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Guru Poornima !

कहाँ ढूंढें -गुरु साक्षात परं ब्रह्म को ?

“मैं न दूंगा तुम्हें दीक्षा ! तुम भील हो !!” गुरु द्रोणाचार्य ने तीखे स्वर में कहा था . “मैं राज-पुत्रों का गुरु हूँ , वत्स !” उन्होंने समझाया था , एक लव्य को . “तुम चाहते क्यों हो , धनुर्धारी बनना …? और वो भी अर्जुन जैसा ….?” आश्चर्य पूर्वक पूछा था , उन्होंने . “मेरी बात मानो …..”

लेकिन सामने प्रार्थी बना एक लव्य चला गया था . उन की राय सुनने के लिए खड़ा न रहा था . उसे तो धनर्धुर बनना था ….और वो भी अजुर्न सरीखा !

सर्व विदित है कि उस ने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा स्थापित कर स्वयं ही दीक्षा ग्रहण की थी . और बाद में गुरु जी ने गुरु दक्षिणा में उस का दांये हाथ का अंगूठा मांग लिया था …..ताकि वो कभी अर्जुन का मुकाबला ही न कर पाए !

रही बात परंपरा की ….गुरु परंपरा की ….तो हमें इतिहास बताता है  …सिकंदर से लेकर शिवाजी तक …के गुरुओं के नाम ! जैसे माता के नाम से पुत्र जाना जाता था …वैसे ही गुरु के नाम से शिष्य जाना जाता था ! गुरु की महत्ता हमारे समाज में महान थी …श्रेष्ठ थी ….पूज्य थी …और गुरु का आदर और स्थान …श्रेष्ठ परमात्मा के सामान ही था !!

गुरु साक्षात् परं ब्रह्म ……तस्मै ….श्री गुरुवे …नमः …!!

शिक्षा -दीक्षा प्राप्त करना हमने कभी साधारण बात नहीं समझी . हमने उसे महत्व दिया ….ऊंचा दर्जा दिया ….और यही कारण रहा कि हम …वेद व्यास जैसा रचियता पा गए जिस ने संसार को चार वेदों की रचना कर के दी  ….पुराण और उपनिषद लिखे ….गीता ,महाभारत जैसे ग्रन्थ लिखे ….और हमें प्रेरित किया कि हम उन्हें एक पर्व की तरह पूजें ….इस गुरु पूर्णिमा के अवसर पर !!

हमारे समाज के आदर्श और परमेश्वर- राम,कृष्ण ….अर्जुन और भीम  सब गुरुओं की ही देन हैं !

सब से बड़ा आदमी की शिक्षा प्राप्त करने का गुण है – उस की श्रद्धा ….एक लव्य जैसी -श्रद्धा ! बिना श्रद्धा के गुरु से ज्ञान नहीं मिलता . हमें गुरु की पूर्ण श्रद्धा के साथ अंध-भक्ति करनी ही होती है …तभी हम गुरु से शिक्षा का अनमोल रतन पाते हैं !

लेकिन आज …अब …इस मोड़ पर …जब हमारी शिक्षा -दीक्षा का रूप-स्वरुप ही बदल चुका है ….  न तो हम गुरु में श्रद्धा ही कर पाते हैं ….और न ही गुरु हमें ज्ञान दे पाते है !! शिक्षा नितांत बिकाऊ बन गई है ! और तो और …पानी भी बिक रहा है ….? और जहाँ क्रय-विक्रय का क्रम चल रहा हो ….वहां आप के श्रद्धा -सुमन लेगा कौन ….?

आज की हमारी शिक्षा मैकाले-पुत्र पैदा कर रही है ! मात्र नौकरी के लिए हम ज्ञान अर्जित कर रहे हैं . हम ने शिक्षा की कीमत चुकानी है . और अब तो मारो गोली गुरु जी को ….इंटर नैट पर सब मिलता है !!

आज का गुरु मात्र एक नौकर है !!

और हाँ , शर्म आती है ,मित्रो ! यह लिखने में …कि …हमें रोज़-रोज़ अखबारों में पढ़ने को मिलता है …कि कुल सात साल की बच्ची के साथ …..टीचर ने ……लड़कों के साथ ….प्रिंसिपल ने ….और ….और हाँ …..! हे ,भगवान् कलेजा ही कांपने लगता है ! अब बच्चों को स्कूल न भेजें ….तो और कहाँ भेजें ….?

ये ट्यूशन वाले तो और भी घटिया हैं ….!!

कहाँ ढूंढें ….अपने गुरु साक्षात् परं ब्रह्म को …..?

आज गुरु पूर्णिमा है …और ये आज का ही प्रश्न है ….और इस प्रश्न का उत्तर भी हमें …आज नहीं तो कल ढूँढना ही पड़ेगा ….

………………

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !.

 

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