” लो.. आपका आइस-cream का डब्बा!”।
” चलो! वापस आ गया… मेरा डब्बा! काम आएगा”।
दरअसल बहुत पहले मैने बिटिया की सहेलियों के लिए.. आइस-क्रीम का डब्बा गाजर के हलवे से भर कर दिया था.. पर वह वापस लाना भूल गयी थी.. और आज ले आयी।
गर्मियों में परिवार के लिए कभी-कभार आइस-क्रीम आती है.. तो ख़ाली होने पर डब्बे संभाल लेती हूँ।
डब्बे वाली आइस-क्रीम कितनी भी अच्छी और बढ़िया कंपनी की क्यों न हो! मज़ा तो उसी orange bar का होता था।
उस ज़माने में पच्चीस पैसे की सबसे छोटी और एक रुपए की सबसे बड़ी वाली orange बार हुआ करती थी। होता तो कोला flavour भी था.. पर मेरी favourite तो यही orange बार थी।
इसका स्वाद भी अच्छा लगता था.. और जो बाद में होठ ऑरेंज रच जाया करते थे.. वो ज़्यादा मन भाते थे।
अब कन्याओं को लिपस्टिक का ख़ास शौक तो होता ही है, बचपन से.. तो बस!
आइस-क्रीम के रंग को थोड़ी देर के लिए.. लिपस्टिक मान वो भी मज़ा ले लिया करती थी.. मैं।
पच्चीस पैसे वाली छोटी आइस-cream खानी तो रोज़ ही बनती थी.. कभी एक रुपया या पचास पैसे भी होते.. तो बड़ी वाली बार खाया करते।
Orange बार तो अभी-भी वही है.. पर उसके दाम और समय के साथ वाला मज़ा बदल गया है।
बेफ़िक्र होकर वो orange bar खाने वाले दिन काश फ़िर लौट आते।