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Aai Mauj Fakeer ki ….

दिया झोंपड़ा फूँक !!

“आई मौज फकीर की ….दिया झोंपड़ा फूंक ……!!” मैंने कहा है . …अपने परम मित्र रोबर्ट से . मैं रोबर्ट को भारत के बारे कुछ बताना चाहता था . चूंकि मैं भारतीय हूँ – तो भारत के बारे में बताना भी …

“दिया झोंपड़ा फूंक  , नहीं ….. मित्र ! ‘लिया झोंपड़ा फूंक’ कहो !” रोबर्ट ने अब पहल की है . “फकीर तो अपना ही घर फूंकता है ….” उस ने मेरी आँखों मैं देखा है .

“हाँ, …भाई ! ठीक कहते हो !” मैंने स्वीकारा है . “पर मैं उस फकीर की बात कर रहा हूँ ….जिस ने तुम्हारा झोंपड़ा फूँका ……!” मैं मुस्कराया हूँ . “जिस ने चुपके से एक साम्राज्य के तैरते जहाज़ में कील ठोकी और ….उसे डुबो दिया ! जिस ने लोगों के कान में चुपके से कुछ कहा – कहा , ‘अहिंसा परमो धर्मह !’ ……और ऐसी हिंसा भड़की कि ….”

“देश बंट गया …..टूट गया ….टुकडे -टुकडे  हो गया ….?” रोबर्ट ने पूछा है . “इतना बड़ा नर-संहार …..इतना बड़ा जलजला ….कितना-कितना अपराध ….अनैतिकता …और ….अत्याचार …..?” रोबर्ट बताता ही जा रहा था . “और भाई साहब …आप माने  कि ….मानवीयता की हत्या ….”

“लेकिन …..’जलियाँवाला बाग ‘ इतिहास में अमर है . अंग्रेजों से बड़ा अत्याचारी तो ….औरंगजेब भी नहीं था !” मैंने उसे रोका है . “भाई ! हमारे साथ किसी ने भी कोई रियायत नहीं बरती ! इतनी यातनाएं ….इतना आतंक ….भय …नफ़रत …और …उफ़ – वो गुलामी …..! चाहते कहाँ थे आप लोग …कि ….!”

एक चुप्पी आ बैठी है – हमारे बीच . रोबर्ट आहात हुआ है . उसे मात्र एक ही गम खाए जा रहा है . उन का साम्राज्य चला गया – उन के हाथ से सोने की चिड़िया’ भाग बाज बन गई ! अब उसे हाथ तक लगाने का अर्थ है ….छूने तक का मतलब है ….? उसे परास्त करना तो अब बहुत दूर की बात हुई !!

“कमाल की बात एक है, भाई साहब !” रोबर्ट बहुत देर के बाद बोला है . “यहाँ का आदमी …अजीब है . कितना ही सता लो …भूखा रख लो …नंगा भी रहेगा ….सड़क पर पड़ा रहेगा …नहाएगा नहीं ….खाएगा नहीं ….लेकिन मरेगा भी नहीं ! और न ही अपना दीन-ईमान छोड़ेगा ! मौका पाते ही फन मारेगा ….और …..” रोबर्ट कुछ सोचता है . “यही गांधी था ….इन्ही की किसिम का था …..इन्ही में से एक था ….”

“हाँ ! वह हमारा ही अंग था …हमारा ही दिमाग था ….हमारा ही हिस्सा था ! वह ठेठ भारतीय था . तभी तो हम उसे ‘राष्ट्र पिता’ कहते हैं .”

“अब तो उसे पूरा -का-पूरा विश्व ही …’बाप’ मानता है , जी !! ” रोबर्ट कहता है. “हमें ही नहीं ….उस ने तो न जाने कितनों का ….बेडा गर्क किया है ….?” वह प्रसन्न है . “अच्छा ही हुआ कि …’सत्ता-महत्ता’ का रोग ही कट गया ! वरना तो …मानवता मर चुकी होती ….!” वह कहता है . “लेकिन एक बात तो मैं फिर भी कहूँगा कि ….भारत के नेता और जनता अभी भी अनपढ़ तो है ! अभी भी …..भारत …..” रोबर्ट ने मेरी आँखों को पढ़ा है . वह समझ गया है कि मुझे ये बात बुरी लगी है .

मैं भी अब गहरे सोच में जा डूबा हूँ . एक प्रश्न मेरे मन को रौंद रहा है . एक द्रष्टि मुझे छोड़ आताल-पाताल में जा डूबी है . मैंने इतिहास के पन्ने भी पलट लिए हैं . अब मुझे एक प्रमाण मिला है .

“चर्चिल ने कहा था – भारत की सत्ता गुंडों के हाथ में चली गई है ! देश अनपढ़ है ….भूखों मरेंगे लोग …..अराजकता अवश्य आएगी ….तो …हम …….”

“हमें आना तो था !” रोबर्ट स्वीकारता है . “हमें आना था ….!! हमारे पास …सामर्थ …और समझ थी ….अनुभव था …और हथियार – गोला -बारूद से ले कर …हमारे पास ….पावर थी ..! हमें पता था कि ….’पावर कमस आउट …फ्रॉम द बैरेल …आंफ …द …गन ! और भारत के पास – गन तो छोडो ….लाठी भी तो नहीं थी ….!” वह मुझे घूर रहा था . कुछ समझाने का प्रयत्न कर रहा था . कुछ पूछना भी चाहता था.

“नाट …फ्रॉम …द …बैरेल ऑफ़ द गन ….!” मैंने रोबर्ट को सुझाया था . “पावर कमस …आउट ..फ्रॉम द …माइंड …ऑफ़ अ  मैन …!!” मैं हंसा था . “ए …मैन …लाइक …’गाँधी’ ….ए …मैन …लाइक ……”

रोबर्ट उन के नाम गिनता ही रहा था !!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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