स्टॉप, जॉली

स्टॉप, जॉली

” स्टॉप..! स्टॉप..!.. स्टॉप…!!”। ए..! जॉली दिखा..!!” ” one two three four….and five.. चल.. ओवर!”,। ” जॉली तो है.. ही नहीं..! हो गए तेरे पचास पैसे! .. अब तेरी जॉली की कल fifth period तक की ओवर!”। यहाँ हम अपने ज़माने के दो मशहूर...
स्नैक्स

स्नैक्स

” हम्म! रुको..! पहले गेस्टों को जाने दो.. अभी मत लेना..!”। गेस्टों के जाने के बाद.. ” अब लें लें माँ!”। और माँ प्यार से मुस्कुराते हुए.. कहा करतीं थीं.. ” हाँ! अब तुम खा सकते हो!”,। ” ये वाले स्नैक्स आपने बहुत ही टेस्टी बनाए...
मुझे

मुझे

पीतल की परात में रखे गूँधे हुए आटे की खुशबू सवेरे ही महका गई थी मुझे I सवेरे की ताज़ी ठंडी हवा गाँव के खेत खलियान में ले गयी थी मुझे। न जाने क्यों आज वो गाँव का पहले वाला शुद्ध वातावरण याद आ गया था I मन धुएँ – धूल और शोर से हटकर, नीम के नीचे बनी गाँव की उसी...
क़ीमत

क़ीमत

” अरे! रे! ..रे! क्या फेंक रही हो! गाय के आगे दीदी.. रुको!”। ” कुछ नहीं छोले हैं! पता नहीं.. कब के पड़े थे.. ध्यान ही नही रहा.. पैकेट खोला तो ये काली सुरसी लगी पायीं! क्या करती.. पानी में भिगो रखे थे.. सोचा गाय को ही दे दूँ!”। ” अरे!...
दूध

दूध

दूध! दूध! दूध! दूध…! वंडरफुल दूध..! पियो ग्लास फुल दूध… यह पंक्तियाँ उस विज्ञापन की हैं… जो बहुत पहले टेलीविज़न पर आया करता था.. बुनियाद, हमलोग, यह जो है.. ज़िन्दगी वाले दिन हुआ करते थे। हमारा तो यह विजापन प्रिय था.. विज्ञापन में काँच का ग्लास ले-ले कर बच्चे...