by Rachna Siwach | Oct 14, 2019 | Uncategorized
गर्मी का मौसम था आया उमंग और छुट्टी संग में लाया मायके जाकर हमनें भी जो कुल्फ़ी का था! रंग जमाया भरा पतीला दूधों का जब चूल्हों रखा गाढ़ा होने दशहरी आम की कुल्फ़ी बनेगी हमसे बोली मइया प्यारी! हाँ! हाँ! मिला देंगे आख़िर में गुदा इसमें दूध होने दो तुम गाढ़ा प्यारी...
by Rachna Siwach | Oct 14, 2019 | Uncategorized
आओ! सखी री! खेलें खेल! तोड़ दें पिट्ठू मारकर गेंद लाल टुकड़ा था.. ईंट का पाया ख़ूब रगड़ सड़क पर स्टापू बनाया स्टोन गैलेरी में भी काम यह आया उसको भी बना घिस निपटाया ख़ूब निपुण थे! खेल में हम भी हर खेल में नाम था! ख़ूब कमाया पिट्ठू से पहुँचे बैडमिंटन पर रैकेट...
by Rachna Siwach | Oct 10, 2019 | Uncategorized
मध्यप्रदेश के भोपाल शहर का नाश्ता बोला पोहा! पोहा! पोहा! पोहा! सवेरे खुशबू फैली हवा में हरी मिर्च का तड़का बोला राई चटकी चिड़िया चहक़ी भून गईं मूंगफली आलुओं ने प्रातः वंदन सा बोला दस-दस रुपए में बिक रहे थे दौने नींबू के रस ने स्वाद सा घोला हरे धनिये की खुशबू फैली...
by Rachna Siwach | Oct 10, 2019 | Uncategorized
” अरी! लगाइए! न्यूज़.! देखूँ ज़रा आज न्यूज़ में क्या है..!”। एक ज़माने में जब दूरदर्शन पर समाचारों का वक्त हुआ करता था.. तो घर में माहौल सा बंध जाया करता था.. विशेषकर जब हिंदी के समाचारों को पढ़ने.. सलमा सुल्तान या फ़िर अविनाश कौर सरीन जैसी योग्य समाचार...
by Rachna Siwach | Oct 5, 2019 | Uncategorized
दस सिर वाला पुतला देखा! वाह रे! भइया!.. भइया! भइया! बड़ी थीं.. मूछें रोबीली जिसकी वाह रे! भइया!.. भइया! भइया! काठी ऊँची पेट था.. मोटा उसका भइया वाह रे! भइया!.. भइया! भइया! आजू-बाजू बिल्कुल जैसे उसके दो-दो पुतले और खड़े थे वाह रे! भइया!.. भइया! भइया! बोले तीनों...
by Rachna Siwach | Oct 5, 2019 | Uncategorized
” आ जो भई! सब! खीर पूड़ी बने सैं..! अप-आपणी खाओ!” ” तू जागी के! रावण देखन..?”। ” हाँ! देख लेंगें! शाम को.. जैसा भी होगा!”। हरियाणा के माहौल में विजयदशमी मनाने का पहला अवसर मिला था.. अब हमारा माहौल तो हरियाणवी न था.. और न ही विवाह से...