मानो कल ही की बात हो! समय तोते की तरह कैसे उड़ जाता है.. पता ही नहीं चलता! वो हमारा हमारे कॉलेज के लॉन में सहेली के साथ बैठना और फ़िर कुछ हमारे ही कॉलेज में पढ़ रहे छात्रों का हमारे पास आकर यह कहना..

” कोफी लेंगी मेम आप!”।

बस! क्या बताएं.. उनका यह कॉफ़ी को कोफी संबोधित करना… हमारी हँसी नहीं रोक पाया करता था.. और हम भी बिना ही कुछ सोचे.. सुनते ही उन्हीं के मुहँ पर इसी बात को लेकर ठहाका मारकर हँस दिया करते थे.. अब ऐसे थोड़े ही हँसा जाता है.. पर उम्र भी तो ऐसी ही थी।

कॉलेज में हमारे दिल्ली के आसपास के हरियाणा के बहुत से छात्र थे.. बोलने का लहज़ा भी हरियाणवी ही था.. कुछ अंग्रेज़ी के शब्दों को तो बिल्कुल ही अपनी ही टोन में परवर्तित कर बोला करते थे.. अब भई! भाषा का चक्कर जो था.. पर कसम से हमारी तो उनके बात करने के तरीकों को सुनते ही हँसी के फ़व्वारे छूट जाया करते थे।

पर ऐसे थोड़े ही हँसा जाता है.. पर क्या करते..!

कुछ भी कहिए.. हरियाणवी भाषा भी अपने में अनोखी और निरालापन लिए हुए है.. अलग ही अंदाज़ के वाक्यों से सवरीं हुई यह भाषा अपनी ही मिठास और हमारे देश में अपनी ही एक ख़ास पहचान रखती है।

हरियाणे के लोगों की आम बातों को पेश करने का अंदाज़ कुछ इस कदर निराला है.. कि सुनकर मुस्कुराए बगैर नहीं रहा जाता।

भारतवर्ष में अपनी ख़ास पहचान आज भी बनाता है.. हमारा हरियाणा।

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