“सारा दिन घर में बैठकर इधर-उधर की बातें करते रहते हो! कुछ अच्छा सीखो! हमारा मतलब है.. छुट्टीयां बर्बाद मत करो! कोई मन-पसन्द कोर्स कर लो!”।
” हम्म! क्या सीखें माँ! बात तो आपकी सही है!”।
” हाँ! आईडिया..!! क्यों न हम गिटार बजाना सीखें! नहीं! नहीं ! वो तो सभी सीखते हैं.. ऐसा करते हैं.. हम बाँसुरी बजाना सीख लेते हैं.. यह एकदम ही नई चीज़ है!”।
बाँसुरी बजाना सीखना हमें भी अच्छा लगा था.. वाकई! में नई चीज़ थी.. और सबसे अलग भी।
बस! फ़िर क्या था.. बाँसुरी सीखना ही गर्मियों की छुट्टीयों में फाइनल हो गया था.. और इस कोर्स के लिये बच्चों ने अपने पिताजी को भी सहमत कर ही लिया था।
देखते ही देखते घर में बाँसुरी की प्रैक्टिस शुरू हो गई थी.. अब तो घर में शोर-शराबा कम और बाँसुरी वादन ज़्यादा सुनाई देने लगा था.. हमारी भी जान में जान आ गई थी.. कि लड़ाई झगड़े से जान बची।
बच्चों के होठों पर बाँसुरी देख और बाँसुरी की धुन सुनकर कानू भी अपना भौंकना भूल गयी थी.. जैसे ही बच्चे अपनी बाँसुरी बजना शुरू किया करते.. कानू अपनी सफ़ेद कोमल गर्दन इधर-उधर कर हैरान-परेशान हो जाया करती.. और हमसे हमारे ऊपर अपने प्यारे से दोनों पंजे रख पूछा करती,” कौन सा गाना गाते हैं! माँ दीदी-भइया! हमें भी सीखना है!”।
हमनें कानू की इस बात पर वशेष ध्यान नहीं दिया था.. हुआ यूँ, कि मौका देखकर कानू रानी बच्चों की बाँसुरी चुपके से मुहँ में दबाकर एक दिन हमारे पास ले आई थी। हमनें बाँसुरी को कानू के मुहँ से निकालते हुए, कहा था..
” चलो! छोड़ो! निकलो..!! बाँसुरी ख़राब कर दोगी!”।
हमनें कानू के मुहँ से ज़बर्दस्ती लेकिन प्यार से बाँसुरी मुहँ से निकाल तो ली थी.. पर प्यारी और सबसे न्यारी कानू की आँखे बार-बार हमसे यही बोल रही थीं,” अगर हम नहीं बजा सकते, तो तुम्हीं हमें बजा कर सुना दो.. माँ!”।
हमें कानू का यह कहना ख़ूब समझ आ गया था.. और हमनें बच्चों को आर्डर देते हुए, कहा था,” अरे! भई! अपनी छोटी बहन के लिये बजाओ तो सही कोई धुन!”।
बच्चे कहते ही हमारी बात मान गए थे.. और अपनी प्यारी कानू के लिये एक सुंदर धुन बजा दी थी.. हमारी गोद में बैठकर अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाते हुए.. और गुलाबी प्यारी जीभ साइड में लटकाकर बाँसुरी वादन का आनन्द ख़ूब लिया था.. पर न जाने कहाँ कमी रह गयी थी.. जो कानू फ़िर से मौका देख बच्चों की बाँसुरी अपने मुहँ में दबा हमारे पास ले आई थी।
कानू ने हमारी आँखों में आँखे डालकर एकबार फ़िर प्यार से देखा था.. और इस बार हमारी बात समझ आ गई थी.. कि कानू बिटिया हमसे क्या कहना चाहतीं हैं.. बस! हमनें कानू के मुहँ से प्यार से बाँसुरी निकाल एकबार कानू को बजा कर सुना दी थी.. हमारे मुहँ से बाँसुरी की धुन सुनकर कानू-मानू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा था, हालाँकि हमनें ही कौन से सुर बाँधे थे, पर फ़िर भी.. अपनी ख़ुशी का इज़हार कानू ने अपनी कोमल जीभ से हमारे गाल को चाटकर किया था.. अब सही बात हमारी समझ में आ गई थी..
सारी दुनिया एक तरफ थी.. और कानू के लिये कानू की माँ एक तरफ। हमारी कानू के हिसाब से दुनिया के सबसे बेहतरीन बाँसुरी वादक हम ही निकले।
कानू की नज़रों में बेहतरीन बाँसुरी वादक का ख़िताब पाकर और कानू का प्यार लेकर एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे.. बाँसुरी की धुन पर कानू संग जीवन की ओर।
कानू का यह बाँसुरी की धुन का प्यार कैसा लगा! लिखकर भेजिए.. और जुड़े रहें ऐसे ही कानू के किस्सों के साथ।