहों के पीछे ज़बरदस्त रेस होती थी।
एक दिन एक एक बेचारा चूहा झीने में पुराने सामान के नीचे फँस गया था,बस!फिर क्या था, क़ानू को हमेशा की तरह पता लग गया था,कि चूहे महाराज ऊपर बैठे हैं…तेज़ी से सीढ़ियों पर से ऊपर पहुँच गई थी..फिर क्या था पुराने सामान के ढेर के ऊपर चढ़ गई और चूहे का सही पता ढूँढने के लिए अपनी नाक पुराने सामान के ढेर पर गढ़ाकर ढूँढने लगी थी…सही पता मिल गया था क़ानू को अब तो बिल्कुल ऊपर जा खड़ी हुई चूहे को मानो कह रही हो”फटाफट बहार आजा नहीं तो खींच कर निकाल दूंगी”चूहा डर के मारे साँस बन्द करे बैठा था, एकदम तेज़ी से बहार की तरफ कूदा और सीढ़ियों से नीचे तेज़ी से कूद-कूद कर उतरा… क़ानू भी पीछे-पीछे थी,मैं यह सारा नज़ारा देख रही थी…मैंने सोचा कि सीढ़ियों पर ही क़ानू झपट्टा मार देगी पर नहीं क़ानू भी कम न थी…चूहे के मज़े लेते-लेते धीरे-धीरे उत्तर रही थी…एकदम पीछे चूहे की आखिरी सीढ़ी और चूहा भागने को तैयार था….एकदम तेज़ी से छलाँग मारकर बुरी तरह से घायल करके मार डाला था…चूहे को। इसी तरह चूहे का शिकार करते और खलते-कूदते अच्छे दिन बीत रहे थे क़ानू के साथ। कभी गमलों के बीच से निकलकर भागते हुए चूहे को तेज़ी से छलाँग मारकर पकड़ना या फिर कहीं छुपे हुए चूहे को ढूंढ निकालना और उसे मार डालना।वाह! गज़ब की हॉबी डेवेलोप कर ली थी क़ानू ने। हमने तो पूछा भी था क़ानू से”अले!आप चूहे भईया चे ही क्यों जलते हो,गुच्छे में आ जाते हो,दोस्ती कर लो भई गुच्छा छोड़ दो”हँसी आ गई थी…प्यारा सा सफ़ेद गुलाब के फूल जैसा मुहँ और प्यारी सी गुलाब जामुन जैसी गोल नाक लिए मेरे सामने बैठी थी…जैसे अब समझ रही हो और कह रही हो की “नही माँ चूहे वाली बात को छोड़ कर और कोई प्रॉमिस ले लो मुझसे यह न होगा”बहुत प्यारा सा मासूम चेहरा, गुलाब जामुन जैसी गोल नाक और पेपर कटिंग जैसे कान !सच्च!बहुत प्यारा रिश्ता है मेरा और क़ानू का। जैसा कि मैने पहले भी कहा है…पिछले जन्म का कोई अटूट और गहरा संबंध जो आधे में ही अधूरा रह गया था जिसे पूरा कर रही है क़ानू मेरे साथ। परमात्मा के दिये शावक के रूप में।
रात हो गयी थी “तलो तभ थो दाओ,तलो नीनी कलेंगे”। क़ानू का प्यारा सा गोल्डन घुँघरू वाला पट्टा गर्दन से उतार दिया था,मैंने और एक प्यारी सी रोज़ की तरह पप्पी देकर क़ानू को बिस्तर में लिटा दिया था…उसका खेस उड़ाकर पूरी तरह ढक देती थी…मैं क़ानू को बस..खाली कम्बल में से गुलाबजामुन जैसी नाक बहार की तरफ छोड़ती थी”तलो तीक है”।
लाइट ऑफ करते ही तेज़ी से कूदकर कमरे के दरवाज़े पर आ खड़ी हुई थी…क़ानू।हमने सोचा था बाहर जाना होगा पानी-वानी पीने… हमने दरवाज़ा खोल दिया था और बहार निकाल दिया था क़ानू को। मुझे हैरानी सी हुई थी…कि अरे!पानी पीने के लिये ऐसे नहीं उछलकर दरवाज़े पर आती.. कोई और ही किस्सा है..झट्ट से हम भी पीछे-पीछे बहार निकल गए थे..हम्म!कंफर्म हो गया था बाहर निकलते ही..पानी की प्यास या और कोई बात न थी क़ानू के साथ…बाथरूम के दरवाजे के बाहर एकदम सीधी अलर्ट खड़ी थी और नाक दरवाज़े के नीचे लगाकर सूँघ रही थी..हम समझ गए थे शिकार यानी चूहा अंदर है।
