इस बात में कोई भी शक नहीं है, कि हमारी स्नो वाइट कानू हमारे इलाके में जितने भी पालतू कुत्ते हैं, उनमें सबसे सुन्दर और देखने में भी बहुत प्यारी और सबसे न्यारी है। हम अपनी कानू को प्यार से कभी सिंड्रेला बुलाते हैं, तो कभी स्नो वाइट। जब कानू हमारे साथ बाहर घूमने के लिये निकलती है, तो ऐसा लगता है, मानो इलाके की कोई राजकुमारी घूमने के लिये बाहर निकली है। सच! बतायें तो कानू हमारी चलती भी इठलाती हुई रौबीले तरीके से ही है.. अब सुन्दरता के साथ हमारी प्यारी सी कानू में नज़ाकत और रौब दोनों ही हैं.. अपने आगे कानू किसी को भी नहीं गिनती है। सारे दिन भौंकते हुए सबको डाँटना कानू के रौबीले होने की ही तो निशानी है। शाम होते ही गले में गोल्डन घुँघरू वाला काले रंग का पट्टा बाँध कर और गोरे रंग पर लाल वाला सुन्दर सा मलमली स्वेटर पहन कर जब कानू हमारे साथ सड़क पर घूमने निकालतीं हैं… तो हमारी कानू इलाके की कलेक्टर साहिबा से कम नज़र न आतीं हैं। हमे भी अपनी कानू के सुन्दर और बुद्धिमान दोनों ही होने पर गर्व महसूस होता है। हमारे अड़ोसी-पड़ोसी जिन्होंने भी कुत्ते पाल रखे हैं.. सभी हमसे कहते हैं,” कुछ भी हो भाभी! आपकी कानू तो नंबर वन है.. कितनी क्यूट, शैतान और बुद्धिमान भी है”।

रोज़ की तरह आज भी हम अपनी सुन्दर प्यारी सी बुद्धि से युक्त कानू को शाम को घुमाने निकले थे.. काले रंग के गोल्डन घुँघरू वाले पट्टे में ठुमक-ठुमक कर हमारे साथ चलती हुई कानू किसी कलेक्टर साहिबा से कम न लग रही थी। और फ़िर लाल रंग का सुन्दर सा स्वेटर तो कानू मैडम की पहचान थी ही। अब चैन और पट्टा लेकर हमें अपनी कानू को बाहर सड़क पर संभालना मुश्किल हो जाता है.. गेट से बाहर निकलते ही हमें भी अपने साथ खींचे ले चलती है। सच! कानू को सड़क पर कंट्रोल करना बहुत ही मुश्किल काम होता है।

अब हुआ यूँ कि उस दिन हम कानू को सड़क पर घुमा रहे थे.. कि हमनें और क़ानू ने सामने एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी हुई देखी, बछड़ा वाकई में बहुत छोटा सा और प्यारा था.. नवजात शिशु जो था। गाय के गले में भी गोलडन कलर की घंटी थी.. प्यारी लग रही थी। गाय अपने बछड़े के साथ आराम से खड़ी थी, पर हमारा मन उस बछड़े को देखने का हो गया.. और क़ानू पर भी गाय और उसके बछड़े को देख कलेक्टर वाला रौब चढ़ बेठा था। बस! तो हम और क़ानू जल्दी-जल्दी चल कर गाय के पास पहुँच ही गए.. हमनें सोचा कि कुछ न बोलेगी गाय.. चलो! थोड़ा नन्हें बछड़े को प्यार ही किये देते हैं.. जैसे ही हम और क़ानू बछड़े के एकदम नज़दीक पहुँचे थे..  हमनें तो बछड़े को प्यार करने के लिये आगे हाथ बढ़ाया था.. लेकिन कानू ने अपने रौब वाले अंदाज़ में भौंकना शुरू कर दिया था.. गाय ने सोचा कि कानू उसके बछड़े को काटना चाहती है.. इसलिये गाय को एकदम तेज़ ग़ुस्सा हम दोनों पर आ गया था, और गाय हमारे पीछे तेज़ी से भागी थी, हम भी अपनी कानू को वहाँ से ले जल्दी से भाग खड़े हुए थे। कानू कम न थी, गाय और उसके बछड़े के साथ मुकाबला करना चाह रही थी, पर हम ही ज़बरदस्ती कानू का चैन और पट्टा खींचकर भागे थे.. थोड़ी दूर जाकर जब हमनें पीछे मुड़कर देखा था.. तो गाय हमें बहुत ही ग़ुस्से से घूरे जा रही थी.. दूर से देखने में ऐसा लग रहा था, मानो उस गाय ने हमारा और हमारी कलेक्टर कानू का फोटो अपनी बड़ी-बड़ी सी आँखों में खींच लिया हो, और हमसे कह रही ही,” कल आना शाम को, दोनों को देख लूँगी!”।

