शरद ऋतु टाटा करके चली गई है.. और अब पहले से बडे दिन आ गए हैं। घर का काम जल्दी ही निपट जाता है, और समय बिताने के लिये हमनें सोशल मीडिया का सहारा ले लिया है। पहले हमें जानवरों से बिल्कुल भी लगाव नहीं था.. हालाँकि टेलीविज़न पर डिस्कवरी चैनल देखा करते थे.. पर लग कर नहीं बैठते थे.. बीच में ही बन्द कर उठ जाया करते थे। पर जब से हमारे आँगन में कानू के नन्हे पैर पड़े हैं.. हमें सभी तरह के जानवरों से प्यार और लगाव हो गया है। पर एक बात का ख़ास ध्यान रहे.. कि हम जानवरों की अलग से बात कर रहे हैं.. पर कानू जानवर नहीं.. हमारी प्यारी सी बेटी है।

मौसम के बदलने के साथ ही अब तो हमारे घर के जायके और स्वाद बदल गए हैं। गर्मियों में ज़्यादातर हमारे यहाँ सब दक्षीण भारत के भोजन यानी के इडली और डोसे के बेहद शौकीन हैं। आए दिन यही भोजन बनता रहता है.. हमारे यहाँ पर। सबसे मज़ेदार बात तो यह है.. कि कानू को भी डोसा सांभर और चटनी खाना बहुत ही अच्छा लगता है। मिर्ची की कोई चिंता नहीं होती है..  गुड़िया कानू को.. थोड़ा-थोड़ा सा खाकर फ़टाफ़ट अपने बाउल में पानी पीने भाग जातीं हैं.. अपनी पिंक कलर की जीभ साइड में लटकाकर हमें यह जतातीं हैं.. कि हमनें भोजन बहुत ही स्वादिष्ट और चटपटा बनाया है.. वैसे काना हमारी बचपन से मिर्ची दार खाने की बेहद शौकीन है.. सफ़ेद रंग का ख़ाली दूध वाला खाना कानू को बिल्कुल भी पसंद नहीं आता है। बस! हम कानू-मानू के बाउल में छोट-छोटे टुकड़े कर-कर डाल देते हैं.. और प्यारी कानू अपना  मुहँ दोनों तरफ़ घुमा-घुमा कर प्यार से काना-माना अपना खाना खा लेती है।

एक दिन हम अपना फ़ोन लिये यूँहीं इंस्टाग्राम पर स्क्रॉल कर रहे थे.. कि अचानक से हमारी नज़र अमेरिकन प्यारे से कुत्ते पर पड़ी थी.. और वहीं हमारी स्क्रॉलिंग भी रुक गई थी। हमारी बिटिया भी हमारे संग ही बैठ कर हमारे मोबाइल में ही ध्यान दे रही थी। कानू भी आस-पास ही उछल-कूद कर रही थी। “ देखो! न माँ! यह प्यारा सा कुत्ता कितनी अच्छी तरह से फोर्क की मदद से मज़े लेकर तरबूजा खा रहा है.. इन लोगों ने इसका खाने का फोर्क अलग रखा हुआ है”।

हमारी बिटिया ने उस अमरीकन कुत्ते के खाने के वीडियो को  देखकर कहा था। वाकई में कुत्ते की मालकिन उस कुत्ते को वीडियो में बहुत ही तहज़ीब और सलीके से तरबूजे के छोटे-छोटे टुकड़े फोर्क से खिला रहीं थीं। हमें और बिटिया  को देख बहुत ही अच्छा लगा था.. और हमारी नज़र हमारी कानू पर जा पड़ी थी। पर हमनें तुरंत ही सोच लिया था, और हमारे मुहँ से निकल भी गया था,” नहीं ये ऐसे नहीं खाएगी!”।

कानू ने अपने पेपर कटिंग जैसे कान हिलाए थे, मानो कह रही हो,” अबसे हम फोर्क से ही खाया करेंगें!”।

और हम भी मन ही मन मुस्कुरा दिये थे.. हुआ यूँ कि पतिदेव का शाम को ही तरबूजा लाना हुआ था.. हमारी कानू को भी मीठा और ठंडा तरबूजा खूब भाता है..  पर उस दिन जैसे ही हमनें तरबूजे की फांक कानू के आगे डाली.. तो कानू ने बिल्कुल भी मुहँ न लगाया था। हैरानी की बात थी.. मन-पसंद चीज़ से आख़िर कानू अलग क्यों बैठी थी।

बच्चों ने कानू को यूँ तरबूजे से अलग बैठा देखकर कहा था,” कहीं ऐसा तो नहीं कानू भी फोर्क की मदद से ही तरबूजे का आनन्द लेना चाहती हो!”।

और बच्चों ने कानू लायक एक फोर्क ढूँढ निकाला था। और हम सब कानू के चारों तरफ़ बैठ गए थे, और कानू को एक-एक करके तरबूजे की फाँक फोर्क में फंसा कर देते गए थे, अब तो कानू भी फोर्क की मदद से तरबूजे का स्वाद लेते हुए..  अपना गुड़िया सा मुहँ खोल और तरबूजे का रस अपनी सुन्दर सी सफ़ेद गर्दन पर टपकाते हुए.. सभी के बीचों- बीच बैठ तरबूजे को निपटाने में लग गई थी। तरबूजे का रस टपकने से क़ानू की कोमल गर्दन और भी मीठी और सुंदर हो गई थी।

कानू ने दिखा दिया था.. कि वो भी जयाके और सलीके के मामले में किसी से कम न है।

कानू को ऐसे फोर्क से तरबूजा खाते देख.. हम सबको कानू पर बेहद लाड़ आया था.. और सबनें प्यार से कानू को गले से लगा लिया था।

“ देखा! माँ! हमारी कानू हमारी बात सुन रही थी.. और कानू ने भी आख़िर अपनी बुद्धि दिखा ही दी!”। बच्चे बोले थे।

कैसा लगा आपको हमारी कानू का तरबूजे खाने का सलीका.. अपना कानू के लिये प्यार और इस विषय में अपने विचार हमें लिखकर भेजिए।

और एक बार फ़िर जायकों और सलीके के साथ हम सब चल पड़े थे.. प्यारी और सबसे न्यारी कानू के साथ।

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