जब भी बाथरूम में घुसता था..चूहा सत्यानाश कर देता था सामान का…नहाने के साबुन में हमेशा दाँत मारकर जाता था…पूरा सामान गिरा देता था पानी में और एक दिन तो सर्फ ही फैला मारा था…कभी-कभी धोने के लिए रखे हुए कपड़ों में भी दाँत मार देता था…बहुत परेशान कर रखा था इस शैतान चूहे ने …आज तो मुझे भी खुशी हो रही थी..अब देखती हूँ कहाँ जाएगा। और मैने बाथरूम का गेट खोल दिया था क़ानू लिए…जल्दी से अन्दर घुसी थी चूहा वाशिंग मशीन के पीछे ही छुपा हुआ था। वहीं खड़ी हो गयी थी क़ानू…बुरी तरह से अपनी नाक फँसा रखी थी वाशिंग मशीन के पीछे …क्योंकि चूहा वाशिंग मशीन के पीछे ही था… लेकिन चालाक चूहा वाशिंग मशीन के पीछे से निकलकर सरर से भागा और पानी में छलाँग मारी …क़ानू ने भी पूरी तेज़ी से पानी के टब में चूहे के पीछे छलाँग मारी और मुहँ में दबोचने के लिए जैसे ही मुहँ आगे बढ़ाया शातिर चूहा एक और छलाँग लगाकर स्टूल के पीछे एकदम कोने में छिप गया।मैं और मेरी बिटिया गार्गी दरवाज़े पर खड़े पूरा नज़ारा देख रहे थे कि”आज तो गया बहुत तंग कर रखा है अच्छा है मरे”। क्या बताऊँ इस चूहे के दिलचस्प हंगामें में मैं वीडियो बनाना भूल गयी…काश!वीडियो बनाया होता तो सभी के साथ शेयर करती। खैर!क़ानू के दोनों पैर बाल्टी के ऊपर थे निशाना साधे एकदम सीधी खड़ी थी”बचकर कहाँ जाएगा बेटा बहार तो निकलेगा ही”आ गया ऊपर …अरे!बाप रे!कितना मोटा है “मैं और मेरी बिटिया साँस भरकर चिल्लाये थे…फिर एकदम चुप फुसफुसाकर बोले थे”बोलो मत भाग जाएगा और कल आकर फिर वही नुकसान करेगा”।और यह दबोचा क़ानू ने ..छुट्टी चूहे की”चलो अच्छा हुआ “हमारे दोनों के मुहँ से निकला था।”परेशान कर रखा था”। क़ानू भी खुश होकर चूहे को वहीं छोड़कर हांफते हुए बाथरूम के बहार निकली थी खुश थी…. चेहरे पर सुकून और तसल्ली थी।हमने भी क़ानू की प्यारी सी पीठ थपथपाई थी और प्यार से गले लगा लिया था…. चूहे महाराज को दूर उछाल कर फेंक दिया था। पानी-वानी पीकर आराम आ गया था,क़ानू को।
“तलो अब नीनी कलो हो गया”। अन्दर लेकर दरवाज़ा बन्द कर लिया था…प्यारी छोटी सी सुंदर सी मासूम सी क़ानू अपने कम्बल में दुबककर आँखे बन्द करके लंबी साँस भरकर आराम से लेट गयी थी।”प्यार बच्चा सो गया”मुहँ से निकला था। बस !ऐसे ही चूहों का शिकार करना और नए-नए खेल-कूद करते हुए बड़ी हो रही थी क़ानू हमारे साथ। सच्च!मनोरंजन,अपनापन और बहुत ही आत्मिक प्यार मह्सूस होता है क़ानू के साथ…मानो जानवर न होकर कोई बहुत अपना जो कभी मेले में बिछड़ गया हो और अचानक क़ानू के रूप में वापिस मिल गया हो। मन के किसी कोने से बस यही आवाज़ आती है..क़ानू को देखकर और धड़कने तेज़ हो जाती हैं.…इस नन्हें से बच्चे को देखकर मन कह उठता है…”कहीं न जाने दूँगी प्यारी क़ानू तुम्हें”।