Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

Aparaadh !

[Best_Wordpress_Gallery id=”3″ gal_title=”All images”]

लेकिन – तुम टॉनी चूक गए !!

कहानी :-

तुम्हारे दोस्त अब मेरे दोस्त हैं ….और तुम्हारे दुश्मन !! ये कैसा विचित्र खेल रच गया है , टॉनी  ….?

हा हा हा ….! हंसी आ रही है . जेल में बैठ कर तो मैं खूब रोई थी . लेकिन अब तो आज़ाद हूँ . भाई, मुझ पर तो कोई मुक़दमा बनता ही नहीं …? जैसे तुम बर्तन बेचते हो ….वैसे ही मैं शारीर बेचती हूँ ! खरीदने वाला तुम से क्या लेता है ….और मुझे क्या देता है ….इस से किसी को क्या सरोकार ….?

“लेकिन …टॉनी  ! अब तुम्हारा तो सब बिक जाएगा ….!! तुम्हारे दुश्मन बने …तुम्हारे ही दोस्त अब तुम्हारे कच्छे -बनियान तक नीलाम कर देंगे , देख लेना !!” मन उदास है . मैं कब चाहती हूँ कि टॉनी का सब बिके ? मैं कब चाहती हूँ कि उसे कोई मुशीबत छुए भी ? “लेकिन टॉनी  ! अब तो जंग का ऐलान हो चुका ! और पहला डंका नगाड़े पर तुमने ही दे कर मारा ! तुमने ही कहा – ये वैश्या है !! मैं नहीं जानता इसे ….! झूठ बोला था न ….तुमने ….? पर मैं मूक खड़ी थी ! मैं तो तुमसे खुश-खुश मिलने चली आई थी . बताने आई थी , टॉनी  कि …हम दोनों ….माने की ….हम …..”

अखबार सामने पड़ा है . फडफडा रहा है . इस में वो खबरें छपीं हैं जो …..छपनी नहीं चाहिए थीं ! वो खुलासा है – जिसे हम दोनों उजागर नहीं करना चाहते ! और तो और वो सबूत भी हैं जिन्हें तुम्हारे दोस्तों ने ही खोज निकाला है, टॉनी  ! और एक तुम हो कि झूठ पर झूठ बोले ही चले जा रहे हो ! कहते ही जा रहे हो कि तुम तो क्रेजी हॉप को जानते तक नहीं ! जब कि सच तो यही है कि टोनी और क्रेजी हॉप मिले हैं ….साथ-साथ जिए हैं ….उन अन्तरंग पलों से गुजरे हैं ….जिन्हें अकाट्य प्रेम का दर्जा दिया जा सकता है ! टॉनी ने क्रेजी हॉप को ……’

“लेकिन तुम तो मेरी जुबान पर झूठ का मोटा ताला लटका देना चाहते हो ! मुझे खरीद लेना चाहते हो …ताकि तुम्हारे बडप्पन में कोई दाग न आ जाए !”

गलत कर बैठे , टॉनी  !!

का:श तुम सच-सच बता देते ….कि  ये क्रेजी हॉप ….मेरी अपनी है ….ये मेरी प्राण-प्रिया है ….ये है मेरे अमर-प्रेम की देवी ….और मैंने इसे भोगा है ….जिया है ….सहवास किया है ….इस के साथ ….और मुझे वो मिला है …जो अन्यत्र दुर्लभ है !! कहते – एक-एक पल मैंने और मौना ने अपनी मर्जी से जिया है ….! मैं इस मौना का मर्द हूँ ….कामना पुरुष हूँ ! कहो मुझे कायर ! पर मैं सत्य के साथ हूँ …!!

लेकिन तुम , टॉनी  चूक गए ….!!

झूठ की कमर पर खड़ा आदमी तो धोखे की टट्टी पर सवार हो जाता है ! उसे लगता तो है कि वह सब की आँख में धूल झोंक कर पार जाएगा ! लेकिन ये होता कभी नहीं है ! और हाँ , आज का ज़माना तो मान ही बैठा है कि …’सच’ नाम की कोई चिड़िया यहाँ रहती ही नहीं ! सब कुछ झूठ-झमेलों में ही बसा हुआ है ! खूब कमाओ ….खूब खाओ ….और खूब ही उडाओ !

“मानती हूँ , टॉनी  कि मेरी माँ गरीब थी ! बहुत ही गरीब थी – वो ! और ये मैं भी जानती थी कि वो मुझे कुछ दे न पाएगी ! लेकिन जो परमात्मा ने मुझे दिया ….हुश्न दिया ….हिम्मत दी  ….कला दी …..और दी एक सामर्थ ….जो शायद ही उस ने किसी और को दी हो ….? माँ कहती भी थी – करम जली …..! ज़मीन पर पैर रख कर चल …! हवा में उड़ना तो गलत है , री ! घर कैसे बसाएगी ……अगर …..?

“रिलेक्स …, माँ !” मैं हंस कर कहती . “कोई तो …साला फंसेगा …..?” मैं हलके मूड में बोल जाती . “बस ! उसी को गर्दन से पकड़ लूंगी !” मैं माँ को खूब ही हंसाती . “लेकिन ये संयोग भी देखो , टॉनी  कि  ….अब तुम्हारी गर्दन यकायक मेरे हाथ में आ गई है ! अब तुम नहीं , मैं बड़ी हूँ !” मैं हंसने लगी हूँ . टॉनी  का चेहरा सामने आता है ! तनाव से भरपूर चेहरा  …..”

