” मैं भी चलता हूँ!! आपके साथ..!! थोड़ा ठहरिए!
बेटे ने पिता से कहा था।
” अरे! नहीं कोई परेशानी वाली बात नहीं है.. चिंता मत करना.. मैं ही चला जाऊँगा! अगर कोई विशेष बात होती भी है. तो तुम्हें फ़ोन कर बता ही दूँगा”।
बेटे-बहू को आश्वासन दिलाकर सीतारमन जी घर से कोर्ट के लिए निकल जाते हैं।
काफ़ी सालों से सीतारमनजी जो मुकदमा लड़ रहे थे.. उसका फ़ैसला आज सुनाया जाना था.. काफ़ी ईमानदार वयक्ति थे.. और अपने ऊपर पूरा भरोसा रखते हुए.. जज के सामने पेश हो गए थे..
दोनों पार्टियों में जज के सामने जिरहबाजी शुरू हो चुकी थी.
” दस-लाख रख दीजिए.. नहीं तो पूरे एक साल की सज़ा!”।
” पैसे नहीं दूँगा..! मैने कोई भी गुनाह नहीं किया है.. तुम्हें जो भी करना हो.. कर डालो!”।
जज ने अपना फ़ैसला एकदम ही सुना डाला था.. फ़ैसला सुन सीतारमनजी के पैरों के नीचे से ज़मीन सरक गई थी.. पर बिना हिम्मत हारे अपनी बात पर ही जमे रहे थे..
अब होगा कोई केस ऐसा जिसमें की उनका गुनाह कहीं भी नहीं था.. असली गुन्हेगार तो कभी का लापता हो चुका था..सामने वाली पार्टी ने ज़बर्दस्ती सीतारमनजी से दुश्मनी निकालने के लिए दस-लाख रुपए की शर्त सामने रख दी थी..
आजकल तो ज़माना ही पैसे का है.. पैसे से बड़े-बड़े फ़ैसले बदल जाया करते हैं। हालाँकि उनके वकील ने बहुत कोशिश की.. सज़ा माफ़ करवाने की.. यह कहने की कोशिश कर.. कि पैसे धीरे-धीरे किश्तों में दे देंगें.. पर अपने परिवार और असूलों की ख़ातिर सीतारमनजी अपना फैसला ले चुके थे.. और ईमानदार रहते हुए.. अपनी सज़ा कबूल कर सलाखों के पीछे जाने को तैयार हो गए थे..
यह फैसला कबूल कर.. पुलिस की गाड़ी में कारागार तक का सफ़र कितना कठिन रहा होगा.. पर कुछ नहीं हो सकता था.. आजकल पैसा इंसानियत से भी बड़ा बन बैठा है.. ” सबसे बड़ा रुपया” वाली कहावत बिल्कुल सही नज़र आ रही है।
ऊपर वाले के आगे किसी की भी नहीं चलती.. जज का नहीं.. परमात्मा का फैसला समझ.. सलाखों के पीछे बेकसूर होते हुए, भी जा खड़े हुए थे।