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Bhor Ka Taara- Narendra Modi !

मूर्ख शेर और चालाक लोमड़ी !!

महान पुरूषों के पूर्वापर की चर्चा !

उपन्यास अंश :-

“चोर से पहले चोर की माँ को मारो – का फतवा जारी हो चुका है !” अमित मुझे बता रहा था . “सब हमारे खिलाफ हैं .” वह हंसा था .

“मसलन कि …..?” मैंने पूछ लिया था . जानता तो मैं सब था . पर मैं चाहता था कि …हर बात एक दस्तावेज बन जाय …दर्ज हो जाय ….ताकि हमें चेतावनी मिलती रहे ! समय बहुत ही तेज रफ़्तार से बदल रहा था !!

“मसलन कि …प्रेस….मीडिया …तमाम एन जी ओज ….देश….विदेश …नेता ,अभिनेत …और यहाँ तक कि समूचा सरकारी तंत्र …हमारी खिलाफत में आ खड़ा हुआ है !” अमित का चेहरा लाल हो आया था . “आई ….डोंट ….नो ….” वह अब अपनी उंगलियां मसल रहा था …..घोर निराशा से लड़ रहा था !

“तो हम ये जाने कि हमारे पक्ष में है -क्या ….? कौन हैं – जिन के लिए हम ये जंग लड़ें ….?”

“जनता ……..!” अमित का उत्तर था . सटीक उत्तर था . सही उत्तर था . एक ठोस सच था ! “जनता …तुम्हें …चाहती है ! जनता के तुम कर्णधार बन चुके हो, नरेन्द्र  !! और जो हमें जनता से मिल रहा है ….”

“पर जनता के हाथ में है , क्या ….?”

“सब कुछ जनता के हाथ में ही तो है ….?”अमित हंसा था . “हमारे पूर्वज यही खेल खेल कर तो गए हैं …! अगर हम द्यान पूर्वक देखें ….सोचें …समझें ….तो ..जनता से ज्यादा ताकतवर और है कौन …? एमेर्जेंसी  …लगाने पर क्या हुआ था …, याद है , न ?”

लेकिन मैं सोच में पड गया था . यों तो मैं प्रसन्न था कि …जनता ने ही मुझे चुना था …देश के लोग मुझे चाहने लगे थे …मेरा नाम उन की जुबां पर चढ़ गया था …और मैं अब उन का मसीहा बन चूका था ! लेकिन …बीच में जो व्यवधान था …जो शक्तिशाली लोग थे …जिन को हर कीमत पर सत्ता चाहिए थी …जो सौदाई थे …और हर कीमत देने को तैयार थे ….उन का मुकाबला …कर पाना …?

कितने ही पीछे …नहीं खप गए हैं …इस सत्ता के मोल-तोल में ….? मुझे अचानक ही श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह याद हो आए थे . कितना भारी बहुमत मिला था – उन्हें …? किस कदर देश ने उन्हें कन्धों पर उठा लिया था ! वो कुर्सी पर जा ही बैठे थे !! लेकिन ……..

“कांग्रेस ….?” मेरे जहन में ये शब्द घोड़े की तरह उग आया था ! “कांग्रेस ….सत्ता नहीं छोड़ेगी …किसी भी हाल में ….” मुझे मेरा मन बता रहा था . “आज विस्वनाथ प्रताप सिंह का कोई नाम तक नहीं लेता , नरेन्द्र ! तुम हो क्या ….? तुम किस खेत की मूली हो ….?”

“शेर ….और लोमड़ी का शो – शुरू हो चुका है !” अमित तनिक हंसा था . “सत्ता -महत्ता …पाने-खोने के द्वन्द में ….हमेशा शेर और लोमड़ी ही लड़ा करते हैं ! मूर्ख शेर ….और चालाक लोमड़ी …..”

“तुम मुझे मूर्ख कह रहे हो …..?” मैं बिगड़ा था .

“तो क्या तुम ….शेर हो ….?”अमित ने चुहल की थी . “शीशे में मुंह तो …देखलो , मेरे भाई !” और वह हंस पड़ा था .

मैं अमित का कायल था . मैं अमित का प्रशंसक था ….मैं अमित का अगुआ था …अनुकरणीय था …पर अमित मेरा इस से भी कहीं ज्यादा …अज़ीज़ था ! उस की स्पस्टवादिता का में कायल था ! उस की अचूक द्रष्टि का मैं लोहा मानता था ! मैं मानने लगा था कि ….शायद ..चाडक्य …से भी ज्यादा बड़ा अमित था ! उस के आंकड़े अमिट थे …और उस का अनुमान हमेशा ही सही होता था !

अभी तक के हमारे राजनैतिक सफ़र में मुझे अमित कहीं भी छोटा हुआ नहीं लगा था ! हमारी जीत-हार …हमारे कर्तव् और करतूतें …सब अब शामिल थे ! हम दो नहीं ….अब एक थे …! एक जान थे …एक मन थे …और एक तन थे !!

“ये चोर की माँ …कौन है …?” मैंने फिर चुहल की थी .

“मैं हूँ ….!” अमित तपाक से बोला था . “अब मुझे मारा जाएगा …अब मेरी कब्र खोदी जा रही है ! फिर …..”

