आप सभी मित्रों को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं!
आज से हमारे साथ ग्यारह दिनों के लिए गणपति महाराज विराजमान होने जा रहे हैं।
आज मेहमान के रूप में घर में पधार कर.. अनेकों आशीर्वाद व अपने शुभ चरणों से हमारे जीवन रथ को अग्रसर करेंगें।
बचपन दिल्ली में बीतने के कारण गणपति पधारने से उनके विसर्जन तक को लेकर ज़्यादा ज्ञान नहीं था।
“गणपति बप्पा मोरया!”
यह जयकारा भी उन दिनों सुनने को नहीं मिलता था।
दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और आस-पास के इलाकों में गणपति को बैठाने की प्रथा बहुत अधिक नहीं है।
गणपति आने के समय पूजा-अर्चना तो होती है, पर इतनी नहीं.. जिस प्रकार से महाराष्ट्र व इधर हमारे यहाँ भोपाल यानी के मध्यप्रदेश में की जाती है।
जबसे हमारा भोपाल में रहना हुआ, यूँ समझ लीजिए गणपति हमारे घर के हर साल के पक्के मेहमान हो गए हैं।
बेहद धूम-धाम से मनाया जाता है.. भोपाल में गणपति उत्सव। बडे-बडे मनमोहक पंडाल लगाए जाते हैं.. जिनमें बप्पा की सुंदर प्रतिमा स्थापित की जाती हैं। पूरे ग्यारह दिन भक्तगणों से पंडाल भरे रहते हैं। शाम को सही समय पर गणेश जी की आरती होती है। और बप्पा के यहाँ ख़ूब रौनक मेला लगा रहता हैं।
रिद्धि-सिद्धि, बुद्धि और यश के प्रतीक गणपति पूरे ग्यारह दिन विराजमान रहते हैं, तत्पश्चात उनका विसर्जन कर दिया जाता है।
ज़रूरी नहीं होता.. गणेश जी पूरे ग्यारह दिन ही विराजमान हों। अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार बप्पा सात, दो दिन या फ़िर पाँच दिन के लिए भी स्थापित किए जाते हैं।
गणपति पूजा केवल महाराष्ट्र में ही क्यों सबसे ज़्यादा प्रचलित है, तथा महाराज को क्यों बैठाया और उनका विसर्जन किया जाता है। यह जानकारी बहुत से लोगों को नहीं है।
मित्रों आज़ादी के दिनों में गणपति के नाम पर जनता को एकजुट करने के लिए, बालगंगाधर तिलक ने गणपति उत्सव को बढ़ावा दिया.. और तब से ही महाराष्ट्र और आसपास के इलाकों में यह पूजा धूम-धाम से की जाने लगी। पर इन इलाकों की तरह पूरे भारत में प्रचलित नहीं हुई।
गणेश पूजा तो युगों से चली आ रही है। जिसके पीछे की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार से है..
ऐसा कहा जाता था.. कि ऋषि वेद-व्यास जी महाभारत लिखने में असमर्थ थे.. और महाभारत को लिखित रूप में चाहते थे। इसलिए उन्होंने ब्रह्मा जी के कहने पर बुद्धि के प्रतीक गणेश जी को ही इस काम के लिए चुना था। ब्रह्मा जी का कहना था, कि केवल गणेशजी ही ऐसे एकमात्र देवता हैं, जो महाभारत बिना रुके लिख सकते हैं।
ऐसा कहा जाता है.. कि वेद- व्यास जी ने महाभारत शुरू की, और गणेश जी ने बिना रुके उसे लिखना आरम्भ कर दिया था।
लगातार बिना रुके, लिखते-लिखते गणेश जी के शरीर का तापमान बढ़ता चला गया.. वेदव्यास जी ने गणेश जी के शरीर के बढ़ते हुए.. तापमान को देखते हुए, उनके शरीर के चारों तरफ गीली मिट्टी का लेप लगा दिया था। पर माहाभारत का लिखना ख़त्म होने पर शरीर के बढ़ते हुए तापमान से मिट्टी सूख कर कड़क हो गई थी। और तब अनन्तचौदस के दिन महाऋषि वेदव्यास जी ने गणपति को पानी में बैठा दिया था, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हो जाए। और तभी से गणपति विसर्जन शुरू हुआ।
महाभारत की यह कथा चतुर्थी से प्रारंभ हुई थी, और अन्तचौदस के दिन जिस दिन गणेश जी का विसर्जन किया जाता है. उस दिन तक चली।
तभी से यह प्रथा बन गई.. कि गणपति जी की दस दिन तक स्थापना की जाती है, और ग्यारह वें दिन उनका विसर्जन कर दिया जाता है।
रिद्धि-सिद्धि, बुद्धि और यश के प्रतीक गणेश जी को स्थापित करते हुए, पान, मोदक, लड्डू व फूल चढ़ाकर हमनें उनको भोग लगाया है।
महाभारत को लिखने की कथा के अनुसार ही गणपति को बैठाया व उनका विसर्जन किया जाता है। और बप्पा को फ़िर से अगले वर्ष इसी तरह आने का निमंत्रण भी दिया जाता है।
गणपति बप्पा मोरया
मंगल मूर्ति मोरया
अगले बरस तू जल्दी आ!!