by Rachna Siwach | Dec 2, 2019 | Uncategorized
बहुत दुःख होता है.. समाज में आज अपनी बहन-बेटियों को असुरक्षित देखकर! माँ-बाप कितना भी क्यों न पढ़ा-लिखा लें.. अपनी बिटिया को.. पर फ़िर भी यह समाज उन्हें स्वछंद रूप से जीने नहीं देता.. बहुत बुरा लगता है.. ऐसे समाज में रहते हुए.. जहाँ आज भी पुरुष वर्ग जानवरों की तरह से...
by Rachna Siwach | Nov 29, 2019 | Uncategorized
भई! वाकई ! यह ज़ुकाम तो सभी बिमारियों में सबसे बुरी बीमारी है। एकबार को बेशक बुख़ार हो जाए.. पर ज़ुकाम तो होना ही नहीं चाहिए। अब ज़ुकाम हो जाता है.. तो केमिस्ट से गोलियां लाए.. कम्बल में विक्स वगरैह लगाकर .. ढ़ककर सो गए.. बस! दो-चार दिन में हालात चंगी हो जाती है। ये...
by Rachna Siwach | Nov 28, 2019 | Man Ki Baat
“पता नहीं! अपने आप को क्या समझते हैं.. थोड़ा सा भी कुछ नहीं आता! मैं तो ऐसे करती.. कि सब बेहद ख़ुश हो जाते।” असल में होता क्या है.. कि हम अपनों में.. और रिश्तों में कमियाँ ही निकालते रहते हैं.. यानी के परफेक्शन ढूंढते हैं। जीवन का आधा क्या पूरा वक्त...
by Rachna Siwach | Nov 27, 2019 | Uncategorized
झालमुडी…! झाल… झाल… झालमुडी….!! भेलपूरी…! भेलपूरी..! झालमुडी..!! झालमुडी और भेलपूरी बेचने वालों की आवाज़ें हुआ करतीं थीं.. जगह थी.. कलकत्ता की हुगली नदी के किनारे बाबू घाट। हर इतवार हम यहीँ परिवार सहित पिकनिक मनाने आया करते थे.. कोई भी इतवार ऐसा नहीं होता था.. जब...
by Rachna Siwach | Nov 26, 2019 | Uncategorized
बचपन के खेल और सोच भी अजीब हुआ करते थे.. लेंस लेकर कागज़ जलाना या फ़िर दो पत्थरों को आपस में घिस चिंगारी निकालना.. वो सफ़ेद से सुन्दर बड़े-बड़े से पत्थर जिन्हें हम आपस में बुरी तरह से रगड़ कर चिंगारी निकाला करते थे.. उन्हें हमनें चकमक पत्थर का नाम दे रखा था। अब...