” पैसे लाई है..! हम्म… हाँ! दस रुपए हैं!”।
” वाओ! मज़ा आ गया! चल फ़िर इस पीरियड के बाद कैंटीन चलते हैं!”।
” क्या हो रहा है.. टीना! मीना! क्लास में बातें क्यों कर रही हो!”।
” sorry मैडम!”।
क्लास में बैठकर सहेली संग.. 4th period में ही कैंटीन जाने की प्लानिंग कर रहे थे..
हालाँकि बातें तो धीरे-धीरे ही कर रहे थे.. पर फ़िर भी मैडम की नज़र हम पर पड़ ही गई थी.. और पकड़े गए थे।
खैर! पैसे तो थे ही हमारे पास! इंटरवल में कैंटीन जाना पक्का हो गया था।
हमारा स्कूल 9 पेरियोडों का लगा करता था.. जिसमें से 5th पीरियड के बाद ही इंटरवल हो जाया करता था। घर से लंच बॉक्स रोज़ ही लेकर चला करते थे.. पर स्कूल कैंटीन में जोजी राम भइया के समोसे और ब्रेड पकोड़े खाने का मज़ा ही कुछ और था।
कभी हमारे पास पैसे होते.. तो कभी सहेली के पास! बस! इंटरवल से पहले ही मौका देख.. डेस्क के नीचे मुहँ कर अपना लंच बॉक्स खाली कर… कैंटीन जाने की प्लानिंग कर लिया करते थे।
नहीं भी पैसे होते.. तो भी कोई फ़िक्र की बात नहीं हुआ करती थी.. हमारी सहेली की मम्मी हमारे ही स्कूल में टीचर हुआ करतीं थीं.. बस! कभी कभार जोजी राम भइया की कैंटीन के समोसे खाने के लिए इंतज़ाम वहाँ से भी हो जाया करता था।
अच्छी मज़ेदार कैंटीन थी.. हमारे जोजी राम भइया की! हमें याद है.. हमारी पसंद का काफी टेस्टी सामान मिला करता था.. एक तो वो पीले रंग के ट्रांसपेरेंट से पेपर में खट्टी-मीठी इमली और वो.. चटनी भर कर.. गर्म-गर्म पचहत्तर पैसे का एक ब्रेड पकोड़ा! समोसे वगरैह तो होते ही टेस्टी थे.. उन दिनों पच्चास पैसे में एक समोसा हुआ करता था.. हमारी कैंटीन में..
वक्त के साथ-साथ हमारे देखते ही देखते जैसे-जैसे हम बड़े हुए.. भइया ने कैंटीन काफ़ी इम्प्रूव कर दी थी.. और अब उसमें.. डोसा, patties , चाऊमीन वगरैह रखने लगे थे।
लेकिन हम सहेलियों का मन-पसंद अब patties ही था.. फ़िर कहीं इंटरवल में patties ख़त्म न हो जायें.. 4th पीरियड में ही चार रुपए लेकर भागा करते थे।
जब तक स्कूल में रहे.. कैंटीन के मज़े जमकर लिए।
मेज़ पर रखी बच्चों की patties के लिफाफे ने आज जोजी राम भइया की कैंटीन में पहुँचा दिया था।