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बेचारे ! फिर लौटे ही नहीं !!

महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !

भोर का तारा -नरेन्द्र मोदी .

उपन्यास अंश :-

दिल्ली ….? हाँ,हाँ ! अब दिल्ली ही मेरी आँख में आ जड़ी थी !!

“मुझ से मत भिडो, मोदी …!” दिल्ली ही थी जो मेरे सामने खड़ी-खड़ी हंस रही थी . “में बड़ी ही मुक्त ….और सख्त मिटटी से बनी हूँ !” मैं आती आवाजों को स्पष्ट सुन रहा था . “कितने आए …कितने गए ….? हा हा हा !!” हंस रही थी,दिल्ली ! “छुपा तो कुछ भी नहीं है ….?” उस ने मुझे संकेत दिया था . “आँख उठा कर देख लो ….उन प्रमाणों -से खंडहरों को !” उस का इशारा इतिहास की ओर था . “उखाड़ फैंका न मैंने …उन तमाम – तैमूरों…तुर्कों …और मुग़लों को …जो मर्द बनते थे … और इन अंग्रेजों को भी ….जो चालाकी में दम भरते थे ….? ” सटीक बातें थीं ….सच भी थीं ….

“पर मैं …मेरा मतलब …कि मैं …..” कुछ कह देना चाहता था ,मैं !

“मैं -वाले ही तो हैं , ये सब लोग ….? अब इन की रूहें …इन खंडहरों में बसी हैं ! और आज तक विलाप कर रही हैं ….और पूछ रही हैं ….कि ये मरे क्यों ? परास्त हुए ….तो क्यों ….?”

“पर मैं …यों न मानूंगा , माँ !” मैं विनम्र हो आया था . मैंने भारत माँ का सम्मान किया था . “मैं न भागूंगा ….! मैं …दो-दो हाथ अवश्य करूंगा ….! फिर जीऊं …या खेत रहूँ …..?”

“नेता जी की तरह ….?” भारत माँ पूछ रहीं थीं . “हारने वाला तो वो भी नहीं था न,नरेन्द्र ! वो तो जीत ही गया था ! पर ….”

“पर ….?” मैंने पूछा था .

“कांग्रेस ..!” उत्तर आया था . “कांग्रेस अंग्रेजों के साथ मिल कर गोटें खेल रही थी ! देश भी तो कांग्रेस के इशारे पर ही बटा …? “

“हुआ क्या था , माँ ….?”

“हुआ ये कि …अंग्रेज सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज के चंगुल में आ फंसे थे ! अब उस तोते को न मार सकते थे ….और न ही छोड़ सकते थे ….? देश की जनता में रोष व्याप्त हो गया था ….और ….”

“और ….?”

“नेवी के छह जहाज ….जो अभी तक समुद्र के बीचों-बीच खड़े थे ….अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर बैठे थे ! भारतीय थे -सब सैनिक ! अंग्रेजों के सौतेले व्यवहार से क्षुब्ध थे ! उन के साथ जो सुलूक होता था …वह गुलामों जैसा ही तो था ….? अतः उन लोगों ने आवाज़ बुलंद की – आज़ादी की !”

“डुबो दो छह-के-छह जहाज……….!!” चर्चिल – ब्रिटेन के प्रधान मंत्री का आदेश था .

लार्ड माउंट बैटन हैरानी में पड गए थे ! वह तो समझ रहे थे कि देश का रुख किधर था ….और अब यहाँ उन का कोई समर्थक न बचा था …? कांग्रेस ही डूबते तिनके का सहारा थी !

“इन गुलामों को ….समुद्र के गहरे में दफना दो ….!” चर्चिल बहुत नाराज़ थे . “बू तक …ना आए ,,,आज़ादी की …..ऐसा ……” उन के आदेश स्पष्ट थे .

“लेकिन ….लेकिन …फिर ..अंग्रेज भी एक ना बचेगा ….? ” लार्ड माउंट बैटन ने बताया था . “देश के लोग रोष में हैं ….और अब कांग्रेस कुछ भी न कर पा रही है ….!”

