हमारे परिवार में रौनक आ गई थी,जब से हमारे यहाँ क़ानू के रूप में नया मेहमान आया था….सच्च! बचपन में बच्चों का प्यारा सा चलता-फिरता स्टफ टॉय थी, जिसे बच्चे और हम यूहीं गाल से चिपकाये घूमा करते थे। धीरे-धीर बड़ी होती गयी और अब तो बराबर की सदस्या हो गई है…मैडम अपने आप को दोनों बच्चों से कम न समझती है….हमें भी क़ानू अपने बच्चों की तरह या फिर सच कहें तो जानवर होते हुए भी अपने बच्चों से ज़्यादा प्यारी हो गई है। क़ानू का हर बात हमसे करना और हर बात को समझना बेहद आत्मिक लगता है…और हाँ जब कभी हम आराम कर रहे होते हैं तो हमारे बिल्कुल पास अपनी नाक और मुहँ लाकर हमें महसूस करना इस अदा पर तो हमें इतना प्यार आ जाता है मन करता है कि हम क़ानू के होठों को ही चूम लें पर ऐसा नहीं कर सकते जानवर जो है। क़ानू को जानवर कहने और लिखने में बहुत दर्द महसूस करती हूँ मैं, पर यही सत्य है। प्यारी सी छोटी सी मासूम सी नटखट सी..बिटिया ही तो है क़ानू मेरे लिए। कभी न सोचा था कि इस आत्मा से मेरा इतना गहरा सबंध हो जाएगा कि बाकी सारे रिश्ते क़ानू के आगे फ़िके से हो जायेंगे। पहले कहीं सुना था मैंने कि”अरे!कुत्ता कभी मत पालना क्योंकि ये लोग फैमिली मेम्बर जैसे हो जाते हैं, और अपनी एक जगह अपने आप ही बना लेते हैं, लेकिन जब छोड़कर जाते हैं तो बेहद तकलीफ होती है”। जब भी कोई मुझसे मेरी क़ानू की उम्र पूछता है तो मैं अनसुना कर देती हूँ या फिर एकदम चुप हो जाती हूँ..मुझे यह सुनना बिल्कुल गवारा नहीं कि”अरे! अच्छा इतने साल की हो गयी,बस अब तो इतने ही………”। बहुत गुस्सा आता है और मेरा दिल काँप उठता है..क़ानू को खोने के डर से…प्यार से दौडकर अपने सीने से चिपका लेती हूँ और फिर कहती हूँ”कहीं नहीं जायेगा मेरा बन्दर”। और फिर एक गाल पर मीठी सी पप्पी दे देती हूँ।
मज़ेदार किस्सा क़ानू के साथ सर्दियों में होता है, मीठे दिन यानी के सर्दियों के शुरू होते ही हम क़ानू को स्वेटर पहना देते हैं ताकि बीमार न पड़ जाए… डॉक्टर का कहना होता है कि पामेरियन डॉग्स का गर्मियों में और सर्दियों में ख़ास ख़याल रखना चाहिये बहुत नाज़ुक होते हैं ये। सर्दियों में हमारी आधी छत्त पर धूप होती है और आधी छत्त पर छाँव।कभी क़ानू धूप में बैठ जाती है,थोड़ा सा शरीर गर्म होने के बाद छाँव में बैठ जाती है। अपना बेहद ख़याल रखती है मेरी क़ानू। सर्दियों का मतलब सभी के लिए एक और भी होता है…यानी हरी भरी सब्ज़ियों का मौसम। हर घर में हरी भरी सब्ज़ियों का शौक सभी को होता है,और इन्हीं में से कुछ सब्जियाँ ऐसी भी होती हैं जो जाड़े के दिनों में चार चाँद लगा देती हैं। छत्तों और घरों के आँगनों में रौनक ही इन्हीं सब्जियों से होती है।इन सब्ज़ियों के नाम तो सभी को पता होंगे जैसे…मटर और मैथी जो न सिर्फ महिलाओं को बिज़ी रखती है बल्कि सर्दियों के मीठी धूप वाले दिनों की शोभा भी बनती हैं। हमारी छत्त पर भी सर्दियों में कुछ इसी तरह की रौनक रहती है।हमारे घर में सभी को खूब भरे हुए मैथी वाले पराँठे हरे धनिये की चटनी और मटर शटर का बेहद शौक है। सर्दियाँ आते ही पतिदेव ढेर सारी मैथी और मटर लाना शुरू कर देते हैं। बस!हमारा और हमारी क़ानू का काम बढ़ा देते हैं।
