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जाको राखे साइयाँ मार सके न कोई

घर के बाहर बहुत ही बड़ा रेत का ढेर लगा हुआ था.. टीला सा बना हुआ था.. पड़ोस में मकान बनने वाला था.. उसी की तैयारी थी।

रेत के ढेर पर बहुत दिनों से एक सूरी अपने नवजात शिशुओं को लिए लेटी रहती थी.. उस सूरी पर हम जब भी अपनी छत्त की आगे दीवार पर खड़े हुआ करते.. नज़र पड़ ही जाया करती थी..  अब ये सुअर जात एकसाथ कई शिशुओं को जन्म देती है.. ये तो हमें पहली बार ही पता चला था। पर नन्हें शिशु अपनी माँ को चारों तरफ़ से घेरकर खेलते हुए.. लगते बहुत ही प्यारे थे.. बचपन किसी का भी क्यों न हो.. अनमोल और बहुत प्यारा लगता है।

बारिशों के दिन थे.. मौसम बहुत ही सुहाना रहा करता था.. इसी सुहाने मौसम में हम भी अपनी छत्त पर टहल दूर- दूर तक गर्दन घुमा.. मौसम के ख़ूब आनंद लिया करते थे। और वो हमारे गेट के बाहर सूरी भी अपने नवजात शिशुओं के संग रेत में मस्त लेटी रहती थी। घर के हर सदस्य और आते-जाते सभी की नज़र थी.. इसके नन्हें खेलते हुए.. बच्चों पर।

” अरे! माँ ..!! आओ ! न बाहर आकर तो देखो.. वो सूरी नहीं दिख रही. कहाँ चली गई अपने बच्चो को लेकर..

हमनें बाहर आकर दूर तक नज़र घुमाई थी..

” अरे! वो देखो! घबराने की ज़रूरत नहीं है! अपने बच्चों को लिए.. उस पेड़ के नीचे जा बैठी है!”।

और बच्चों ने भी वहाँ बैठा देख.. तसल्ली की थी।

मौसम बहुत ही ख़राब हो गया था.. बिजली ज़ोर से चमक रही थी.. बादल गरज रहे थे..  और सभी अपने-अपने घरों में बंद हो गए थे.. और हमारी बिटिया जिसे जानवरों से बेहद लगाव है.. उस सूरी का ख़याल आया था..

” माँ! बाहर तो तूफानी बारिश शुरू हो गई है..!! क्या होगा .. उस सूरी और उसके बच्चों का.. अभी तो कुछ ही दिनों के बच्चे हैं.. इतनी तूफ़ानी बारिश में तो मर ही जाएँगे!”।

ठीक ऐसा ही हमें भी लग रहा था.. वाकई मौसम बहुत ही खतरनाक हो गया था.. बारिश बहुत ही तूफ़ानी थी.. साथ में तेज़ बादलों की गर्जन और बिजली लगातार चमक रही थी।

सारी रात हमारी इसी चिंता में निकल गई थी.. कि क्या होगा उन नवजात शिशुओं का.. ऐसे में बचने का तो कोई भी चांस नहीं है..

और सवेरा होने से पहले ही हमारी नींद खुल गई थी..

बिटिया बिना ही उठाए उठ कर झट्ट से स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई थी।

स्कूल के टाइम में तो अभी बहुत देर थी.. पर हम उन बच्चों की चिंता लिए.. फटाक से नीचे पहुँच गए थे।

” अरे! ये देखो ! माँ..! देखो! ये तो सही सलामत हैं! और अपनी मम्मी के संग खेल रहे हैं!”।

वाकई हमारी और हमारी बिटिया की नज़र कॉलोनी के बने गेट की दीवार से एक बड़े से झुके हुए.. झाड़ पर पड़ी थी.. हमनें देखा.. उस झुके हुए.. और फैले हुए.. पेड़ के झाड़ के नीचे सूरी मस्त लेटी हुई थी.. और वो नवजात शिशु माँ के आसपास एकबार फ़िर मौसम का मज़ा लेते हुए.. अपनी माँ से लिपट-झिपट कर खेल रहे थे।

हमारी और हमारी बिटिया की माँ-बच्चों को सही सलामत देख जान में जान आई थी..

सच! मौसम बेशक ख़राब था.. पर परमात्मा ने पहले ही रक्षा का इंतेज़ाम कर दिया था..

तभी तो कहते हैं.. जाको राखे साइयाँ मार सके न।कोई!

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