फिर मंच टूटा क्यों ?
हिल रहा था , सिंहासन ! दहलाया हुआ था , ब्रह्माण्ड !! हवा उल्टी दिशा में सन्ना रही थी. आवाज़ें थीं …अनौखी आवाज़ें …जो कभी पहले सुनने में न आईं थीं. लांछन थे …आक्षेप थे …तोमतें थीं …जो लोग लगा रहे थे. नाम धर रहे थे …यहाँ तक कि गालियां तक दे रहे थे.
विचित्र सा कुछ घाट रहा था.
“पगले …पाजी , तुम्हें इतनी तक तमीज नहीं जो …शऊर के दो नारे उछालो …? काहे के लीडर बने हो …! अपने नेता का गुन-गान करना तक नहीं आता …!”
“मुझे …..मुझे तो कहा था कि …जब युवराज आएं तो तुमने ….”
“गालियां देनी हैं, पब्लिक को ….?”
“जी, नहीं ! तालियां ….जय-जयकार …और ……”
“फिर मंच टूटा क्यों। ..? कुर्सियां कौन उठा ले गया …? और …..”
सभा का सत्यानाश हो गया था. किये-दिए पर पानी फिर गया था. न अब मंच था …न कुर्सियां ही थीं … और न हुक्का था ..और न पानी ..! सारे सरगना आ पहुंचे थे. सारे लोग जमा थे. पर वहां सभा के लिए कोई सिलसिला शुरू होता नज़र नहीं आ रहा था.
“हो क्या रहा है, पुत्र …?” मौसी ने आहिस्ता से पूछा था. “पूरे देश के चूहे आने थे. और तुमने ….उन का ….”
पुत्र परेशान था. न जाने किस ने अफवाहें फैला दीं थीं …कि – दिल्ली बुला कर ….सारे चूहों से स्तीफा माँगा जाएगा। नए अध्यक्ष के चुनाव से पहले इन के पर काट दिए जाएंगे …ताकि कोई वगावत न कर पाए. मौसी को मालूम था कि ….कुछ थे – जिन्हें शरारत सूझ रही थी.
“जासूस घुस गया लगता है,कोई !” पुत्र ने मौसी को बताया था. “सारी गुप्त स्कीम लोगों के कानों तक पहुँच चुकी है. अब कोई नई चाल चलनी होगी !”
“घोषणा कर दो ….सब को टिकिट मिल रही है ….मुफ्त !! जो पहले पहुंचेगा …पहले टिकिट पाएगा …और जो नहीं आएगा …रह जाएगा ….!” मौसी हंसी थी. “आज …..अभी से ….दौड़ आरम्भ है ! लिखो नाम …..”
पुत्र का चेहरा गुलाब सा खिल गया था. मौसी की चाल पर वह न्योछावर हो गया था. “गज़ब खेलती है , ये मौसी !” वह सोचे जा रहा था. “जहाँ कोई कवि नहीं पहुंचता …वहां मौसी …..”
“टिकिट ……!!” मंगल सामने खड़ा था. पुत्र ने उसे आश्चर्य से देखा था.
“पर ….तुम तो घायल हो …? क्या हुआ …? लड़ोगे कैसे …? तुम तो पहले से ही परास्त हो …!”
“लड़ूंगा …! मार खा कर आया हूँ …! विरोधियों के हौसले बुलंद हैं………”
“क्यों …?”
“क्यों कि …आप ने कहा है …कि ..हम हारेंगे नहीं !”
“तो ….?”
“बस ….! मीडिया ने कह दिया – इस का मतलब है ….ये जीतेंगे नहीं ….!!”
पुत्र परेशान हो उठा था. मीडिया के काटे का क्या इलाज़ करें – वह समझ नहीं पा रहा था. वह कुछ भी कहे – उस के अर्थ उल्टे निकल जाते थे.उस की समझ में न आ रहा था कि …क्या कहे -क्या न कहे …?
“बैठो ….!” पुत्र ने आदेश दिया था. “औरों को भी तो आने दो …” उस ने मंगल को सलाह दी थी.
“और कोई नहीं आएगा ….!” मंगल ने बताया था. “सब के सब छुपे बैठे हैं ….बिलों में छुपे हैं …परेशान हैं …! देखना चाहते हैं – टिकिट मिलेंगे भी , या नहीं …”
“भागो ….! विरोधियों का जुलूस इधर ही आ रहा है.” एक हो-हल्ला मचा था. भगदड़ थी.
मौसी निराश आँखों से पुत्र के हतास चेहरे को निरख रही थी.
क्रमशः –
