दूध! दूध! दूध! दूध…!
वंडरफुल दूध..!
पियो ग्लास फुल दूध…
यह पंक्तियाँ उस विज्ञापन की हैं… जो बहुत पहले टेलीविज़न पर आया करता था.. बुनियाद, हमलोग, यह जो है.. ज़िन्दगी वाले दिन हुआ करते थे।
हमारा तो यह विजापन प्रिय था.. विज्ञापन में काँच का ग्लास ले-ले कर बच्चे मूछें बनाकर दूध पीते हुए.. बहुत ही प्यारे लगा करते थे..
दूध को लेकर ग्लास भर-भर कर पीने वाली बात तो हमारे अंदर भी थी.. पानी की जगह फ्रिज खोल दूध ही मूछें बनाकर पी लिया करते थे।
माताजी हमारी अन्नपूर्णा और देवी स्वरुप थीं.. घर में घी-दूध की कमी हमनें कभी से नहीं देखी थी.. पाँच किलो दूध हमारे परिवार में रोज़ ही आया करता था.. जिस दूध वाले से दूध लिया करते.. सदा ही हमसे ख़ुश रहता.. और रहता भी क्यों नहीं.. मोटी इनकम जो हमारे घर से थी।
” अरे! न्यूज़ देखी..आप लोगों ने! खुले दूध.. यानी ये डेरी वाले न जाने दूध को गाढ़ा करने और मलाई को रोटी जैसा मोटा करने के लिए.. कौन-कौन सी मिलावट कर रहे हैं.. हम दूध नही! ज़हर का सेवन करते हैं”।
दूध में मिलावट की बात सुन.. हमनें पूरी न्यूज़ देखी.. और तुरंत ही डेरी वाले भईया से दूध लेना बंद कर.. भैंस का दूध सामने कढ़वा कर लाने लगे थे।
अब एकसाथ पाँच किलो दूध कम होने से.. डेरी वाले को भी चिंता होने लगी थी..
कई बार आते-जाते हमें टोका भी..
” अरे! बेबी क्या बात है! एकदम दूध क्यों बंद कर दिया!”।
पर हम बिना जवाब दिए ही निकल लेते।
वो ज़माना आज के ज़माने में बदल गया है.. और दूध और दूध से बने पदार्थों में मिलावट तेज़ी से बढ़ गई है..
अब बच्चों को दूध पिलाने में डर लगने लगा है.. कि न जाने दूध की जगह पेट में कौन सा ज़हर जा रहा है।
अब इतनी बड़ी दुनिया में किस-किस को आप पकड़ोगे.. पापी पेट और महंगाई ने सबकुछ बदल कर रख दिया है।
बेहतर है.. थोड़ी हिम्मत कर.. गाय या भैंस मिलकर पालें.. पशु सेवा कर.. आने वाली पीढ़ी और अपने-आप को शुद्ध घी-दूध से युक्त बनाए।
स्वस्थ जीवन सुखी जीवन।