“तो …..?”

“दे-दे ते हैं …इन्हें ….”

“देश दे-दें ….? भारत दे-दें ….? गोन मैड ….? पागलों जैसी ….” चर्चिल चीखने-सा लगा था . “जानते हो ….परिणाम ….?”

“जो भी होगा ….होगा …!! पर अब हमें देश देना ही होगा ….?” माउंट बैटन ने साफ़ कहा था . “भारतीय सेना भी विद्रोह पर उतर आई है ! एयर फ़ोर्स भी नाराज़ है . सैनिक सब क्षुब्ध हैं ! आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ हैं ! हमारे पास सेना को रोकने के लिए है क्या ….?”

“तो ….सुनो !” चर्चिल की आवाज़ संगठित थी . “बाँट दो , देश को ….! टुकडे – टुकडे कर दो ….! इस तरह बांटो कि …हमारे ही हाथ रहे सब हुछ ….? मैंने जिन्ना को बुलाया है . अम्बेडकर यहाँ है ….और ..मास्टर तारा सिंह को तुम संभालो ! हो सके तो ….रियासतों के लोगों को भी शामिल करो …? कुछ दाल ….कुछ खिचड़ी ….और बहुत सारा तेल-फुलेल ….! सब इस तरह से नष्ट-भ्रष्ट कर डालो ताकि …ये लोग समझ ही न पाएं …और न ही संभाल पाएं ….”

“कोशिश करता हूँ ….!” कहते हुए माउंट बैटन ने पसीने पौंछे थे .

“नहीं, देश नहीं बंटेगा ….” गाँधी जी ने साफ़-साफ़ बताया था ,माउंट बैटन को . “अगर तुम चाहो तो …मेरे शरीर के टुकडे-टुकडे कर डालो ….मेरी लाश को ….” गाँधी जी गंभीर थे . “मैं देश को बंटने न दूंगा ….?”

“जिन्ना बनेगा …स्वतंत्र भारत का प्रधान मंत्री ….?” दूसरी शर्त थी माउंट बैटन की .

“बना दो ….! मुझे क्या आपत्ति है …?”

“मुझे आपत्ति है ,बापू !” जवाहर बोला था . “देश का प्रधान मंत्री तो मैं ही बनूँगा ….!” जवाहर कांग्रेस के दम पर बोल रहा था . कांग्रेस ने अब तक सब तय कर लिया था .

“पटेल को पूरा देश चाहता है ….?” गाँधी जी ने तुरप लगानी चाही थी .

“लेकिन अब वही होगा ,बापू ….जो जवाहर चाहता है !” घोषणा हुई थी . दंभ पूर्ण घोषणा ….! “अब आप …आराम फरमाईये …!!” हँस गया था ,जवाहर .

“गाँधी जी …..?”

“कांग्रेस ने ही तो मरवाया था ….? बंटवारे में ये भी तो शामिल था ? नेहरू और कांग्रेस को निष्कंटक भारत का राज चाहिए था …? सो उन्होंने ले लिया था ….!” भारत माँ हंस कर चलती बनी थी .

मैं अब अकेला खड़ा था . कैसे लड़ पाऊंगा …कांग्रेस से ….मैं तय ही न कर पा रहा था ! कांग्रेस तो …पूर्ण …और प्रवीण लड़ाका थी ….? हर प्रकार के संघर्ष ….और …संजीदगी से गुजारी थी …और न जाने कितनी विकट परिस्थितियों का सामना किया था …? पर मैं तो …एक दुध मुहां बच्चा था – उस के लिए ….?

हाँ,हाँ ! तब मुझे भी याद आया था कि …मेरे पास भी लड़ाई का कुछ साज़-सामान था ….!!

