मौसम

मौसम

इस सुन्दर मौसम में कहीं दूर जाने का मन होता है! सिर्फ़ अपनों संग फिर से एक नया नगर बसाने का मन होता है। अपनी सी नगरी में अपने से नियम हों अपनी सी शामें हों अपने से सवेरे हों और सब अपने हमेशा के लिए संग में हों कभी भी न बछड़े एक दूसरे से फ़िर हम ऐसी नगरी बसाने का मन...
खानदान 158

खानदान 158

” माँ चलीं गईं..!!!”। बबलू अपने छोटे भाई के मुहँ से यह ख़बर सुनते ही सुनीता बिलख-बिलख कर रोने लगी थी.. ” बस! माँ! कोई बात नहीं! नानी ने अपनी पूरी लाइफ अच्छे से बताई ! और एक सुखी जीवन जिया! अब उनका जाने का समय आ गया था.. उन्हें जाना था.. अपनी बीमारी...
खानदान 159

खानदान 159

अपनी माँ के दुःख के संग.. एकबार फ़िर सुनीता ने रामलालजी के नाटकीय मंच में कदम रखा था। प्रहलाद का दाखिला तो हुआ ही नहीं था.. पर उसनें अपना मन-पसंद काम वहीं इंदौर में ही शुरू कर दिया था। रमेश की नज़र प्रहलाद पर ही थी.. ” कहाँ जाता है! ये!”। ” पता...
गीत

गीत

फ़िर वही गाँव वही घर याद आ रहा है! ए मेरे मन तू इन बूँदों में वही गीत क्यों गा रहा है! भीगी हुई हवाओं में मन गुज़री हुई यादों को पकड़ने क्यों दौड़ रहा है! आने वाले समय की यादें बटोर कोई नया गीत गुनगुना फ़िर एक नई कहानी लिख! और एक नया गीत...
खानदान 157

खानदान 157

शादी-ब्याह के सपने, घी-दूध के निकलने के वहम औरत की बाएं आँख का फड़कना बहुत बड़ा अपशकुन होता है.. सुनीता के दिल को दहला कर रख दिया था.. माँ को लेकर एक तो बेचारी वैसी ही परेशान थी.. दूसरा एक नया सपना सुनीता को डरा कर रख देता था। इसी डर के रहते सुनीता हर बार मायके फ़ोन...