क़ानू को भी कच्ची मटर खाना और हरे धनिये की चटनी के साथ मैथी के पराँठे खाने का बेहद शौक है। ऐसी वैसी चटनी नहीं क़ानू को मिर्ची वाली चटनी खाने का बेहद शौक है। एक बार मैथी के पराँठे और मिर्ची वाली चटनी के मज़े लेती है,और जब मिर्ची सहन नहीं होतीं तो दौड़कर अपने पानी के डिब्बे जो कि छत्त पर ही रखा रहता है….पानी पीकर आ जाती है। जैसे ही मटर और मैथी घर में आ जाती है हम सारा बंडल धूप में रख देते है…और वहीं धूप में बैठकर हमारा मटर छीलने और मैथी के पत्ते अलग करने का काम शुरू हो जाता है। पहले तो हम अकेले ही लगे रहते थे मटर छीलने और मैथी साफ करने,पर जब से हमारे घर में हमारी नई सदस्या क़ानू आयी है,तब से तो समझीये इस काम में चार चाँद लग गए हैं। अब तो इंतेज़ार रहता है कि कब सर्दियां आएँ और हम कब क़ानू के साथ सर्दियों की धूप का मज़ा लेते हुए मटर और मैथी की दुकान लगाकर बैठें। सर्दियों की मीठी धूप में मटर और मैथी की दुकान लग जाती है…और क़ानू भी खूब कूद-कूद कर वहीं मज़े लेती रहती है। हमारी कुर्सी के सामने ही अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ फैलाकर बैठ जाती है। लाल रंग के स्वेटर में अपनी काली गुलाब जामुन जैसी नाक से सूँघते हुए हमारी तरफ टिम-टिम देखती रहती है। हम मटर छीलते जाते हैं और जान बूझकर क़ानू के ऊपर छिलके फेंकते चलते हैं। क़ानू को मटर के मीठे-मीठे छिलके चबाना बहुत अच्छा लगता है। मटर के छिलके ऊपर गिरते चलते हैं और मेरा बन्दर तुकन्दर क़ानू अपनी कोमल गर्दन हिला-हिला कर मटर को चबा चबा कर उनके मीठे रस का आनन्द लेती है , कभी-कभी साबुत मटर भी जानबूझकर मज़े लेने के लिए हम क़ानू के सिर पर डाल देते हैं…तो क़ानू भरी हुई मटर का भी बहुत शौक से आनन्द उठाती है। यानी मटर कैसी भी हो छिलके वाली या भारी क़ानू मानु दोनों ही पसन्द करता है।एक आधा दाना यदि कभी छत्त पर गिर भी जाये तो भाग कर मुहँ में दबा लाती है।
थोड़ी सी देर में ही मेरी क़ानू मटर के छिलकों से पूरी तरह ढक जाती है। हरे-भरे मटर के छिलके और अन्दर मेरा सफेद भालू …बहुत ही प्यारी लगती है क़ानू-जानू। अब हमेशा तो गाल पर पप्पी दे नहीं सकते । ऐसा ही हाल मैथी के साथ है,हालाँकि मैथी कच्ची नहीं खाती है ….चटोरी जो ठहरी खाने तो मैथी के पराँठे ही होते हैं, पर जब हम मैथी साफ करने बैठते हैं,तो फिर वहीं हमारी कुर्सी के सामने पसारकर तसल्ली से बैठ जाती है । और मैथी की खाली डंडियाँ लेकर सर्फ मुहँ में मज़े करती रहती हैं। कभी-कभी तो पत्ते वाली डंडी भी छत्त पर लेकर भागती रहती है,और खेल-कूद कर मैथी इधर-उधर बिखेर देती है। हमारे लिये थोड़ा काम बढ़ा देती है…हमें अपने बढ़े हुए काम से कोई एतराज़ न होता है,हमें तो हमारी क़ानू मैथी की हरी भरी डंडी लेकर इधर-उधर भागती दौड़ती खेलती हुई बहुत पसन्द आती है। मेरी क़ानू को गाजर खाने का भी बेह्द शौक है। मीठी-मीठी लाल गाजर हमारे हाथ से मुहँ में दबाकर ले जाती है,और इधर-उधर मुहँ करके चबा-चबा कर गाजर की मिठास का मज़े लेते हुए मज़े से खाती है। कच्ची गाजर,मैथी और मटर के साथ-साथ पत्ता गोभी और फूल गोभी का भी बेहद शौक है। गाजर का हलवा भी बेहद पसन्द है क़ानू को।
एक बार की बात है हमने सीज़न में गाजर का हलवा बनाया हुआ था… बच्चों के साथ क़ानू ने भी गाजर के हलवे के खूब मज़े लिए। फूल गोभी का पराँठा और गोभी की सब्ज़ी तो फेवरेट है क़ानू की। एक दिन तो सारी गोभी की सब्ज़ी खाकर टुकड़े मेरी क़ानू ने बच्चो के लिए छोड़ दिये थे। बहुत हँसी आई थी बच्चो को, बच्चो ने कहा था “देखा मम्मी क़ानू की चालाकी”। हरे-भरे सर्दी के दिनों की अनमोल यादें बनती जा रही हैं हमारी क़ानू के साथ सर्दियों की ओर क़ानू की हरी-भरी सब्ज़ियों में नटखट पन की एक ऐसी एल्बम हमारे मन में तैयार हो रही हैं जो हमेशा के लिए अमिट हैं। सर्दियों में क़ानू कई हरि-भरी शैतानियां ओर क़ानू के साथ बिताए अनमोल पल हमेशा रहेंगे हमारे साथ।