मैं एक निःस्वार्थ सेवक बन चुका था ! वक्त ने मुझे यही एक गुरु मंत्र दिया था …कि मैं निःस्वार्थ समाज-सेवा करू …देश सेवा करू ….और अपने संगी-साथियों का …भरोसा पा लूं ! मैंने किसी को वायदा कर के दगा नहीं दी . किसी का काम नहीं रोका . हर किसी का सहयोग किया . निःस्वार्थ पार्टी में …मैंने जी तोड़ काम किया . लिया कुछ नहीं …माँगा भी कुछ नहीं ! जिस ने मुझे पुकारा …मैं उसी के साथ जा खड़ा हुआ …और उस की भरपूर मदद की ! जिस ने पुकारा …उसी को पार किया -चाहे वो कोई भी था ….? बड़े-बड़े नेताओं के मैंने हंस-हंस कर बड़े-बड़े काम निकाले …रथ-यात्राएं निकालीं …रैलियां आयोजित कीं …चुनाव लड़ाए ….और जब अटल जी प्रधान मंत्री बने …तो मैं हर्षातिरेक से कूदता-फांदता …उन के चरणों में जा गिरा था ….!!

यही -ढाल-तलवार …आज भी मेरे हाथों में ज्यों -की-त्यों …जड़ी थी …!!

“यही तो परिभाषा है – एक सच्चे स्वयं सेवक की ,नरेन्द्र !” अटल जी थे . वो मुझे आशीर्वाद देने चले आये थे …हमेशा की तरह ! “लेकिन राजनीति की लड़ाईयां लड़ने के लिए ….एक स्वयं सेवक को देश-धर्म भी देखना होता है ! राज-धर्म – एक अलग ही विधा है , नरेन्द्र !” वह बताने लगे थे . “मैं जानता हूँ कि तुम …कर्त्तव्य -निष्ट हो ! तुम सच्चे सिपाही और एक अच्छे देश-भक्त हो ! लेकिन जहाँ …शाशक बनता है – आदमी …वहां उस की संज्ञा बदल जाती है !” उन्होंने मुझे गौर से देखा था .

“कैसे ….?” मैं पूछने लगा था .

“मुझे देखो ,न !” उन का आग्रह था . “मैंने हर बार एक ही कोशिश की ….कि मैं देश में एक ऐसा साम्राज्य ला दूं ….जो बे-जोड़ हो ! जैसे कि मैंने अपने ….पडौसी देशों के साथ ..मैत्री पूर्ण सम्बन्ध बनाने चाहे …? मैंने अहंकार और अभिमान छोड़ कर …बस यात्रा की …और बुलावे भेजे ! मैंने हर किसी को मनाया …समझाया …और कहा कि हम सब …मिल-जुल कर रहें ! लेकिन …देखा …कि हुआ क्या ….?”

“लेकिन क्यों हुआ …?” मैंने पूछ लिया था .

“भय बिन ….होय ..न प्रीत ….!” अटल जी अपने कवि के चोले में लौट आए थे . …और शाश्त्रों से उठा -उठा कर प्रमाण देने ;लगे थे . “याद है …जब मैं पहली बार पी एम् बना था …१३ दिन के लिए ….? मैंने स्तीफा दिया था – क्योकि हमारी सरकार के समर्थन में कोई नहीं आया था …? और कांग्रेस हम पर हंसती रही थी ….हमें अंगूठा दिखाती रही थी ….और हम ……?” मुझे गौर से देखा था ,अटल जी ने . “मैंने तब कहा था – अगली बार हम बहुमत ले कर आयेंगे ….पूर्ण बहुमत !” वो रुके थे .

“दूसरी बार ….जब ललिता जी ने समर्थन वापस लिया था ….?” मैंने उन्हें याद दिलाया था .

“कांग्रेस की चाल थी ! एन डी ए की सरकार को गिराने में …कांग्रेस को फायदा था ! कांग्रेस नहीं चाहती थी कि उस के सिवा और कोई देश में शाशन करे ….?”

“आपने गुजरात के लिए मुझे ….आशीर्वाद दिया था ! सो मैंने …..”