“सच मानना टॉनी , जब से तुमने मुझे जेल भेजा ….तभी से मेरा नाम ऊपर चढ़ा  ….और चढ़ता ही चला गया ….!! लोग आए . मुझे बताया ….मुझे समझाया ….मेरी सरपरस्ती की ….और अब ….? मेरे घर रात भर मेले लगे रहते हैं ! एक से बड़ा एक मेरे घर आता है , टॉनी  ! मेरे तलवे चाटता है ….मेरी दी ख़ुशी में …डूब-डूब कर नहाता है ….दोनों हाथों से मुझे देता है …..और मुझे सलाम ठोक कर ही जाता है ! तू ही एक पागल निकला ! निरा गधा ….! खज़ाना मैंने तुझे सौंपा …और तूने ……?

अखबार लिख रहा है कि …इस आदमी का किया अपराध अक्षम्य है ! इसे तो सजा मिलेगी . पद से तो जाएगा ही …..इसे तो अपने कारोबार से भी हाथ धोने पड सकते है ….? इस के सारे झूठ गुनाहों की तरह उजागर हो रहे हैं ! इस से बड़ा झूठा तो इतिहास में भी कोई नहीं ! जितना बड़ा है ….उतना ही बड़ा झूठ बोलता है !! 

मेरी आँखें सजल हो आती हैं . मैं तड़प उठती हूँ . क्या करूं ….? मैं …मैं …तो आज भी ….माने कि अब भी …..इसी पागल को प्यार करती हूँ …! इसी पर मरती हूँ …इसी पर जान देती हूँ ……क्यों …? मैं नहीं जानती . ओ,हाँ ! शायद इस लिए कि ….जो पल मैंने टॉनी के साथ जिए हैं ….वो और किसी के साथ जीना असंभव है !

मैं तो इसी की राधा हूँ ! पर ये मेरा कृष्ण न बन पाया ! अरे, पागल ! देख तो उस विश्व के महानायक को …जिसे राधा के अलावा …और कितनी रंभाएं प्यार करती हैं …? उस ने कभी अपनी किसी प्रेमिका को निराश नहीं किया, पगले ! सब की आस रखी ….सब की लाज बचाई ….! सब का मान रखा और सब का प्रेम स्वीकारा ! और तूने ….? तू अपनी अकेली मौना के लिए भी सच न बोल पाया …?

“मैं अब सब सच-सच बता दूंगा !” अखबार मैं टोनी के सहायक मौनी का बयान है . “मुझे टोनी ने ही कहा था कि …..तू जा कर मौना को खरीद ले ! कहीं मौना ने खेल बिगाड़ा तो चित हो जाएंगे !!” 

“मौनी झूठा है ! मौनी चाहता है कि मुझे नीचे धकेले ….और अब वह गद्दी संभाल ले ! उसी ने मेरे खिलाफ ये षड़यंत्र रचा है ! मौना भी इसी की रखैल है…..वैश्य है …. !” टॉनी ने डंके की चोट बयान दिया है . “आसमान टूट कर गिरेगा , लोगो ! अगर मुझे ….किसी ने टच भी किया तो …..” 

झूठ के ऊपर एक और झूठ दे मारा है , टॉनी ने ! 

“वैश्या कहाँ से बुरी होती है ….? आज भी मेरा ऐडल्ट फिल्म स्टूडियो …उन पुरुषों से खचाखच भरा है ….जिन्हें दिन के उजाले में लोग देवता कहते हैं ! फिर ये ढोंग क्यों …?” मैं अब खुले आम कोर्ट में ही पूछ लेती हूँ . “अरे, बिना औरत के नहीं निभती …तो खुले आम आओ ! घर बता कर आओ ! खुल कर आओ ….और सब आओ ! इस में ‘अपराध’ कहाँ है ? ये बुरा कहाँ है …? जहाँ गज़ब की आनंदानुभूति का अनुभव हो ….वो फिर गलत कैसे है …?

हाँ, अपराध है ! झूठ बोलना ‘अपराध’ है ! !

मैंने सच बोला . मुझे नजात मिली है . टॉनी ने झूठ बोला – उस का बेडा गर्क हो कर रहेगा ! अरे! दुनिया के सामने खुली और खुलासा मिशाल है , गाँधी की . उस दो हड्डी के आदमी ने एक विशाल साम्राज्य के सामने खड़े हो कर सच बोला ! क्या हुआ …? जितना उस सच को साम्राज्यवादियों ने दबाया ….वह उतना ही सर चढ़ कर बोला ! और इतना मुखर हुआ कि ….समूचा साम्राज्य उस में डूब गया ….

और टॉनी भी अब ब्रिटिश साम्राज्य की तरह ही डूबेगा ! 

सो सैड   …! वैरी बैड …!! मेरे प्रियतम …मेरे प्राणाधार ……मेरे सखा ….मेरे केशव …और मेरे सर्वश्व टॉनी  ….मैं … तुम्हें भुला नहीं सकती ! मैं …मैं …मानती हूँ कि मैंने सब सच-सच कहा ….झूठ नहीं बोला ! पर क्यों ….? मैं तो चाहती थी कि हम दोनों सच को ही स्वीकारें ….और इस मिथ्या जगत को ही त्याग दें ! रे, टोनी ! मेरे पास है क्या नहीं ….? तुझे तो तेरा मिथ्या अभिमान ही ले बैठा , मित्र ! एक बार …सिर्फ एक बार अगर तू प्रेम से कहता कि मौना डार्लिंग ….मुझे बचा लो …तो सच टॉनी  मैं अपनी जान झोंक देती ….पर तुझे आंच तक न आने देती ! 

लेकिन झूठ बोलने का तुम्हारा ये अपराध ……

…………………..

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !! 

Exit mobile version