“अरे! आज फ़िर से आपने यह आलू टमाटर की इतनी बढ़िया सब्ज़ी और पूरी कचौरी व खीर बना डालीं! अब कल ही तो छोले संग दीपावली पर भटूरे खाए थे.. आज नहीं! आज तो रोटी और सिंपल दाल ही बना देतीं!”।
माँ से हम बहन-भाई भोजन देख.. एक ही संग बोले थे..
माँ ने हम तीनों की तरफ़ देखा था.. और प्यार से हमारी बात का जवाब देते हुए.. बोलीं थीं..
” ऐसा नहीं कहते! बात तो तुम लोगों की सही है.. पर बच्चों त्यौहार कभी खोटी नहीं किया जाता.. इस दिन पकवानों को ज़रूर भोग लगाया जाता है.. आज गोवर्धन पूजा जो है!”
” गोवर्धन..??”।
” हाँ! गोवर्धन! मैने तो फ़िर भी कुछ नहीं बनाया है.. नानी के यहाँ गाँव में तो सवेरे से ही कढ़ाई चल जाती है.. और ढ़ेर सारे पकवान बन कर रख जाते हैं.. फ़िर पूजा होती है.. गोवर्धन की.. और ईश्वर को पकवानों का भोग लगता है.. और सभी सदस्य सारे दिन आराम से पकवानों का सेवन करते है.. इस दिन गोबर से गोवर्धन पवर्त बना श्रीकृण की पूजा की जाती है.. और अन्नकूट होता है.. यानी के गाय-बैल सबको स्नान करा.. पूजा कर नए अनाज की शुरुआत की जाती है।”
” गाय और गोबर का हमारे जीवन में बहुत महत्व है.. तो फ़िर हम क्यों नहीं शहरों में भी गोवर्धन पूजा करते हैं.. माँ!”
” सही कहा तुम लोगों ने.. शगुन के तौर पर हमें भी अपने घर को आज के दिन.. गोबर से हल्का सा लीप देना चाहिये”।
माँ की बातों और नानी के गाँव के उदहारण ने हमें गोवर्धन पूजा और उसके महत्व को भली-भाँति समझा दिया था.. तब से आज तक इतने बड़े होने पर भी हम अपने घर के आँगन को गोबर से लीप और छोटा सा गोवर्धन पर्वत बना.. गोवर्धन पूजा और अन्नकूट ज़रूर करते हैं।
सच! हमारे त्यौहारों में हमारे जीवन के मूल्य और उनका हमारे जीवन पर पड़ने वाला हर प्रभाव बखूबी छिपा हुआ है।