“प्रसन्न ,,,हूँ , मैं ! तुम से मैं बहुत प्रसन्न हूँ ,नरेन्द्र ! तुम से मुझे उम्मीद है कि ….तुम …”

“लेकिन …ये कांग्रेस …..?” मैंने सीधी बात की थी . “मेरे तो पहले ही पीछे पड़ी है ? मुझे तो जेल भेजने के सारे प्रयत्न हो रहे हैं . आप तो देख ही रहे हैं ….कि …”

“संघर्ष है जिन्दगी,नरेन्द्र !” उन का आदेश था . “मौत से आगे …जिन्दगी का …कोई और अंत नहीं ! तो फिर लड़ो …? हाँ ! राज्य की लड़ाई में …और देश की लड़ाई में अंतर है ? जमीन-आसमान का अंतर है ! केंद्र के लिए एक समग्र व्यक्तित्व की आवश्यकता है . ख़ास कर …दिल्ली के लिए ….तो ….?” हंस गए थे ,अटल जी .

मैं फिर वहीआ कर टिक गया था ! कांग्रेस ही मेरा मार्ग रोके खड़ी थी !!

अचानक ही मैं उन महारथियों के नाम गिनने लगा था …जो कांग्रेस से लड़े थे …और सफल भी हुए थे !

विश्वनाथ प्रताप सिंह पहले ही कांग्रेसी थे …जिन्होंने कांग्रेस का तख्ता पलटा था …! उन्होंने राजीव गाँधी पर बीफ़ोर्स तोप सौदे में दलाली खाने का आरोप लगाया था . इस मुद्दे को ले कर पूरा देश ही आंदोलित हो उठा था ! इस सौदे में तोपों की खरीददारी जैसे संगीन मामले में …दलाली खाना …पहली बार लोगों ने सुना था ! विश्वनाथ प्रताप सिंह जनता के सामने एक सच्चे देश-भक्त के रूप में उदय हुए थे !

उन की छवि साफ़ थी , उन का विगत भी सही था . राजे-महाराजों के कुल-खानदान के थे -विश्वनाथ प्रताप सिंह ! लोगों को एक दम वो भा गए थे ! राजीव गाँधी भी कोई खिलाड़ी न थे ? घबरा गए थे . ‘गली -गली में शोर है …राजीव गाँधी चोर है’ – देश के आर-पार बज उठा था . चुनाव हुए थे . विश्वनाथ प्रताप सिंह को बहुमत मिला था . कांग्रेस की हार हुई थी . और फिर बी जे पी के साथ मिल कर केंद्र में सरकार का गठन हुआ था !

लेकिन कांग्रेस नहीं चाहती थी कि ये गठ -बंधन सफल हो !

तब कांग्रेसियों ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को याद दिलाया था कि ..अगर वो कांग्रेस की सलाह पर चल पड़े तो …आजन्म प्रधान मंत्री ही बने रहेंगे …जनता के चहेते होंगे ….देश के लाडले होंगे …विश्वनाथ प्रताप सिंह ! और अगर बी जे पी के साथ टिके रहे …तो मिटटी में मिल जाएंगे ! हिंदुत्व का मुद्दा ही ले डूबेगा ,उन्हें ? जब कि मंडल कमीशन की सिफारसें …अगर वो …अमल में ले आएँगे …तो …अमर हुए धरे हैं !!

“भई ! कांग्रेस का बेस तो वही है ! मुसलमान…पिछड़े लोग ….और ब्राह्मण …इन्ही को ले कर …तो बहुमत बनता है ? मार्शल कौमों को हराने का …अचूक अस्त्र है , ये ! आप इस मंडल को लागू करते ही ….अजेय हैं !!

और मंडल की घोषणा होते ही बी जे पी ने समर्थन वापस ले लिया था !

कांग्रेस का यही इरादा तो था …? विश्वनाथ प्रताप सिंह को कांग्रेस के साथ बगावत करने की सज़ा उस ने उन्हें चौराहे पर खड़ा कर के दी थी !!

बेचारे ! फिर लौटे ही नहीं ….!!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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