जैसे-तैसे हम और क़ानू अपनी जान बचाकर घर पहुँच गए थे। आज तो हम और क़ानू गाय के चक्कर में इतना दौड़े थे, कि थक गए थे.. कानू थककर जल्दी ही गुड़िया बन अपने बिस्तर पर बैठ गई थी… हम कानू के नज़दीक गए.. और प्यारी कानू के एकदम पास जाकर बोले थे,” देखो! काना! माना कि आप मंकी जैसे तेज़ हो पर अपने से बड़ों से पंगा नहीं लेते! गाय दीदी थी! न”।

क़ानू भी हमारी बात समझ रही थी, और बहुत नींद में होने के कारण कानू ने अपनी काली गुलाबजामुन जैसी प्यारी सी नाक हमारे गाल पर लगाते हुए कहा था,” अब कभी नहीं लेंगें हम गाय दीदी और उस छोटे भइया से पंगे!”।

कानू थककर अपने कम्बल में पूरी छुप कर और केवल अपनी गुलाबजामुन जैसी नाक बाहर निकालकर ग़हरी नींद में सो गई थी। और हमें भी नींद आ गई थी.. इस बार नींद में हमनें सच मे अपनी प्यारी कानू को अपने इलाके की कलेक्टर साहिबा के रूप में देखा।

हमनें सपनें में देखा कि हमारी परी जैसी कानू हमारे इलाके की कलेक्टर साहिबा हो गईं हैं.. हमनें देखा.. शाम के वक्त कलेक्टर कानू कॉलोनी के दौरे पर निकलीं हैं, और जो छोटे-छोटे पप्पी बैठे रहते थे.. वो अब बड़े हो गए हैं, और क़ानू की चपरासी की पोस्ट पर हैं।

जैसे ही कानू मैडम घर से निकली.. ये चपरासी की पोस्ट वाले कुत्ते मैडम को देखकर अदब से झुक कर खड़े हो गए थे.. और सलाम मेम साहब! कह अपनी पूँछ कलेक्टर कानू के आगे-पीछे हिलाते हुए चल रहे थे। कानू मैडम पूरे रौब के साथ सडक़ पर अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाते हुए पूरे एरिया का दौरा कर रहीं थीं। अब कानू सामने वाले पार्क में पहुँच गई थी, जहाँ कानू का छोटा सा दफ़्तर था। चपरासी गर्दन झुकाकर पार्क के गेट पर ही खड़े हो गए थे। कानू के दफ़्तर में अन्दर रिसेप्शन पर वही गाय का बछड़ा बैठा हुआ था.. और वही गाय जो हमें और क़ानू को मारने भागी थी.. कानू मैडम की प्राईवेट सेक्रेट्री बनी हुई थी। अब कानू मैडम जाकर अपने दफ़्तर में बैठ गईं थीं, और मैडम की सेक्रेट्री वो गाय..  आसपास के जानवर बनी हुई जनता के रूप में.. एक-एक करके शिकायत कानू मैडम के आगे रखने में लग गई थी।

कलेक्टर बनी हुई कानू मैडम ज़ोर-शोर से अपना दफ़्तर चला रहीं थीं.. और जनता बने हुए जानवर कानू मैडम को सलाम कर रहे थे। सारे जानवरों में एक गाय बीमार भी थी.. जिसके इलाज का ऑर्डर कलेक्टर कानू ने पास वाले अस्पताल में करवाने के लिये दे दिया था। अब दफ़्तर का कार्यकाल समाप्त हो गया था, और हम खुद अपनी प्यारी सी कलेक्टर कानू-मानू के ड्राइवर बन खिलौने वाली कार जो हमारे घर में बच्चों के बचपन के टाइम से रखी थी, टोपी पहनकर कानू मैडम को दफ़्तर लेने पहुँच गए थे.. कानू मैडम को हम खिलौने वाली कार में बैठाकर ला ही रहे थे, कि हमारी कार की टक्कर एक बच्चे की सायकिल से जा हुई.. कानू मैडम को अपने ड्राइवर यानी हमारे ऊपर बहुत तेज़ ग़ुस्सा आया था.. हमें डाँटते हुए कहने लगीं,” गाड़ी ठीक से चलाओ! नहीं तो काम से छुट्टी”।

हमारे कान में ज़ोर-ज़ोर से भौंकने की आवाज़ आने लगी थी, हमारी नींद एकदम खुल गई.. देखा तो वाकई में कलेक्टर कानू हमारे सिरहाने खड़ी हो भौंकते हुए हमें उठा रहीं थीं। हम झट्ट से उठ बैठे और अपनी प्यारी सी कलेक्टर कानू को एक बार फ़िर गले से लगा उसके प्यारे से और मुलायम गालों पर पप्पी दे डाली थी।

कानू को अपने सपने में कलेक्टर के रूप में देख हमें हँसी भी आई थी, और अच्छा भी लगा था। कलेक्टर साहिबा कानू मैडम के आदेशों का पालन करते हुए, एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे, कानू मैडम के साथ।

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