कुल्फ़ी

कुल्फ़ी

” बस! बस! और नहीं.. हो गया! एक रोटी मैं कम ही खाऊंगा.. वो तेरी कुल्फ़ी भी तो खानी है!”। जॉइंट परिवार था.. हमारा! तो जब भी गर्मियों की छुट्टी में जाना होता था.. सभी सदस्यों के भोजन के होने के बाद ही.. आख़िर में माँ और पिताजी खाया करते थे। जिनको कभी-कभी अपने...
बैडमिंटन

बैडमिंटन

” भई! वाह..! चाची.. आप तो बहुत ही अच्छा बैडमिंटन खेल लेते हो! हमें तो पता ही नहीं था”। खाली खड़ी थी.. मैं! अपनी छत्त पर.. और बच्चे नीचे ही बैडमिंटन खेल रहे थे.. बस! अपना टाइम पास करने के लिए.. नीचे पहुँच एक मैच खेल डाला था। मैच खेलते-खेलते मेरा रैकेट हवा...
पुलाव

पुलाव

वेज बिरयानी, नॉन वेज बिरायनी veg पुलाव और न जाने कितनी ही varieties आजकल रोज़ ही सुनने में आतीं हैं। हमारे ज़माने में ये बिरयानी-शिरयानी तो थीं.. पर हमारे लिए तो हर बिरयानी से ऊपर होकर माँ के हाथ का पुलाव ही था। एलुमिनियम के बड़े भगोने में बना हुआ.  मटर गोभी और...
मटर-पनीर

मटर-पनीर

हरे-भरे मटर के दानों से घिरा होता है.. सर्दियों का यह सीजन। अब जब मटर की बात होती है.. तो मटर पनीर का स्वाद दिमाग़ में नहीं आए.. ऐसा हो ही नहीं सकता। मुझे मटर-पनीर खाने का कम और बनाने का शौक हमेशा से ही रहा है। छुटपन में तो माँ के हाथ का ही स्वाद रहा.. पर जब से होश...
सगाई

सगाई

” ये. ..  दिखाना सगाई की एल्बम! हम्म! काफ़ी अच्छी बनाई है!”। ” wow! सभी की तस्वीरें बहुत ही अच्छी आईं हैं!”। और एल्बम के पन्ने पलटते हुए.. एकबार फ़िर सगाई की पार्टी में, मैं जा शामिल हुई थी। ये सगाई मेरे बड़े भाई-साहब की थी.. इतनी धूम-धाम...
डालडा

डालडा

पाँच-पाँच किलो के पीले रंग के डब्बे घर में इकट्ठे हो जाया करते थे.. हरे रंग से डालडा लिखा हुआ होता था.. और एक मुझे अच्छे से आज भी याद है.. डब्बे पर एक हरे रंग का पेड़ भी बना होता था। भई! बचपन में डालडे से बने पराठें और पूड़ियाँ तो ख़ूब खायीं हैं। उन दिनों डालडे का ही...