कोफ़्ते

कोफ़्ते

घर में बहुत दिनों से मलाई इकट्ठी हो गयी है.. सोचा.. चलो! घी बना काम ख़त्म किया जाए। घी बनाकर बचे हुए.. खोए में आटा मिलाकर गूंदने लगे थे.. कि अचानक से अंगुलियों में आटे की जगह उबले आलुओं का स्पर्श हो आया था.. ऐसा लगा था.. जैसे माँ की छोटी-छोटी सी हथेलियां खोया और आलू...
पेंटिंग्स

पेंटिंग्स

” तो फ़िर क्या रहा! देख लो! तुम लोग डिसाइड कर के बता दो मुझे.. कि कौन सी सोसाइटी में फ्लैट लेना है!”। दिल्ली शिफ्टिंग के बाद हम किराए के ही घर में थे.. काफ़ी सालों से। ईश्वर ने पिताजी का हाथ पकड़ा.. और अब अपना ख़ुद का फ्लैट किसी अच्छी सोसाइटी में लेने का...
छोले-भटूरे

छोले-भटूरे

हमारा बचपन दिल्ली में ही बीता.. नहीं! नहीं! शुरू से नहीं.. हाँ! होश संभालने के बाद से ही हम दिल्ली में आ गए थे.. छुटपन में तो कई जगह रहे.. पिताजी का transferable जॉब जो था.. पाँचवीं कक्षा से ही दिल्ली में हैं। नए शहर का क्रेज और नया सेटलमेंट था.. सब कुछ अच्छा-अच्छा...
गाजर

गाजर

मीठी प्यारी सी धूप.. और ताज़ी पौष्टिक सब्जियों के संग सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है। शरद ऋतु में आने वाली सब्जियों का स्वाद ज़्यादातर सभी के मन को भाता है। हमारे बच्चे तो इस ऋतु की सभी सब्जियों के शौकीन हैं.. पर सबसे ज़्यादा तो बच्चों को गाजर और मटर की सब्ज़ी ही भाती...
शादी

शादी

” नमस्ते आंटी!”। ” नमस्ते! अरे वाह! दुल्हन तो आज आप ही लग रहीं हैं!”। ” thankyou.. aunty!”। घर के शादी के फुंशन में शामिल हुए थे.. पहले तो सोचा यूँहीं सिंपल सी पर थोड़ी ठीक साड़ी पहन कर चलते हैं.. पर दूसरे ही पल विचार आया था.. ...