“अकेले और ….निहत्थे  …शेर को मारा जाएगा ….?” मैंने पूछा था .

“हाँ ….!” अमित ने स्वीकारा था . “लेकिन लोमड़ी …यहीं मूं की खाएगी …!” उस ने मुझे आँखों में घूरा था . “भयंकर ….गलती करेगी ….!!”

“कैसे ….? क्यूं …?” मैं भी अब जानने को उत्सुक था .

“बदनाम होगी ….! रास्ता भूलेगी ….!! और मैं ….मरूंगा भी नहीं ….” ‘

“बात तो इस तरह कर रहे हो ..मानो …कि …..”

“यही सच है , नरेन्द्र ! जीत हमारी होगी …..”

“क्यों ….?”

“वह शेर से डर गई है ! तभी तो मेरी और मुड़ी है ….!!” उस ने मुझे निरखा था . “और जो डर गया …..सो मर गया …!!” वह खिलखिला कर हंसा था .

लोमड़ी का शेर से डरना तो स्वाभाविक ही था ….पर …मैं अमित के तर्क को ठीक से समझ न पाया था . पर ,हाँ ! इतना तो मैं समझ गया था …कि …अब किसी भी हाल में मुझे मिटा दिया जाएगा ! चूंकि मैं अब एक संभावना के स्वरुप में था …सत्ता का दाबेदार था …योग्य ….और अनुभवी था ….इस लिए ही मुझे मिटा देना – लोमड़ी का राज-धर्म था !!

शायद अब तक का तो मेरा राजनैतिक सफ़र …एक गुमनामी के गर्भ में हुआ था …पर अब तो सब कुछ उजागर था !!

मैं कुछ नहीं था . मैं तो एक लावारिश लड़का था . फिर मैं एक प्रचारक था . फिर मैं एक सहयोगी था …कार्यकर्ता था …! मेरे न कोई आगे था ….न कोई पीछे ! अब तक तो मैं काम और नाम के पीछे रात-दिन डंडा ले कर दौड़ता रहा था . लोग मुझे स्तेमाल कर लेते थे …और मैं स्वेच्छा से उन का सहयोग करता था . जान तक लड़ा देता था – मैं …अतः लोग मुझे बेहद पसंद करते थे ! और धीरे-धीरे मेरा नाम बदा होने लगा था !

तब लोमड़ी को क्या पता था कि …यहाँ …किसी शेर का भी जन्म हो चूका था …? उसे तो पता था ….नहीं,नहीं …उसे विश्वास था …कि जो उस के आस-पास था …सब गीदड़ों की भोंग थी ! गीदड़ चिल्लाते तो ज़रूर थे ….शोर भी मचाते थे ….और बचा-खुचा खा -खा कर मोद भी मनाते थे …लेकिन लोमड़ी की एक ही चली चाल पर न जाने कितने जानें दे बैठते थे !

कांग्रेस के लिए भारतीय जनता पार्टी एक बे-मामूल बात थी !

कहते थे – ये तो सिर्फ शहरियों की ही पार्टी है ! व्यापारियों का शगुल है – ये पार्टी ! अपनी मांगे मनवाने का एक प्लेट फॉर्म है – ये भारतीय जनता पार्टी ! पहले इसे ही तो जन-संघ कहते थे ? इस के पढ़े-लिखे लोग ….हिंदी में कुछ बोलते रहते हैं …! पर जनता इन्हें जानती कहाँ है ….? कांग्रेस तो जन-जन की पार्टी है …धरा-बेस की पार्टी है …कांग्रेस ! देश को आज़ादी दिलाने वाली पार्टी – कांग्रेस ही तो है ! और फिर ये सब की पार्टी है . हिन्दू,मुस्लिम ,सिख, इसाई ….सब की साझिली पार्टी है – कांग्रेस !

कांग्रेस एक विचारधारा का नाम है ! कांग्रेस गंगा की तरह …पाप-मुक्त करने वाली पार्टी है !! कांग्रेस के नेताओं के नाम आसमान पर सितारों से जेड हैं – जन-मन को प्रफुल्लित करते रहते हैं ! कांग्रेस ……..

बाते तो सभी सही थीं ……

लेकिन अब बेटे का जूता …बाप के पैर में आने लगा था !

“कांग्रेस बूढी हो गई है !” मैंने स्वयं से कहा था . “नेता तो गए ….अब नाम भी चला जाएगा ! मैंने ये एक निष्कर्ष निकाला था . ‘लड़ाई चाहे लोमड़ी जीते …या कि शेर …पर उस का परिणाम होगा वही ….जो वक्त चाहता है !!

“वक्त के मुताबिक़ ही मैंने पत्ते फैक  दीए  हैं …!” अमित ने सूचना दी थी . “अगर तीर ठिकाने पर लगा तो ….देखना ….” वह हंसा था .

“हम भी तो जाने , मित्र …कि ….?”

“मैं जनता में घुस रहा हूँ . मैं जनता से विनम्रता पूर्वक …अपना हक़ मांगूंगा ….और मैं ले लूँगा !! अमित का सीधा-साधा उत्तर था .

…………………………

क्रमशः

श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

 

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